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आदर्श समाज के निर्माण में नारी का योगदान

इसमें दो राय है ही नहीं कि न केवल भारतीय समाज बल्कि विश्व, आज भी एक पुरुष प्रधान समुदाय है। यह सही है कि आजकल लड़कियों को पढ़ाया जा रहा है अर्थात शिक्षा से वंचित रखने वाली सोच एक तरह से समाप्ति की ओर है। यही कारण  है कि आजकल हम सभी क्षेत्र में नारियों की भूमिका देख रहे हैं। और महिलाएं सब जगह अच्छी व्यवस्थापक भी साबित हो रही हैं अर्थात अपने दायित्व का हर क्षेत्र में कुशलतापूर्वक निर्वहन कर रही हैं। 
 
परन्तु विश्व  में नारियों व पुरुषों के अनुपात में असमानता आज भी स्पष्ट दिख रही है।अतः नारियों को अपने अस्तित्व को स्थापित करने के लिये अपने  ऊपर हो रहे अन्याय के खिलाफ संगठित हो कर खड़ा होना होगा। इस अव्यवस्था के सुधार में  ज़रूरत है, तो एक दृढ संकल्प की भी। किन्तु यह भी आवश्यक है की आज के इस बदलते हुए समाज में नारी खुद को परखे और समाज को उचित दिशा दे | 
 
चूँकि आज नारियाँ  किसी भी क्षेत्र में पुरषों  से कम नहीं बल्कि उनके कंधे से कंधा मिला कर सभी क्षेत्र में अपना योगदान दे रही हैं अर्थात हर क्षेत्र के प्रगति में इनका योगदान स्पष्ट दिखलायी दे रहा है। इसलिये अब  नारियों की भूमिका और अधिक विस्तृत एवं विशाल हो गयी है। अतः यह महिलाओं का ही दायित्व है कि अपने-अपने कार्य स्थल के साथ-साथ परिवार  में भी हर प्रकार के भेदभाव को न केवल रोके बल्कि सुधारे भी। 
 
 
 
महिलाओं की आज कल राजनीतिक कार्यों में भी रुचि परिलक्षित हो रही है। इस बढ़ती रूचि एवं हिस्सेदारी इस बात का आश्वाशन देती है कि वे देश चलाने के साथ साथ देश में से असमानता को उखाड़ फ़ेंक एक न्याय प्रिय लोकतन्त्र स्थापित करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान निभाने में पूर्णतः सक्षम हैं। 
 
यह आवश्यक है कि नारी की अस्मिता इतनी सस्ती भी नहीं होनी चाहिए कि कोई भी उसका मोल तय कर ले। यह भी नारी को जानना अति आवश्यक है की आज की सदी में वें किसी भी प्रकार से अकेली नहीं हैं।  इसलिये उन्हें  आगे बढ़ने के लिए संक्षिप्त रास्ता (शार्टकट) तलाशने से हर हालत में बचना ही उत्तम रहेगा। उन्हें यह हमेशा याद रखना है कि हमारे संविधान ने महिला और पुरुष को समान अधिकार दिए हैं। अतः महिला एवं पुरुषों का समान अधिकार और समान सम्मान होना ही चाहिए।
 
 
यह सही है कि व्यवस्था में उचित परिवर्तन के लिये नारियों को स्वावलम्बी बनाना सभी का दायित्व है। एक आदर्श समाज के निर्माण हेतु उनके मन से भय, तनाव, असुरक्षा एवं असमानता का भाव समाप्त कर स्वतन्त्र रूप से बढ़ने देने में सहायक होना होगा। जब तक नारी स्वावलम्बी बनकर आगे नहीं बढ़ेगी तब तक एक आदर्श समाज का निर्माण कोरी कल्पना रहेगा।
 
उपरोक्त सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए आज इस बदले हुए माहौल में पुरुष को नारी का अस्तित्व स्वीकारना होगा अर्थात दोहरे मापदण्डों से हटकर समानता और आपसी सहयोग को बढ़ावा देना होगा ताकि यह स्थापित हो सके कि कोई किसी का गुलाम नहीं। जब पुरुष नारी के अस्तित्व को स्वीकार करेगा, तभी नारी को समाज में सही अर्थों में समान दर्जा प्राप्त होगा।
 
मानस कुमार बिन्नाणी 
जय नारायण व्यास कॉलोनी , 
बीकानेर ३३४००३ 
दूरभाष – ९३२६२३१०४५
 
 
मानस कुमार बिनानी

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