
“अमर बलिदानी तिलका माँझी”
राधे राधे सभी को,
हमारे देश में अनेकों ऐसे वीर बलिदानी शौर्यवान अदम्य साहसी यौद्धा हुए हैं जिन्होंने समय – समय पर राष्ट्रीय अस्मिता और सम्मान के लिए निस्वार्थ भाव से अपने प्राणों की आहुति दे दी। हमारा इतिहास ऐसे अदम्य साहसी यौद्धाओँ की वीरता से भरा हुआ है उन्हीं में एक अमर नाम है तिलका माँझी जी का जिन्हें आज समूचा देश भारतीय स्वतंत्रता संग्राम प्रथम सेनानी के नाम से जानता है।
मित्रों,
तिलका मांझी, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम आदिवासी योद्धा, जिनका जन्म 11 फरवरी 1750 को बिहार के सुल्तानगंज स्थित तिलकपुर गाँव में हुआ था। उनका वास्तविक नाम जबरा पहाड़िया था, जबकि कुछ स्रोतों के अनुसार उन्हें संथाल समुदाय का सदस्य माना जाता है। उनके पिता का नाम सुंदरा मुर्मू था।
“तिलकपुर में जन्मे वीर, जबरा जिनका नाम।
संथालों के इस सपूत ने, बढ़ाया कुल का मान।।”
साथियों,
18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में, अंग्रेजों द्वारा स्थानीय किसानों और आदिवासियों के शोषण के विरुद्ध तिलका मांझी ने विद्रोह का नेतृत्व किया। उन्होंने 1771 से 1784 तक ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ संघर्ष किया और स्थानीय सामाजिक लुटेरों, ब्रिटिश सत्ता के चाटुकार सामंतों तथा अंग्रेजी शासकों की नींद हराम कर दी।
दोस्तों,
सन 1778 में, तिलका मांझी ने पहाड़िया सरदारों के साथ मिलकर रामगढ़ कैंप पर कब्जा करने वाले अंग्रेजों को खदेड़कर कैंप को मुक्त कराया। 1784 में, उन्होंने ब्रिटिश अधिकारी ऑगस्टस क्लीवलैंड पर हमला किया, जिससे उसकी मृत्यु हो गई। इसके बाद, अंग्रेजों ने तिलका मांझी की गुरिल्ला सेना पर जोरदार हमला किया, जिसमें कई लड़ाके मारे गए और तिलका मांझी को गिरफ्तार कर लिया गया।
“सत्रह सौ इकहत्तर में, उठाई स्वतंत्रता की मशाल।
अंग्रेजों से लोहा लेकर, उन्नत किया राष्ट्र का भाल।।”
भाईयों और बहिनों
कहते हैं, उन्हें चार घोड़ों में बांधकर घसीटते हुए भागलपुर लाया गया। मीलों घसीटे जाने के बावजूद वह जीवित थे। अंततः, अंग्रेजों ने भागलपुर के चौराहे पर स्थित एक विशाल वटवृक्ष पर सरेआम लटकाकर उनकी हत्या कर दी। जिसकी संभावित तारीख थी 13 जनवरी 1785, इस तरह 35 वर्ष की आयु पूरी किए बिना वीर तिलका माँझी ने देश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया।
” भागलपुर में वटवृक्ष पर, फांसी का फरमान।
मगर झुका न जबर वह, प्राण किए कुर्बान।।”
बन्धुओं और भगिनियों,
वीर तिलका माँझी जी ने सशस्त्र संघर्ष के दौर में छापामार युद्ध शैली से अनेकों युद्ध लड़े। उनका नाम अंग्रेजी सत्ता और देशद्रोहियों के लिए भय का पर्याय बन गया जबकि गरीब आदिवासियों, और पहाड़ी जनों के बीच वह देवता की तरह लोकप्रिय थे। आज भी संथाल परगना, भागलपुर अंचल में जबरा पहाड़िया तिलका माँझी को वीरता की मिसाल मानकर उनकी कसमें खाई जाती है।
मेरे प्रिय देशवासियों,
अपने देश की स्वतंत्रता के लिए परम बलिदान देने वाले शूरवीर तिलका मांझी को स्वतंत्रता संग्राम के पहले बलिदानी के रूप में जाना जाता है उनके शौर्य, संघर्ष, और बलिदान को सम्मानित करने के लिए, भागलपुर विश्वविद्यालय का नाम बदलकर तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय रखा गया है। उनकी वीरता और सच्ची राष्ट्र भक्ति सभी देशवासियों के लिए प्रेरणा स्त्रोत है।तिलका मांझी का संघर्ष और बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा। वन्दे मातरम, भारत माता की जय, जय हिन्द।
“स्वतंत्रता की राह में प्रथम, जीवन का दीप जलाया।
तिलका मांझी के त्याग ने, सोए देश को जगाया।।”
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