!! “कांता चाची” !!
- Radha Shri Sharma
- 22/04/2024
- कहानी
- स्त्री विमर्श
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!! “कांता चाची” !!
कांता चाची हमारे मोहल्ले में बड़ी ही बदनाम थी। जब भी कांता चाची कहीं आती या जाती, तो ज्यादातर लोग मुँह फेर लेते। जबकि मुझे कांता चाची से बात करना बहुत अच्छा लगता था। उनकी वो मीठी बोली में डॉली बिटिया कहकर जब वो मुझे संबोधित करती थी तो उनके चेहरे से वात्सल्य की बाढ़ छलक जाती थी। उनकी आवाज इतनी मधुर थी कि एक बार को कोयल भी सोच में पड जाए। और इतनी सुरीली मानो साक्षात माता सरस्वती ही गा रही हों। सुरों की बहुत अच्छी पहचान थी उन्हें। उन्होंने मुझे कई तरह से सुर साधने सिखाये। हम भी तरह-तरह से सुर निकालने के अभ्यस्त हो चले थे। माँ ने हमें चाची से मिलने से कभी नहीं रोका और ना ही पापा ने। बल्कि कई बार तो उनके पास मुझे छोड़कर वो निश्चिंत हो जाते थे। उस समय मैं बहुत छोटी थी तो मुझे ज्यादा पता नहीं चलता था कि क्या बात है। कुछ समय बाद मैं पढ़ने के लिए बाहर चली गई। और उसके बाद वहीं मेरी जॉब लग गई और कुछ समय बाद ही शादी भी हो गई। मेरी शादी में चाची मेरे गले लग कर खूब रोई। ऐसा नहीं है कि उनके अपने बच्चे नहीं थे। उनके दो बेटे थे पर वे भी अपनी माँ का सम्मान नहीं करते थे। शादी के बाद मैं भी काफी कुछ समझने लगी थी। एक दिन मैंने माँ से पूछ ही लिया कि ऐसा क्या है कि सब चाची को हिकारत की नजर से देखते हैं? ऐसा तो है नहीं कि ये जो उनसे इस तरह का व्यवहार करते हैं, उनसे ज्यादा गुणवान हैं? फिर चाची को इतनी उपेक्षा क्यों सहनी पड़ती है सबकी? ऐसा क्या किया है चाची ने?…. हमसे जब और सहन नहीं हुआ तो हमने माँ के सामने अपने प्रश्नों का पिटारा खोल दिया। उसके बाद जो माँ ने बताया, उसे सुनकर हम सन्न रह गए। हमें तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि कोई किसी के साथ इतना भयानक अत्याचार भी कर सकता है और पीड़ित को ही उपेक्षा भी सहनी पड़े? माँ ने जो कुछ हमें बताया वो हम आप सब को भी बताते हैं। फिर आप सब ही निर्णय कीजिए कि ये कहाँ तक उचित और न्यायपूर्ण है………
तेरी चाची जब ब्याह कर गाँव में आई तो मात्र सोलह साल की थी। आँखों में गज़ब की चमक और गले में माँ सरस्वती का वास, पतली सी छरहरी काया लिए जो भी पहनती, खिल उठती। रंग रूप की बहुत सुन्दर ना होते हुए भी वो आकर्षक व्यक्तित्व की स्वामिनी थी। हर काम में तेज, हँसमुख स्वभाव की कांता जल्दी ही सारे गाँव की आँखों में चढ गई। हर कोई तेरे चाचा प्रकाश के भाग्य को सराहने लगा कि भई प्रकाश तो किस्मत का बडा धनी है। कैसी चंचल कामिनी ब्याह कर आई है उसके। उसकी तो दिन होली और रात दिवाली है। इसी तरह पाँच साल बीत गए। कांता एक बेटे की माँ भी बन गई थी। और इक्कीस बाइस साल की उम्र में उसके रूप में एक अलग ही निखार आ गया था। सोलह साल की अल्हड उम्र से निकल कर वो यौवन के किले में प्रवेश कर चुकी थी। जहां हर लडकी पर रूप की बहार छा जाती है, वो अपने जीवन के सबसे सुन्दर पडाव पर होती है। कांता भी उस सबसे अछूती नहीं थी, उस पर उसका कोयल से भी मीठा स्वर उसका शत्रु बन रहा था।
एक बार तेरा चाचा अपने किसी दोस्त को घर खाने पर लाया। चाचा क्या लाया वो खुद ही जबरदस्ती मेहमान बनकर तेरे चाचा के साथ चला आया। उसने तेरी चाची के कई किस्से सुन रखे थे। उसके मन में कांता को लेकर पाप था, ये बात प्रकाश देख नहीं पाया। जब उसने घर आकर कांता से बात की तो कांता की स्त्री सुलभ छटी इंद्री जागृत हो गई। कांता ने प्रकाश को इशारे से बुलाया और उसे बताया कि इस आदमी के मन में खोट है और इसे यहां से जल्दी चलता करो। उस दिन तो वो आदमी चुपचाप खाना खाकर चला गया। पर उस की गंदी आँखे कांता पर टिक गई थी। वो आने बहाने कांता को टक्कर मार कर चलने लगा। और बातों ही बातों में कांता के लिए गलत गलत बातें कहने लगा। कुछ ही समय में कांता के बारे में सारे गाँव में उल्टी सीधी बातें फैलने लगी। एक दिन वो आदमी ऐसे ही जानबूझकर कांता से चार लोगों के सामने टकराया तो उसके माफी मांगने से पहले ही कांता ने एक समसमाता हुआ जोरदार तमाचा उसके मुँह पर जड कर बड़े ही विनम्र पर तीखे शब्दों में बोली, माफ करना देवर जी, गलती से हाथ हिल गया मेरा। कांता भी उसकी नीच हरकतों के कारण बौखलाई हुई थी, इसलिए उसने उसे उसी की भाषा में उत्तर दिया। इस घटना से उसका कांता प्रति उगला हुआ सारा जहर केवल उसकी फैलाई अफवाह बन कर रह गया।
वो आदमी अपनी इस हार से और ज्यादा बौखला गया और उसने साम, दाम, दंड और भेद की नीति अपनाते हुए कांता से हर समय बदला लेने की फिराक में रहता। कांता भी उसके हर वार का मुँह तोड जवाब देती। जब वो सीधे सीधे कांता से टक्कर ना ले सका तो उसने प्रकाश के मन में कांता के प्रति शक भरना शुरू किया। धीरे-धीरे ये शक गहरा होने लगा। प्रकाश को उसने जुए की लत भी लगा दी। एक दिन उसने धोखे से प्रकाश से जुए में कांता को जीत लिया। जुए के नशे में प्रकाश सही गलत की पहचान भी भूल गया और अपनी पत्नी को ही जुए की बलि वेदी पर चढ़ा दिया। और वो नीच इसी का फायदा उठाकर उसके कमजोर दिनों में जब वो घर में अकेली थी, बेशर्मों की तरह पहुँच गया और उसे बर्बाद करने लगा। कांता अपनी अस्मिता बचाने के लिए गुहार लगाने लगी। पर कोई उसकी सहायता के लिए नहीं आया। हर तरफ से हताश और निराश कांता ने निश्चय किया कि या तो आज ये नहीं या मैं नहीं। उसके हाथ खेत काटने का दरांती लग गई और उससे पहले तो उसकी आँख फोडी और फिर उसके अंग ही काट दिए और कहा कि अब तू किसी दूसरी स्त्री तो क्या अपनी पत्नी के योग्य भी नहीं रह गया। वो खून से लथपथ वहीं गिर गया। कुछ देर में ही उसके घर में भीड़ लग गई। जब प्रकाश ने ये सब देखा तो उसे अपनी करनी पर बहुत पछतावा हुआ। कांता भी निढाल होकर हाथ में खून से सनी दरांती लिए हुए वहीं बैठी हुई थी। उस घटना के बाद उस आदमी को हस्पताल पहुंचाया। पर ये खबर कानों कान गाँव के बाहर भी नहीं गई और उसे चुप दबा दिया गया। पर गाँव वालों ने कांता से दूरी बनानी शुरू कर दी। सबको ये लगता था कि ये किसी को भी नुकसान पहुंचा सकती है। कोई भी उसकी मानसिक स्थिति नहीं समझा। यहां तक कि उसके अपने बेटे भी उसे ही गलत समझते रहे और कभी भी अपनी माँ का सम्मान नहीं किया। प्रकाश को तो उसके बाद से कभी उसने अपने पास फटकने ही नहीं दिया ये कह कर कि जो पुरुष अपनी पत्नी को कुत्तों के सामने मांस की तरह डाल दे वो पति के स्थान पर रहने के योग्य नहीं है। कुछ समय तक तो प्रकाश उसकी बात सुनकर आत्म पश्चाताप में डूब जाता रहा। पर फिर उसके सिर पुरुषत्व का अहंकार सिर पर चढ़ कर बोलने लगा और वो अपनी जरूरतें पूरी ना होने पर उसे मार पीट कर आत्म संतुष्टि कर लेता और गाँव में चार जगह बैठ कर उसकी बुराई करता। पति के द्वारा बुराई किए जाने पर वो भी लोगों के बीच बदनाम हो गई। पूरी तरह निर्दोष होते हुए भी वो लोगों के ताने सहने को विवश थी। सारे गाँव में केवल मैं और तेरे पापा ही सारी सच्चाई जानते थे। हमने लोगों को बहुत समझाने की कोशिश की पर कोई फायदा नहीं हुआ। आज इसके बेटे भी अपनी अपनी पत्नियों को लेकर इसे छोड़कर चले गए। अब ये अकेली रह गई। सारी जमीन भी उन्हीं के नाम हो गई और ये कांता अकेली और असहाय रह गई।
माँ के मुँह से चाची के साथ घटी इस घटना ने मुझे अंदर तक हिला कर रख दिया। जिससे मैंने इतनी ममता पाई, जिसके आँचल की छाँव में मुझे सदा वात्सल्य भरे स्नेह और एक आत्म सुरक्षा की भावना ने सहेजे रखा, जिससे हमने अपने जीवन को जीने की कला सीखी, उस माँ को ऐसे देख मेरा अन्तर हृदय चीत्कार कर उठा और मैंने एक निर्णय तुरंत कर लिया। मैंने अपने पति को फोन किया और उन्हें सारी बात बता कर चाची को अपने साथ लाने का निर्णय सुना दिया। मेरे पति ने भी सहर्ष मेरा साथ दिया। पहले तो चाची मानी नहीं पर माँ पापा और मेरे समझाने पर मान गई। और मैं उन्हें लेकर अपने ससुराल आ गई। मेरे ससुर जी ने उन्हें अपनी बहन का सम्मान दिया और सास ने ननद का। मेरे और मेरे पति के लिए तो वे माँ ही थीं।
इति श्री 🙏🏻🌷🙏🏻
आपकी अपनी दीदी
✍🏻 ©️ राधा श्री शर्मा
One Reply to “!! “कांता चाची” !!”
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पवनेश
कांता चाची,
पात्र ने समाज के उस विदूषक चरित्र को उजागर किया है जिसमें कमजोर को दोषी मानकर अघोषित दण्ड भोगने के लिए मजबूर कर दिया जाता है। दूसरा सच यह है कि समाज के लगभग हर भाग और कालखंड में कमोबेश ऐसे ही संघर्षों से जूझकर अनेकों कांता चाची समाज की विद्रूपता के जहर को पी रही हैं। राधे राधे दीदी 🙏🌹🙏