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“कृत्रिम बुद्धिमत्ता (ए आई) : भविष्य मनुष्य के हाथों में”

       राधे राधे कल्पकथा परिवार, “कृत्रिम बुद्धिमत्ता (ए आई) : भविष्य का दर्पण” विषय पर अपने विचारों की शुरुआत करते हुए हम कहना चाहते हैं।

“जब यंत्रों में अंकुरित हुई बुद्धि की चेतना,

तब मानवता ने पाया नव युग का उजास।

संगणक से संवाद का सपना जो था कल,

वह आज बन चुका यथार्थ का प्रकाश।”

 

     मित्रों,

            विज्ञान और तकनीकी की यात्रा जब भौतिक सीमाओं को लाँघकर मानसिक क्षमताओं की देहरी तक पहुँची, तब ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता’ (ए आई) का प्रादुर्भाव हुआ। यह कोई सामान्य आविष्कार नहीं, अपितु वह क्रांतिकारी चिंतन है जो भविष्य के दर्पण में झाँकने का साहस प्रदान करता है। मानव मस्तिष्क की सृजनात्मकता और मशीन की गणनात्मक क्षमता के संयोग से उपजी यह शक्ति आज न केवल विज्ञान की प्रयोगशालाओं में बल्कि जनजीवन के हर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है।

 

       साथियों,

              कृत्रिम बुद्धिमत्ता, वह विज्ञान है जो मशीनों में सोचने, निर्णय लेने, सीखने और समझने की क्षमता उत्पन्न करता है। यह मात्र गणना नहीं, प्रत्युत अनुभवजन्य बुद्धि का अनुकरण है। यंत्र अब केवल संकेतों पर संचालित नहीं होते, वे विकल्पों का मूल्यांकन करते हैं, समस्याओं का समाधान खोजते हैं और लगातार अपने अनुभवों से सीखते हैं।

“नव यंत्र जब सीखें नीति की बातें,

बुद्धि हो जाए जब संवेदना की साथी।

तब मानव रचे अपनी ही प्रतिछाया,

एक और सृष्टि – एक नई परिभाषा रचती।”

 

    दोस्तों, 

         कक्षा की दीवारें अब सीमित नहीं रहीं। ए.आई. आधारित ‘एड-टेक’ प्लेटफ़ॉर्म जैसे कि ‘अनअकैडमी’, ‘कोर्सेरा’ या ‘चैटजीपीटी’ ने शिक्षा को व्यक्ति विशेष के अनुकूल बना दिया है। विद्यार्थी की गति, शैली और अभिरुचि के अनुसार पाठ योजना बदल जाती है। शिक्षक अब सहायक के रूप में हैं, और ए आई ज्ञान का समुद्र बनकर सुलभ हो चुका है।

 

    बन्धुओं, 

          कृत्रिम बुद्धिमत्ता चिकित्सा क्षेत्र में दैवीय वरदान स्वरूप है। रोग के पूर्वानुमान, निदान, औषधि चयन, और यहाँ तक कि शल्य क्रिया में भी एआई की भूमिका अभूतपूर्व है। आई बी एम बोस्टन हेल्थ जैसे प्लेटफॉर्म्स कैंसर जैसी जटिल बीमारियों में भी उपचार की सटीक दिशा प्रदान करते हैं।

“अब औषधि नहीं खोजती केवल वैद्य की दृष्टि,

बल्कि डेटा के दरबार में बिमारी कहती है वंदना।

एआई की बुद्धि से खुलते हैं रोग के रहस्य,

चिकित्सा बन रही है नवयुग की यज्ञविधि।”

 

     भगिनियों, 

            जहाँ एक ओर एआई ने उत्पादकता, गति और सटीकता को बढ़ाया है, वहीं दूसरी ओर यह रोजगार के पारंपरिक स्वरूपों के लिए चुनौती बनकर खड़ा हुआ है। अनेक क्षेत्र, विशेषकर सेवा उद्योग, लेखांकन, ट्रांसलेशन, परिवहन इत्यादि में मानव श्रम की आवश्यकता घट रही है। परन्तु नये अवसर भी जन्म ले रहे हैं – डेटा साइंस, मशीन लर्निंग, एथिकल एआई, साइबर सुरक्षा जैसे क्षेत्र अब भविष्य की कुंजियाँ हैं।

 

     भाईयों,

            क्या मशीनें आत्मा रहित होते हुए भी बुद्धि से युक्त हो सकती हैं? क्या निर्णय की क्षमता मात्र तर्क से आती है, या करुणा भी आवश्यक है? जब एक रोबोट युद्धभूमि में निर्णय ले, तब क्या वह मानवाधिकारों का पालन करेगा? यह बहस केवल तकनीकी नहीं, दार्शनिक और नैतिक भी है। ‘ए आई एथिक्स’ का उदय इसी चिंतन का परिणाम है।

“तर्क की तलवार जब संवेदना से विहीन हो,

तब यंत्रों की सत्ता बन सकती है संकट का अर्जन।

अतः चाहिए अंकुश, नीति और मर्यादा,

कि बुद्धि न बने विनाश का गर्जन।”

 

      बहिनों,

           आगामी दशक मानव-यंत्र सहयोग का स्वर्णयुग हो सकता है। कृषि में ड्रोन आधारित निगरानी, जलवायु परिवर्तन का डेटा विश्लेषण, अंतरिक्ष अन्वेषण में सहायक रोबोट, न्यायालयों में ए आई जज की भूमिका – यह सब अब परिकल्पना नहीं, यथार्थ की दस्तक हैं। भारत ने ‘डिजिटल इंडिया’ और ‘नेशनल ए आई मिशन’ जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से इस युगांतकारी परिवर्तन को अपनाने का प्रयत्न किया है। आयुष्मान भारत से लेकर ग्रामीण कृषि सहायता तक, ए आई को जनसेवा के माध्यम के रूप में रूपांतरित करने का प्रयास हो रहा है किन्तु साथ ही डिजिटल साक्षरता, डेटा गोपनीयता और न्यायपूर्ण तकनीकी पहुँच जैसे प्रश्नों का समाधान आवश्यक है।

 

      मेरे स्वजनों, 

           एआई अब चित्रकार बनता है, कवि की शैली में काव्य रचता है, संगीत रचता है, उपन्यास भी लिखता है। परंतु क्या उसकी रचना ‘अनुभवजन्य भाव’ से युक्त होती है? क्या पीड़ा, प्रेम और करुणा के सूक्ष्म तंतु किसी एल्गोरिथ्म में समा सकते हैं? यही प्रश्न हमें रचनात्मकता की आत्मा तक ले जाते हैं।

“काव्य की कोख से उपजते भाव,

नव यंत्र कहे, ‘मैं भी हूँ भावप्रवण’।

पर क्या वियोग की वेदना समझ पाएंगे कोड,

या रह जाएगी उनकी छाया केवल व्यावसायिक धन?”

 

      मेरे प्रिय देशवासियों, 

             एआई की स्वायत्तता यदि मानव नियंत्रण से बाहर हो जाए, तो क्या होगा? क्या शस्त्रागारों में एआई आधारित निर्णय प्रणाली का उपयोग उचित है? क्या यह तकनीक केवल कुछ शक्तिशाली कंपनियों के हाथ में ही केंद्रित हो जाएगी? इन प्रश्नों के उत्तर में छिपी है हमारी साझा ज़िम्मेदारी।

 

        अपने विचारों को विराम देने के पूर्व हम यही कहना चाहते हैं कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता न तो शत्रु है, न ईश्वर। यह एक औजार है – उसके स्वरूप का निर्धारण मानव करेगा। यदि इसे ‘दर्पण’ माना जाए, तो यह हमारी ही प्रवृत्तियों, लालसाओं, नैतिकताओं और बुद्धि का प्रतिबिंब प्रस्तुत करेगा।

“बुद्धि की इस यंत्र कथा में, मानव ही कथाकार हो,

नियंत्रण की डोरी उसके हाथ में, न यंत्रों से स्वीकार हो।

भविष्य का दर्पण हो उज्ज्वल, पर अंधकार न छाया पाए,

कृत्रिम बने सहायक बुद्धि, मानवता को न पछताए।।”

 

पवनेश

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