
आजादी की वीरांगनाएँ
- Swati Shrivastava
- 15/08/2024
- लेख
- इतिहास देशप्रेम
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हमारे देश ने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए लंबी लड़ाई लड़ी है। अनेक स्वतंत्रता सेनानियों और क्रांतिकारियों के अथक प्रयासों तथा बलिदान के बाद देश को सैकड़ों वर्षो की गुलामी से मुक्ति मिली। भारत के स्वाधीनता संग्राम मे महिलाओं ने भी मह्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उस समय सामाजिक दृष्टि से महिलाओं पर अनेकों बंधन थे परंतु उसके बाद भी राष्ट्रीय आंदोलन मेें भाग लेकर अनेक महिलाओं क्रांतिकारियों ने अपने साहस का परिचय दिया। माँ बहन बेटी पत्नी इत्यादि भूमिकाएँ निभाते हुए भी अपने देश के प्रति अपना कर्तव्य निभाने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी । स्वाधीनता आंदोलन की कुछ प्रमुख महिला स्वतंत्रता सेनानियों का योगदान इस प्रकार है।
क्रांतिकारी दुर्गादेवी: दुर्गा भाभी के नाम से मशहूर दुर्गादेवी क्रांतिकारी भगवती चरण वोहरा की धर्मपत्नी थी। उन्होंने क्रांतिकारी आंदोलन में अपने पति के साथ बढ़ चढ़ कर भाग लिया। वे सदैव क्रांतिकारी दल में साहस और उत्साह भरने का कार्य करती रहीं। सांडर्स की हत्या के बाद भगत सिंह के साथ वे वेश बदलकर अंग्रेजों को चकमा देने हेतु जानी जाती हैं ।भूमिगत क्रांतिकारी इन्हीं के घर आश्रय पाते थे तथा उनका घर सूचनाओं और अस्त्रों के आवागमन का केंद्र था। क्रांतिकारी आंदोलन में उन्होंने अत्याधिक सूझबूझ व साहस का परिचय दिया।
कस्तूरबा गांधी : “बा” के नाम से प्रसिद्ध कस्तूरबा गांधी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की धर्मपत्नी थी। वे जीवन भर अपने पति महात्मा गांधी के साथ कदम से कदम मिलाकर चलती रहीं। बापू द्वारा स्थापित आश्रमों का उन्होंने सुचारू रूप से संचालन किया। चंपारण व खेड़ा सत्याग्रह के समय वे घूम घूम कर स्त्रियों को जागरूक करती रहीं। बापू के जेल जाने के समय वे उनके अभाव की पूर्ति करते हुए लोगों को धैर्य बंधाती रही। । भारतीय नारी का आदर्श उन्होने पूरी तरह निभाया । वे गांधीजी की काया के लिए छाया बनकर रही और राष्ट्र माता के रूप में प्रतिष्ठित हुईं।
कमला नेहरू: कमला नेहरू भारत के प्रथम प्रधानमंत्री व स्वतंत्रता सेनानी पंडित जवाहर लाल नेहरू की धर्मपत्नी थी। जिस समय स्वतंत्रता संग्राम जोरों पर था उस समय कमला नेहरू जी को क्षय रोग हो गया था। इस समय जवाहर लाल नेहरू जेल मे थे। अँग्रेजी शासन ने चालाकी दिखाते हुए कहा कि यदि जवाहर लाल नेहरू राजनीति छोड़ दें तो उन्हें पत्नी की देखभाल हेतु रिहा किया जा सकता है। इस बात का पता चलते ही कमला जी तुरंत जेल मे नेहरू जी से मिलने पहुंची और अत्यंत विनीत भाव से बोली कि उनके कारण नेहरू जी राष्ट्रहित का कार्य ना छोडें। बाद में क्षय रोग से ही उनकी मृत्यु हुई। उन्होंने राष्ट्रप्रेम को सर्वोपरि माना और एक समर्पित पत्नी की भूमिका निभाई।
दुर्गाबाई देशमुख: दुर्गाबाई आंध्रप्रदेश के एक रूढ़िवादी जमींदार परिवार में जन्मी परंतु उन्होंने सामाजिक रुढियों का विद्रोह कर वक़ालत तक की उच्च शिक्षा प्राप्त की। सत्याग्रह आंदोलन में उन्होंने बढ़ चढ़ कर भाग लिया और लंबे समय तक अपने प्रांत मे कांग्रेस का संचालन किया। उन्हें जेल भी जाना पड़ा पर उनके उत्साह में कमी नहीं आयी। काकीनाड़ा कांग्रेस अधिवेशन में वे 500 स्वयंसेविकाएं लेकर पहुँची। हिन्दी भाषा का प्रचार, महिला सुधार जैसे राष्ट्र हित के कार्यो मे उन्होने महत्वपूर्ण योगदान दिया। भारतीय संविधान समिति की भी वे सदस्य रही तथा स्वतंत्रता के बाद भी आजीवन राष्ट्र कल्याण के कार्यो मे जुटी रहीं।
मैडम भीकाजी कामा: मैडम कामा बंबई क्रांति दल के संपादक रूस्तम जी की पत्नी थी। अपनी युवावस्था मे वे जर्मनी पढ़ने गयी थी जहां विश्व समाजवादी सम्मेलन मे भारत को पराधीन होने के कारण प्रवेश ना मिलता देख वे अत्यंत रुष्ट हुई तथा वहाँ भारत की स्वतंत्र प्रतिनिधि बनकर दहाड़ी। अपनी साड़ी का एक हिस्सा फाड़कर उसका तिरंगा झंडा बनाकर लगाया। उपस्थित देशों ने उनके देशप्रेम की और भारत की बहुत जय जयकार की। भारत में भी वे लगातार राष्ट्रीय आंदोलन तथा उस समय बार बार पड़ रहे अकालों के राहत कार्यों मे संलग्न रही। इंग्लैंड जाकर वहाँ उन्होंने वंदे मातरम पत्र निकाला। फ्रांस जर्मनी रूस आदि मे अपना अड्डा जमाकर वह भारत के पक्ष मे वातावरण बनाती रही। तिरंगे झंडे की प्रथम जन्मदात्री उन्हें ही माना जाता है।
राजकुमारी अमृतकौर : ये कपूरथला के राजा साहब की इकलौती बेटी थी। संपन्न परिवार से होने के कारण इंग्लैंड पढ़ने गयी पर भारत की तुलना मे उन्हें वहाँ कुछ भी विशेष नजर नहीं आया। वापस आकर गांधीजी के संपर्क मे आकर उन्होंने अपना पूरा जीवन राष्ट्र कल्याण में समर्पित कर दिया। उनके पिता भी स्वतंत्रता संग्राम के समर्पित कार्यकर्ता रहे और वे भी अपने पिता के पद चिन्हों पर चली। आजीवन अविवाहित रही तथा सत्याग्रह आंदोलन में अनेक बार जेल गईं। दस वर्ष तक गांधी जी की सेकेट्ररी के रूप में उन्होंने काम किया तथा नारी उत्थान परिषद का काम बख़ूबी सम्भाला। स्वराज्य प्राप्ति के बाद दो बार वे केंद्रीय सरकार में स्वास्थ्य मंत्री के रूप में सेवारत रहीं। हमारे देश की स्वतंत्रता वास्तव में ऐसी ही त्यागी और बलिदानी आत्माओं की ऋणी है जिन्होंने अपने जीवन में राष्ट्रप्रेम को सर्वोपरि रखा। उनके व्यक्तित्व की प्रखरता और निस्वार्थ देश सेवा ने युगों युगों तक उनका नाम इतिहास मे अमर कर दिया है।
– स्वाति श्रीवास्तव
भोपाल
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पवनेश
स्वातंत्र्य समर में सर्वस्व समर्पित करने वाली मातृ शक्ति को कोटिश: नमन। 🙏🌹🙏