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घर सावन में बेटियाँ आती हैं

विशिष्ट आमंत्रण क्रमांक :– !! “कल्प/जुलाई/२०२५/अ” !! 

विषय :- !! “सावन और बेटी” !!

विधा :- काव्य 

भाषा :- हिन्दी 

 

शीर्षक: ” घर सावन में बेटियाँ आती है”

 

धूप से तपते आँगन में 

ज्यों पहली बारिश आती है..

घर सावन में बेटियाँ आती है…

 

झूम के मेघ बरसता हो..

चाहे दुर्गम रस्ता हो…

अपनी उतावली पर अक्सर 

अपना ही मन हँसता हो..

लेकिन उस उत्साह के आगे 

हर बाधा हट जाती है..

घर सावन में बेटियाँ आती है..

 

वही पुराने घर बाजार और 

रिश्ते नातों की पहेलियाँ..

कहीं अचानक मिल जाती है,

भूली बिसरी कुछ सहेलियाँ..

चार दिनों में चालीस यादें

मन मे रख कर ले जाती है..

घर सावन मे बेटियाँ आती है…

 

आँगन में हल्की हल्की धूप 

और पकवानों से भरी रसोई..

फिर भर जाते चाय के प्याले 

बात चले कोई ना कोई ..

बन के त्यौहारों सी रौनक,

घर का हर कोना महकाती है 

घर सावन में बेटियाँ आती है…

 

मन होने लगता भारी जब 

समय विदा का आता है..

घर से, घर को ही जाना है..

मन खुद को समझाता है..

जल्दी आने का वादा कर 

नम नयनों से मुस्काती है.. 

घर सावन में बेटियाँ आती है…

घर सावन में बेटियाँ आती हैं…

 

( स्वाति श्रीवास्तव)

   भोपाल

Swati Shrivastava

One Reply to “घर सावन में बेटियाँ आती हैं”

  • पवनेश

    राधे राधे स्वाति जी,
    बहुत सुंदर सृजन, बधाई।
    🙏🌹🙏

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