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“आग्रह”

तपती वसुधा ताप से, सूरज सर पर लाल, 

हवा लपट सी आग की बदले सुर और ताल।

कंठ सूखता प्यास से, नमक नीर सी देह, 

आँखें चकमक बोध सी, हुए हाल बेहाल।।

पंखा कूलर फ्रिज सुनो ए सी तक असहाय, 

शीतल पेय भी यहां करते नहीं सहाय।

गर्मी का मौसम विकट मुश्किल दिन अरु रात, 

साथी सज्जन हर घड़ी जल ही एक है राय।।

ज्यों – ज्यों तपना है बढ़ी, सूख रहे जल स्त्रोत, 

पंछी मूक निरीह है टूटे जीवन ज्योत।

हाथ जोड़ विनती करें नहीं छोड़िए साथ, 

एक सकोरा जल भरा छत पर रखिए रोज।।

चौपाए घूमे विकल उनमें भी हैं प्राण, 

दाना पानी दीजिए जीवन सबमें मान।

भिक्षुक, पथिक, निशक्तजन, उनको भी है आस, 

परमपिता के अंश वह नारायण भगवान।।

मीठी बानी बोलिए मीठा ही व्यवहार, 

प्यासे को अमृत लगे शीतल जल की धार।

एक वृक्ष सौ पुत्र सम करिए बात विचार,

विटप रोपिए राखिए यही मूल है सार।।

पवनेश

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