“ओपेरा हार”
- पवनेश
- 2024-05-22
- लघुकथा
- प्रतियोगिता
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“मैडम, आपके ऊपर यह वाला हार बहुत सुंदर लगेगा।” ज्वैलरी शोरूम के मैनेजर के शब्दों ने कल्पना के कानों में जलतरंग की मधुर ध्वनि घोल दी।
“अहा!! बहुत सुन्दर है।” कल्पना ने मानों खुद से कहा। “ओपेरा हार।”
“मैडम, इस पांच लडी के हार में पूरे दो दर्जन हीरे लगे हुऐ हैं।” शो रूम मैनेजर ने बोलना जारी रखा। “इस ३७ इंच की लंबाई के हार को आप जिस अवसर पर पहनेंगी वह अवसर बिलकुल खास हों जायेगा।”
“इसकी कीमत क्या है?” मंत्रमुग्ध सी कल्पना ने सवाल किया।
“इसकी कीमत . . . . . . !!” शो रूम मैनेजर के बोलने के पहले ही एक अन्य पुरुष स्वर ने कल्पना का ध्यान आकृष्ट किया। “जो भी हो लेकिन तुम्हारी खुशी से बढ़कर नहीं हो सकती इसलिए यह नेकलैस अब सिर्फ तुम्हारे लिए।”
“आप . . . . . . !!” कल्पना के स्वर में खुशी दस गुणा बढ़ गई।
“कप्पू, उठ जा बेटा।” मां की आवाज ने अल्हड़ कल्पना में खोई लड़की को यथार्थ के धरातल पर लाकर खड़ाकर दिया।
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