
“कल्प संवादकुंज – पिता साक्षात सुपर हीरो”
राधे राधे सभी को,
कल्प संवादकुंज में वर्तमान विषय अर्थात् “पिता-संघर्ष का गौरव” विषय पर अपने विचार व्यक्त करने के पूर्व हम ब्रह्मांड के हर उस महान आत्मा को करबद्ध चरण वंदना करते हैं जिन्होंने कभी न कभी जानें अनजाने पितृ भाव से हमारा मार्गदर्शन, दुलार, समर्थन, अथवा हितचिंतन किया।
साथियों,
विचार अभिव्यक्ति के प्रथम सोपान में जगत नियंता, परमपिता परमात्मा के उस आदि स्वरुप के समक्ष नतमस्तक है जिन्होंने नियति को गढ़कर, समय चक्र का निर्माण किया। साथ ही उन समस्त दैवीय शक्तियों को वंदन करते हैं जिन्होंने पंचभूत के माध्यम से जीव को जन्म, आकार, प्रगति, स्पंदन, और मोक्ष, की गतियों का संचालन किया।
मित्रों,
लौकिक अर्थों में पिता अर्थात उस पुण्यात्मा का परिचय है जिन्होंने व्यक्ति अथवा अन्य जीव रुप में जन्म दिया। एक मानव के रुप में जन्म लेकर हम सभी उस पितृ ऋण के ऋणी होते हैं जो हमारे कर्मों व उनके प्रतिफल में प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से सहभागी होते हैं। सनातन संस्कृति में इसीलिए कर्मफल एवं सात पीढ़ियों के कर्मों द्वारा भाग्य के लेखन की अवधारणा प्रस्तुत की गई है और इस बात की सत्यता को आधुनिक एवं वैज्ञानिक आधार डी एन ए अर्थात् जैविक आण्विक संरचना रस के सिद्धांत द्वारा स्वीकार किया है।
दोस्तों,
एक शिशु के रूप में हर सामान्य व्यक्ति सबसे पहले जिस सुरक्षा भाव में निर्द्वंद श्वसन जीवन का अनुभव करता है वह पिता ही होते हैं। एक पिता के लिए हर संतान राजकुमार अथवा राजकुमारी होती है वहीं हर सामान्य संतान के लिए पिता राजा से बढ़कर होता है। पिता ही वह व्यक्ति होते हैं जो आजीवन अपनी संतान की उन्नति, सुरक्षा, जीवन निर्वाह, की जिम्मेदारी बिना किसी विशेष प्रत्यक्ष प्रतिसाद के खुशी खुशी उठाते हैं।
बंधुओं,
पिता ही आजीवन उस संघर्ष में युद्धरत रहते हैं जिसका अंतिम उद्देश्य उसके परिवार की आवश्यकता की पूर्ति होता है संभवत इसीलिए पिता की तुलना मकान की उस क्षत से की जाती है जो हर विपरीत परिस्थिति को ओढ़ लेती हैं। पिता के होने तक ही इंसान मीठे सपनों की चादर ओढ़ कर जी सकता है, पिता ही वह साकार जीवंत मूर्ति है जो प्रति पल त्याग और बलिदान के द्वारा जीवन ऊर्जा की उजास भरते हैं।
भगनियों,
हमने कहीं पढ़ा था कि किसी ने मां से पूछा वह पिता को सम्मान, समर्पण क्यों देती हैं तो उस मां ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया क्योंकि पिता से मिलकर ही आत्मा से परमात्मा तक की यात्रा संभव होती है। वह पिता ही तो होते हैं जो हमारी छोटी – बडी खुशियों के लिए अपने बड़े से भी बड़े सपनों को त्याग देते हैं।
हम सभी पिता का स्मरण करते हुए निश्चित रूप से अपने पिता के साथ बिताए हुऐ पलों को स्मरण कर आनंदित होते हैं भावुक होते हैं। असंभव को संभव बनाने वाले हर पिता, हर पिता के रूप में हर सुपरहीरो के स्वरुप को कोटि कोटि नमन।
प्रयास:- पवनेश मिश्रा
One Reply to ““कल्प संवादकुंज – पिता साक्षात सुपर हीरो””
Leave A Comment
You must be logged in to post a comment.
Kalpkatha
जो हमारी छोटी – बडी खुशियों के लिए अपने बड़े से भी बड़े सपनों को त्याग देते हैं।
हर पिता के रूप में हर सुपरहीरो के स्वरुप को कोटि कोटि नमन।