
“कल्प संवादकुंज – पितृपक्ष – आस्था और विज्ञान का संगम”
- पवनेश
- 21/09/2024
- लेख
- प्रतियोगिता
- 0 Comments
राधे राधे सभी को,
कल्प संवादकुंज के वर्तमान विषय पितृ पक्ष – आस्था और विज्ञान का संगम पर अपने विचारों को अभिव्यक्त करने के पूर्व हम अपने समस्त श्रद्धेय पितृ जनों को कोटि- कोटि वंदन करते हैं जिनकी संतति के रुप में हमें जीवन मिला। जिनके संस्कारों और आशीर्वाद से हम आस्थावान जीवनशैली के सहभागी हैं।
“पितरों की स्मृति में जागृत आस्था प्रबल,
श्रद्धा के दीप जलें, तर्पण हो अटल।
विज्ञान कहे, यह मन की एक साधना है,
भावनाओं में बसी गहरी आत्मा है।”
मित्रों,
भारत की संस्कृति और परंपराएँ अनगिनत आस्थाओं और विश्वासों से समृद्ध हैं। इन्हीं परंपराओं में से एक है ‘पितृ पक्ष’, जिसे भारत में एक विशेष महत्त्व प्राप्त है। यह समय न केवल श्रद्धा और भक्ति का होता है, बल्कि हमारे पूर्वजों को सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करने का भी अवसर होता है। पितृ पक्ष, जिसे ‘श्राद्ध’ भी कहा जाता है, आध्यात्मिक दृष्टि से हमारे पूर्वजों की आत्माओं की शांति के लिए समर्पित है, जबकि आधुनिक विज्ञान इसे परिवार, समाज और प्रकृति के साथ जुड़ाव की भावना के रूप में भी देखता है। आज हम पितृ पक्ष को आस्था और विज्ञान के दृष्टिकोण से समझने का प्रयास करेंगे।
साथियों,
पितृ पक्ष भाद्रपद महीने की पूर्णिमा से प्रारंभ होकर आश्विन महीने की अमावस्या तक चलता है, जिसमें कुल सोलह दिन होते हैं। यह समयकाल हिंदू धर्म में बहुत पवित्र माना जाता है, क्योंकि इसे हमारे पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष प्राप्ति के लिए उपयुक्त समय माना जाता है। इस दौरान व्यक्ति अपने दिवंगत पूर्वजों की आत्मा के लिए तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध कर्म करता है।
दोस्तों,
‘श्राद्ध’ शब्द की उत्पत्ति ‘श्रद्धा’ से हुई है, जिसका अर्थ है श्रद्धा से किया गया कर्म। पितरों के लिए श्रद्धा से किया गया यह कर्म उनकी आत्मा को शांति प्रदान करने का माध्यम माना जाता है। इसमें लोग विशेष मंत्रों के साथ जल, तिल, जौ और कुशा का उपयोग करके तर्पण करते हैं। यह प्रक्रिया दिवंगत आत्माओं को तृप्त करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए की जाती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, इस दौरान पितर पृथ्वी पर आते हैं और अपने परिजनों के द्वारा किए गए कर्मों को स्वीकार करते हैं।
भाइयों,
पितृ पक्ष केवल आध्यात्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है। इस दौरान व्यक्ति अपने पूर्वजों के योगदान और उनके द्वारा प्रदान किए गए संसाधनों को याद करता है। यह एक अवसर होता है जब हम आंशिक अथवा पूर्ण रूप से अपने परिवार के सदस्यों के साथ एकत्रित होते हैं। स्मृति और वैचारिक रुप से अपनी जड़ों से जुड़ते हैं और उन मूल्यों को सहेजने का प्रयास करते हैं जो हमें हमारे पूर्वजों से प्राप्त होते हैं।
बहिनों,
भारतीय समाज में पारिवारिक सामंजस्य और सामूहिकता को हमेशा से विशेष महत्त्व दिया गया है। पितृ पक्ष इसी सामूहिकता और बंधन को प्रकट करने का एक अवसर है। यह परंपरा हमें यह सिखाती है कि हमारे जीवन की जड़ें हमारे पूर्वजों में निहित हैं, और उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना हमारा कर्तव्य है। परिवार के बुजुर्गों की सेवा और सम्मान की भावना इस प्रक्रिया का अभिन्न हिस्सा है।
बन्धुओं,
यदि हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण से पितृ पक्ष को देखें, तो यह मनोवैज्ञानिक और सामाजिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण प्रतीत होता है। आधुनिक विज्ञान ने यह सिद्ध किया है कि व्यक्ति का मानसिक स्वास्थ्य, उसके सामाजिक और पारिवारिक संबंधों से गहराई से जुड़ा होता है। पितृ पक्ष का उद्देश्य हमें हमारे अतीत से जोड़ना है, जिससे हम अपने वर्तमान को बेहतर बना सकें और भविष्य के लिए दिशा प्राप्त कर सकें।
“कृतज्ञता से भरता है मन का हर कोना,
सम्बंधों का सजीव स्वर, यह अमृत सोना।
जल-अन्न में समाहित प्रकृति का संदेश,
संरक्षण का सृजन, जीवन का परिवेश।।”
भगिनियों,
पितृ पक्ष के वैज्ञानिक दृष्टिकोण को देखा जाए तो सामान्य रुप से यह समय दो मौसम के मध्य का समय अर्थात बारिश और सर्दियों के मौसम मध्य का समय है जिसमें विभिन्न संक्रमण अधिक तीव्रता से सक्रिय होते हैं संभवतः इस बिन्दु को ध्यान रखते हुए हमारे पूर्वजों ने पितृ पक्ष में सात्विक आहार, नियम, संयम, को जोड़कर निरोग रहने का उपाय किया। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से एक अन्य विचार भी समाज में प्रचलित है कि श्राद्ध कर्म में सर्वाधिक महत्वपूर्ण नदी में स्नान और तर्पण को बताया गया है। भारतवर्ष में अधिकांश नदियां पर्वत श्रृंखलाओं से निकलती है जो कि विभिन्न जीवन दायिनी आरोग्य औषधियों का स्त्रोत हैं अमूमन पितृ पक्ष तक पर्वतमाला की औषधियों, खनिजों, और मृदा, को विशाल स्तर पर समाहित कर वर्षा जल नदियों के द्वारा भारतवर्ष के मैदानी, और तटीय क्षेत्रों में पहुंच जाता है और उस जल में स्नान करने से, उसके सम्पर्क में रहने से, आस्थावान जनों को निरोगी होने में सहायता मिलती है। इसके अतिरिक्त शरद ऋतु सामान्य रुप से पशु पक्षियों का गर्भधारण काल होता है संभवतः इसलिए भी काक, गौ, श्वान, आदि पशु पक्षियों को पोषण प्राप्त हो इसलिए धार्मिक भावनाओं के साथ जोड़कर उनको विशेष आहार प्रदान करने की व्यवस्था की गई।
प्रिय देशवासियों,
पितृ पक्ष का वैज्ञानिक पक्ष केवल मानसिक शांति तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसका एक पर्यावरणीय दृष्टिकोण भी है। पिंडदान और तर्पण जैसे कर्मकांडों में जल और अन्न का उपयोग किया जाता है, जो प्रकृति के प्रति हमारे सम्मान को भी दर्शाता है। यह परंपरा हमें सिखाती है कि हम प्रकृति के अंश हैं और इसे संरक्षित करना हमारा कर्तव्य है। पितृ पक्ष के दौरान नदी, पेड़ और जल स्रोतों का महत्व बढ़ जाता है, जो पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण संदेश देता है।
अपने विचारों को विराम देने के पूर्व हम यही कहना चाहते हैं कि पितृ पक्ष भारतीय परंपरा का एक अभिन्न हिस्सा है, जो आस्था, श्रद्धा और विज्ञान का अद्वितीय संगम प्रस्तुत करता है। यह समय हमें हमारे पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और उनके द्वारा दिए गए मूल्यों को सहेजने का अवसर प्रदान करता है। यह न केवल धार्मिक कर्मकांडों का समय होता है, बल्कि यह आत्मविश्लेषण, आत्मसमर्पण और समाज के प्रति अपने कर्तव्यों को याद करने का भी एक माध्यम है विज्ञान के दृष्टिकोण से भी पितृ पक्ष मानसिक शांति, सामाजिक सामंजस्य और पर्यावरणीय संतुलन को प्रकट करता है। इस प्रकार, पितृ पक्ष न केवल हमारी आध्यात्मिक धरोहर है, बल्कि यह हमें हमारे पारिवारिक, सामाजिक और पर्यावरणीय उत्तरदायित्वों की भी याद दिलाता है। अपनी अभिव्यक्ति के अंत में एक बार फिर श्रद्धेय पितृ जनों वंदन करते हुए सहज ही मन में भाव आता है।
“मनोविज्ञान कहे, जुड़ाव का यह पर्व,
पितरों से मिलाता, देता संतुलित गर्व।”
Leave A Comment
You must be logged in to post a comment.