खोई हुई यादें
- पवनेश
- 2024-03-20
- लघुकथा
- खोई हुई यादें
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“रात के दो बजे थे।” पुराने खंडहर के सामने खड़े केशव के कानों में बासठ बरस पहले की वही उत्साहित आवाज एक बार फिर गूंजने लगी। “बड़े पीपल के उस तरफ़ से छम छम छम छम छम छम की आवाज आने लगी।”
सत्तर वर्षीय पण्डित केशवेंद्र शास्ञी को जीवन के परम् सत्य का साक्षात्कार हुए अभी महीना भर नहीं बीता था जिसमें उनके अग्रज ने नश्वर संसार से विदा ले ली थे।
“हमें लगा कि वहां कोई तो है।” उनकी आंखों के सामने वही निर्दोष बचपन की खोई हुई यादें तैरने लगी। “हमने तुरंत अपना दाहिना पैर घुटने तक झुकाया और कहा आ जाओ।”
उन दिनों गांव में अर्ध विक्षिप्त किंतु बच्चों के प्रिय राधू कक्का ख़ुद को तपस्वी ऋषि मानकर बच्चों को दिव्यास्त्र का प्रशिक्षण दिया करते थे। गांव घर के बड़ों की जानकारी के बिना राधू कक्का के पहले प्रशिक्षण कार्यक्रम में सफल हुए इकलौते प्रतिभागी केशव के बड़े भाई श्यामल अपनी इस सफ़लता पर फूले नहीं समाते थे।
“तुरंत हमारे हाथ में नीली रोशनी वाली तलवार आ गई।” श्यामल भाई की आवाज बिलकुल आस- पास से सुनाई देने लगी। केशव को लगा वह अभी भी आठ बरस का वही बच्चा है जो़ बड़े भाई के पीछे – पीछे चलने में ख़ुद को सुरक्षित मानता है। “हमने तलवार फैंक कर मारी।”
बचपन को याद करते केशव बचपन में ही पहुंच गए। बड़े भाई के पीछे खड़े उन्हें तत्कालीन समवय मित्रों के चेहरे पर तैरती खुशियों के साथ अज्ञात में रुचि की उत्सुकता पुनः जीवंत महसूस हुईं।
“पचास गज दूर जाकर तलवार गिरी तो नीली रोशनी से सब कुछ जगमगाने लगा।” केशव ने अपने दाहिने हाथ से टूटी दीवाल को उसी तरह पकड़ लिया जैसे बचपन में श्यामल भाई के पीछे खड़े होकर उनका हाथ पकड़ लिया था। “वहां तीन चुड़ैल थीं, उल्टे पांव, बड़े – बड़े दांत, और हाथों में से टपकता खून, तीनों नाच रही थीं।” श्यामल भाई की आवाज सुनकर सभी सहम गए थे। “जैसे ही तलवार की रोशनी उन पर पड़ी वह जलने लगी।”
बचपन की खोई यादों ने जहां बासठ बरस पहले उन समेत सभी समवय मित्रों में भय को बढ़ाकर भागने पर मजबूर कर दिया था। जबकि आज केशव वहीं उसी जगह पर दीवार के सहारे सिसकने लगे।
“भैया या या या या।” बिछोह के आवेग ने उनके हृदय को सेकड़ों शूल से बींध दिया।
“ओ भैया या या या या।” खोई हुई यादें करुण विलाप का रूप लेकर
बाहर निकलने लगी।
One Reply to “खोई हुई यादें”
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Radha Shri Sharma
बहुत सुन्दर भाव अभिव्यक्ति
बीती स्मृतियों की छवि सदैव मन के आँचल पर बनी रहती है, यदा-कदा स्मृति कोष से निकल कर आँखों के समक्ष चलचित्र की भाँति चलने लगती है।
राधे राधे 🙏 🌷 🙏