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“अविरल निर्मल गंगा – जन जीवन की धारा”

     राधे राधे सभी को,

            कल्प संवादकुंज- के वर्तमान विषय “अविरल निर्मल गंगा: जन जीवन की धारा” पर विचार रखने के पूर्व सभी देशवासियों को देव प्रबोधिनी एकादशी पर्व पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। 

“अविरल धारा गंग की, पावन हरित सुगंध।”

“जन जीवन का मूल ये, देती सदा आनंद।।”

 

         मित्रों,   

               भारतवर्ष में गंगा नदी का महत्व केवल एक नदी के रूप में नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक, धार्मिक और आर्थिक धारा के रूप में देखा जाता है। गंगा को ‘माँ’ का दर्जा दिया गया है और इसे पवित्रता, जीवन, शांति और उन्नति का प्रतीक माना गया है। गंगा केवल पानी का स्रोत नहीं है; यह भारतीय समाज के विभिन्न पहलुओं को आपस में जोड़ने का कार्य करती है। इसका धार्मिक महत्व असीमित है और देश की अनगिनत परंपराओं में इसकी महिमा गाई गई है।

 

        साथियों, 

                  जैसा कि आप जानते हैं गंगा का उद्गम उत्तराखंड के गंगोत्री हिमालय से होता है, जहां से यह अपना सफर शुरू करती है। पर्वतों की ऊँचाई से लेकर मैदानी क्षेत्रों की समतल भूमि तक, यह हजारों किलोमीटर का सफर तय करती है। गंगा न केवल हिमालय की ऊँचाईयों से जल लेकर आती है, बल्कि यह उस क्षेत्र के लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण जल स्रोत भी है। यह देश के प्रमुख हिस्सों में जल आपूर्ति का काम करती है, जिसके माध्यम से कृषि, पशुपालन और घरेलू कार्य संपन्न होते हैं।

 

       दोस्तों,

                गंगा का वर्णन प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है। वेदों, पुराणों और महाकाव्यों में इसकी महिमा का बखान किया गया है। गंगा का स्नान पुण्यदायी माना जाता है और इसका जल पवित्रता का प्रतीक है। महाकाव्य महाभारत और रामायण में भी गंगा का उल्लेख मिलता है, जहां इसे देवताओं की पावन नदी कहा गया है। मान्यता है कि गंगा में स्नान करने से सारे पापों से मुक्ति मिलती है और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। गंगा किनारे बसे काशी, प्रयाग, हरिद्वार जैसे धार्मिक स्थल इसकी महिमा का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं, जहां लाखों श्रद्धालु रोज इसकी आरती में शामिल होते हैं और गंगा की अविरल धारा को निहारते हैं।

“निर्मल निर्मल जल बहे, सजीव करे संसार।

हर ले पापी ताप को, है ये अमृत धार।”

 

        भाईयों,

               गंगा का प्रवाह भारतीय समाज के आर्थिक और सामाजिक जीवन की धुरी है। यह कृषि क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन है, विशेषकर उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और उत्तराखंड जैसे राज्यों में, जहाँ कृषि का मुख्य आधार गंगा का जल है। इसके जल से सिंचाई करके किसान फसलों की अच्छी पैदावार कर सकते हैं। इसके किनारे बसे नगरों और गाँवों का जीवन गंगा पर निर्भर है। गंगा के किनारे बसे गाँवों में मछली पालन और नौका संचालन जैसे व्यवसाय लोगों को रोजगार देते हैं।

 

          बहिनों,

                गंगा की जलधारा देश के लाखों लोगों को सीधे और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मुहैया कराती है। जल परिवहन के रूप में भी इसका महत्व काफी अधिक है। औद्योगिक विकास और व्यापार के लिए भी गंगा का उपयोग किया जाता है। इसकी जलमार्ग प्रणाली का उपयोग विभिन्न प्रकार के माल की ढुलाई के लिए किया जाता है, जिससे देश के कई क्षेत्रों में आर्थिक उन्नति होती है।

“गंगा माँ की गोद में, जन्मों का उद्धार।”

“जल की पावन बूँद से, मिटे जीवन भार।”

 

         बन्धुओं,

              यह बात सत्य है कि गंगा, जो एक समय निर्मल और अविरल बहती थी, आज प्रदूषण की समस्या से ग्रस्त हो गई है। इसमें गिरता हुआ सीवेज, औद्योगिक कचरा, कृषि में उपयोग किए जाने वाले रसायन और श्रद्धालुओं द्वारा किए जाने वाले धार्मिक अनुष्ठानों के कारण गंगा का जल प्रदूषित हो गया है। हरिद्वार, कानपुर, वाराणसी, और कोलकाता जैसे बड़े शहरों में गंगा के किनारे कई औद्योगिक प्रतिष्ठान हैं, जिनका कचरा बिना शुद्धिकरण के सीधे गंगा में गिरा दिया जाता है। इसका सीधा प्रभाव जन स्वास्थ्य पर पड़ता है। कई रोग और संक्रामक बीमारियाँ इस प्रदूषित जल के कारण फैल रही हैं, जिससे लोग अस्वस्थ हो रहे हैं और उनकी आयु कम हो रही है।

 

       भगिनियों,

              गंगा की अविरलता और निर्मलता को बनाए रखने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें लगातार प्रयास कर रही हैं। गंगा को साफ करने के लिए ‘नमामि गंगे’ जैसी योजनाओं की शुरुआत की गई है, जिसका उद्देश्य गंगा को प्रदूषण से मुक्त करना और इसके जल को स्वच्छ बनाए रखना है। इस योजना के अंतर्गत सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स का निर्माण, नदी के किनारों पर वृक्षारोपण, घाटों का सौंदर्यीकरण और स्थानीय लोगों में जागरूकता फैलाने के कार्य किए जा रहे हैं।

“वेदों में गंगा गूँजती, पावन मंत्र उच्चार।”

“अक्षय अटल अविरल बहे, सुख कर दे अपार।”

 

     देवियों एवं सज्जनों,

               गंगा की सफाई और संरक्षण का कार्य केवल सरकार का दायित्व नहीं है। इसमें जन सहभागिता भी आवश्यक है। स्थानीय निवासियों, श्रद्धालुओं, उद्योगपतियों और सामाजिक संगठनों का सहयोग इसमें अत्यंत महत्वपूर्ण है। गंगा के किनारे बसे लोग अगर प्रदूषण के प्रति सजग रहें और इसे कम करने के प्रयास करें, तो गंगा की अविरल धारा को बनाए रखा जा सकता है। जन जागरूकता के माध्यम से लोग अपने कचरे को सीधे गंगा में न डालें, यह सुनिश्चित करना आवश्यक है।

 

       मेरे प्रिय देशवासियों,

                    गंगा हमारे अस्तित्व का प्रतीक है और इसे संजोना हम सभी का नैतिक दायित्व है। अगर हम आज इसकी रक्षा नहीं करेंगे तो आने वाली पीढ़ियों को इसका परिणाम भुगतना होगा। गंगा की स्वच्छता और अविरलता को बनाए रखने के लिए हमें अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी और हर संभव प्रयास करना होगा ताकि गंगा की निर्मलता और पवित्रता बनी रहे।

 

       अपने विचारों को यहां विराम देते हुए यही कहना चाहते हैं कि गंगा के संरक्षण की दिशा में हम जितने भी कदम उठाएँ, वे न केवल गंगा की धारा को बचाने में मददगार होंगे, बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर को सुरक्षित रखने का भी माध्यम बनेंगे। हर हर गंगे। 

“गंगा तट की आरती, मन को शांति देय।”

“सदियों तक बहती रहे, जलधारा का नेह।”

पवनेश

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