
अमर बलिदानी क्रांतिवीर
मिटा सकें तो अभी मिटा दें, तन को ये हत्यारे।
जलें मशालें अरमानों की, प्राणों में अंगारे।
मिट्टी में भी महक उठे, देश प्रेम की बात।
रक्त बहे तो भी रहे, गौरवमयी सौगात।।
बम-गोलों से क्रांति नहीं, तेज विचारों की धार।
शब्दों की तलवार गढ़े, युग-युग तक स्वीकार।।
तन मिट जाए, मन मिट जाए, नहीं मिटे यह जोश।
स्वतंत्रता की राह चले, है बलिदानों का घोष।।
प्रेमी, पागल, कवि कहें, बंधन से भय हीन।
जन्म-मरण की सोच तजे, मन में क्रांति प्रवीन।।
सरफरोशी के गीत गाएँ, प्राणों से बलिदान।
देखें कितना जोर भरे हैं, नर पिशाच शैतान।।
कैद न हो यह चेतना, उड़ चले पंख पसार।
जीवन का क्या मोह हमें, मुक्त रहें देश परिवार।।
स्वतंत्र सोच और आलोचना, क्रांति के हैं प्राण।
बुद्धि-विवेक से जीत सकें, तम का हर अभियान।।
राख-राख हर कण कहे, क्रांति की हूँ आग।
कारा में भी जल सका, क्या स्वतंत्रता राग।।
बहरों को सुनना नहीं, चीख पड़े अब शंख।
आंदोलन का तुमुल नाद हो, टूटे झूठे पंख।।
बलिवेदी पर हँस दिए, जो नवयुग की आस।
भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, क्रांति सजे इतिहास।।
माँ के आँचल की कसम, त्याग दिया सब प्राण।
देशभक्ति के दीप से, प्रज्वल हुआ बलिदान।।
सत्ता थर-थर काँप गई, उठ जब हुंकार।
सुनकर उनके मंत्र को, जाग उठे अंगार।।
रक्त लिखा जो इंकलाब, बन गया उदघोषि शंख।
गूंज उठा जन-जन हृदय, ध्वनि बन चली तरंग।।
स्वतंत्रता की ज्योति में, आहुति बने जो वीर,
उनके बलिदान से खिला, नव प्रभात का नीर।।
राजगुरु सुखदेव भगत सिंह सब क्रांतिवीर यश मान।
कल्पकथा के मंच पर करते कोटि प्रणाम, कोटि कोटि प्रणाम।।
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