
!! “कल्प साप्ताहिक आमंत्रण : कल्प/दिसम्बर/२०२४/ब” !!
- Kalpkatha
- 09/12/2024
- लेख
- प्रतियोगिता
- 1 Comment
✍🏻 !! “साप्ताहिक आमंत्रण – कल्प/दिसम्बर/२०२४/ब” !! ✍🏻
📜 विशिष्ट आमंत्रण क्रमांक :– !! “कल्प/दिसम्बर/२०२४/ब” !! 📜
📚 विषय :- !! “विवाहोत्सव” !! 📚
⏰ समयावधि :- दिनाँक ०९/१२/२०२४ प्रातः ८.०० बजे से १३/१२/२०२४ रात्रि १०.०० बजे तक ⏰
🪔 विधा :- !! “काव्य” !! 🪔
📢 भाषा :- !! “हिन्दी, संस्कृत” !! 📣
⚜️ विषय विशेष :- वैवाहिक कार्यक्रमों से जुड़े अनुभव का रोचक उल्लेख।। ⚜️
💎 !! “आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं” !! 💎
📢 कल्प कथा के नियम :- 📢
✍🏻 कल्प आमंत्रण प्रतियोगिता में रचना भेजते समय रचना में ऊपर आमंत्रण क्रमांक, विषय एव शीर्षक और नीचे लेखक/लेखिका का नाम होना आवश्यक है। उसके बिना रचनाएं सम्मिलित नहीं की जायेंगी।
✍🏻 कल्पकथा वेबसाइट पर रचना प्रतियोगिता श्रेणी के अंतर्गत लिखने पर प्रति प्रतियोगिता प्रमाणपत्र एवं मासिक विशेष सम्मान दिया जाएगा।
✍🏻 साप्ताहिक आमंत्रण में सभी प्रमाणपत्र श्रेष्ठ, उत्तम और सहभागिता रूप में तीन प्रकार के रहेंगे।
✍🏻 मासभर सभी आमन्त्रणों में प्रतिभाग करने पर श्रेष्ठ, किन्ही तीन में प्रतिभाग करने पर उत्तम और दो में प्रतिभाग करने पर सहभागिता प्रमाणपत्र रहेगा।
✍🏻 साप्ताहिक आमंत्रण में विविध विधाओं में लिखने वाले लेखकों को “कल्प कलम श्री” सम्मान से सम्मानित किया जायेगा।
✍🏻 दैनिक आमंत्रण में आई रचनाओं के सभी श्रेष्ठ रचनाकारों को “कल्प विधा श्री” सम्मान से सम्मानित किया जायेगा।
✍🏻 कल्पकथा की ऑनलाइन काव्य गोष्ठियों में प्रतिभागियों को “कल्प काव्य श्री” सम्मान से सम्मानित किया जायेगा।
✍🏻 आपकी सभी रचनाएं स्वरचित एवं मौलिक होनी चाहिए। किसी भी प्रकार के कॉपीराइट इशू के लिए लेखक स्वयं जिम्मेदार होगा।
✍🏻 कल्पकथा पर किसी भी प्रकार का व्यक्तिगत, सामुहिक या राजनैतिक प्रचार-प्रसार पूर्णतः प्रतिबंधित है।
✍🏻 यदि आप कल्पकथा संदेशों से इतर कोई व्यक्तिगत, राजनैतिक या सामुहिक विज्ञापन करना चाहते हैं तो आप संस्थापक निर्देशक या संस्थापक निदेशक कोषाध्यक्ष को इसका शुल्क जमा करवा कर प्रचार-प्रसार कर सकते हैं।
✍🏻 यदि आप बिना अनुमति लिये किसी भी प्रकार का राजनैतिक, व्यक्तिगत या सामुहिक लिंक, पोस्ट या फिर कोई चित्र/चलचित्र आदि डालते हैं तो आप पर तुरंत 25000/- रुपये का जुर्माना लगाया जायेगा, जो संस्था नियमों के अनुसार अवश्य ही देय होगा।
✍🏻 लिखते रहिये, 📖 पढते रहिये और 🚶 बढ़ते रहिये। 🌟
✍🏻 कल्प आमंत्रण अध्यक्ष
—: कल्पकथा प्रबंधन :—
One Reply to “!! “कल्प साप्ताहिक आमंत्रण : कल्प/दिसम्बर/२०२४/ब” !!”
Leave A Comment
You must be logged in to post a comment.
पवनेश
⛩️ ✍🏻 !! “साप्ताहिक आमंत्रण – कल्प/दिसम्बर/२०२४/ब” !! ✍🏻 ⛩️
📜 विशिष्ट आमंत्रण क्रमांक :– !! “कल्प/दिसम्बर/२०२४/ब” !! 📜
📚 विषय :- !! “विवाहोत्सव” !! 📚
🪔 विधा :- !! “काव्य” !! 🪔
📢 भाषा :- !! “हिन्दी,” !! 📣
🎯 “!! शीर्षक:- जूता चुराई की रस्म !!” 🎯
मंडप में शहनाई बज रही, सबका मन खिल रहा था,
दूल्हा मुस्कान लिए बैठा, दूसरी ओर हंगामा बढ़ रहा था।
सालियां आईं चालाकी से, मुस्कान दबाए होंठों में,
जूते चुराने का खेल सजा, हलचल मची थी कोनों में।।
दूल्हे के साथियों ने कहा, “दूल्हे के जूते हैं हमारे अभिमान,
छू भी लिया तो देख लेना, झेलना पड़ेगा तगड़ा नुकसान।”
सालियों ने तिरछी नजर से, मुस्काकर दी तगड़ी चुनौती,
“हम हैं इस खेल की महारथी, ये बाजी तो हमारे वश में होती।”
लड़कों ने घेरा बनाया, जूते पर पहरा कड़ा किया,
सालियां बोलीं, “चालाकी छोड़ो, ये खेल हमने भी बड़ा किया।”
धक्का-मुक्की, हंसी-ठिठोली, मंडप गूंजा शोर से,
सालियों ने अपनी चाल चली, घेर लिया चारों ओर से।
लड़कों ने भागने की कोशिश की, सालियां पीछा कर आईं,
एक ने जूते को छीन लिया, बाकी ने आवाजें लगाईं।
“जीजा के चमचों, फंस गए आप, जल्दी से हार मानो,
वरना ये जूते तो गए समझो, जेब भी खाली जानो।”
लड़कों ने कहा, “ये धोखा है, ऐसा व्यवहार सही नहीं,
जूते चुराने का अधिकार है तुम्हारा, मगर मांग तो बताओ सही।”
सालियां बोलीं, “हमसे पंगा लिया, यह तो भूल हो गई भारी,
सोने के हार से ही होगी, जीजा के जूते की वापसी की सवारी।”
जीजाजी ने मुस्काकर कहा, “देवियों, इतना मत बोलो रस्म को खत्म करो,
एक एक चॉकलेट ले लो पार्क की, हंसकर जूते लौटाओ मधुर रस्म करो।”
सालियां बोलीं, “टोटका नहीं चलता, ये रस्में हैं रस्मों का अपना मजा है,
जब तक सोने के हार न दोगे, तब तक बिना जूते के बैठो ये जूता की सजा है।”
साथियों ने सिर जुटाए, जीजाजी भी सोच में डूबने लगे,
बात जूतों की नाक पर बनी, वापसी की तरकीब सोचने लगे।
किसी ने गाया गाना, किसी ने की मिन्नत, किसी ने उड़ाई खिल्ली,
जूते दबाए बैठी सालियों ने बता दिया दूर बहुत है दिल्ली।।
वक्त गुजरा, नौंक झौंक के खेल में सब खुशी से खो गए
दूल्हे के साथियों ने कब्जा लिए जूते, जो समझे थे सो गए।
सालियों की उदासी देख जीजाजी ने हंसकर कहा, “चालाकी तो खूब दिखाती हो,
मान लिया हम हारे, आप जीती, मगर रिश्तों को प्यार से निभाती हो।।”
जीतकर भी हार मान गए जीजाजी, बोले, “ये लो अपने लिए सोने के हार,
ब्याह की रस्मों के इस प्यार भरे खेल में, बंधा है रिश्तों का तार।”
सालियों ने खुशी से झूमकर, दूल्हे की बातों का स्वागत किया,
हंसी-ठिठोली की रस्म ने, हर दिल को खुशियां दी और जीत लिया।।
नौंक झौंक की रस्म खत्म हुई, माहौल सजा, सबने आनंद उठाया,
जूते चुराई की ये अनोखी रस्म, जिसने देखा बहुत खूब कहकर मान बढ़ाया।
वर पक्ष, कन्या पक्ष, दूल्हे के साथी और सालियां सबके चेहरे खिल उठे,
सालियां और जीजाजी के इस खेल ने, रिश्तों में गर्माहट के कहकहे भर दिए।।
✍️:- पवनेश मिश्रा।