Dark

Auto

Light

Dark

Auto

Light

images (27)~2

“आचार्य विष्णुगुप्त चाणक्य”

विष्णुगुप्त नाम से, अखण्ड राष्ट्र प्राण से, कौटिल्य विप्र विज्ञ युगपुरुष को धर्म का प्रसार दो।

 

रीति नीति कर्म मर्म, श्रेष्ठ शून्य मित्र वर्ण, शिखा तिलक द्विज स्वरूप, चाणक्य की आरती उतार दो।

 

एक देश एक तंत्र, सभ्यता समाज मंत्र, अर्थ तंत्र हों स्वतंत्र, पूर्णता सिद्ध यंत्र।

 

नारी नर की आत्मा, शूर महात्मा, एक भाव एक रूप, साख्य समभाव को अनन्त विस्तार दो।

 

== विष्णुगुप्त नाम से, अखण्ड राष्ट्र प्राण से, कौटिल्य विप्र विज्ञ युगपुरुष को धर्म का प्रसार दो।

रीति नीति कर्म मर्म, श्रेष्ठ शून्य मित्र वर्ण, शिखा तिलक द्विज स्वरूप, चाणक्य की आरती उतार दो।

 

01) तीन सौ पचहत्तर ईसा पूर्व में, तात चणक मां चनेश्वरी की गोद में, तक्षशिला की भूमि पर, शिशु ने हर्षाया था।

प्रवर द्रविड़ परंपरा, प्रखर सुयश सुप्रभ धरा, मेधा प्रचण्ड कांति को सुकेश ने बरसाया था।।

अनीति के विरोध में, राजमद के क्रोध में, पिता को दुष्ट नंद ने, कारागार पहुंचाया था।

जन मन के जीवन को, भावी के रक्षण को, कर्तव्य डोर से बंध फिर भी वह आया था।।

मदांध घनानंद, भोगरत बुद्धि मंद, अपमानित शिखा विप्र, बोला नाश अवश भार हो।

== विष्णुगुप्त नाम से, अखण्ड राष्ट्र प्राण से, कौटिल्य विप्र विज्ञ युगपुरुष को धर्म का प्रसार दो।

रीति नीति कर्म मर्म, श्रेष्ठ शून्य मित्र वर्ण, शिखा तिलक द्विज स्वरूप, चाणक्य की आरती उतार दो।

 

02) यह शिखा खुली रहे, बंध इसमें न लगे, यह शपथ विशेष है, नंद वंश नाश हो।

धर्म ध्वज को थामकर, राष्ट्र देव को प्रणाम कर, चंद्रगुप्त को खड़ा किया, वंदन विश्वास हो।

पर्वतक को साथ ले, पंजाब सिंध हाथ ले, सौराष्ट्र जीतकर, दक्षिण संवाद हो।

पाटिलीपुत्र कर विजय, महानंद को कुचल, सिकंदर का गर्व तोड़, हेलेना प्रसाद हो।

जड़ता प्रमाद से, आतंक के उन्माद से, बोध के आमोद को शान्ति का प्रहार दो।

== विष्णुगुप्त नाम से, अखण्ड राष्ट्र प्राण से, कौटिल्य विप्र विज्ञ युगपुरुष को धर्म का प्रसार दो।

रीति नीति कर्म मर्म, श्रेष्ठ शून्य मित्र वर्ण, शिखा तिलक द्विज स्वरूप, चाणक्य की आरती उतार दो।

 

03) अर्थशास्त्र – नीतिशास्त्र, वैधजीवन – राजतंत्र, राज्यतत्व सप्तांग, मण्डल वृद्धि सिद्धान्त।

संधि – विग्रह, यान – आसन, संश्रय – द्वेधिभाव, वैदिशिक नीति उत्तांत।

साम दाम दण्ड भेद, गुप्त रीति – विष कन्याएं, प्रजा पालन संवर्द्धन, शिक्षण संरक्षण अभ्यतांत।

विजीगिषु, अरि, मध्यम, उदासीन, पार्षिंग्राह, आक्रन्द, भारत के मेकियावली, फिर तुम अवतार लो। 

== विष्णुगुप्त नाम से, अखण्ड राष्ट्र प्राण से, कौटिल्य विप्र विज्ञ युगपुरुष को धर्म का प्रसार दो।

रीति नीति कर्म मर्म, श्रेष्ठ शून्य मित्र वर्ण, शिखा तिलक द्विज स्वरूप, चाणक्य की आरती उतार दो।

पवनेश

One Reply to ““आचार्य विष्णुगुप्त चाणक्य””

Leave A Comment