Dark

Auto

Light

Dark

Auto

Light

1751371345127

“दानवीर भामाशाह जी”

दानवीरता दीपशिखा बन, भामाशाह ने भारत गौरव पाया था।

धरा धरोहर का अर्पण जब मातृभूमि पर घोर अंधेरा छाया था।।

 

सह कुटुंब वह साथ डटे जब रण में प्रताप अकेले थे।

शौर्य-सिंह की बाँह बने जब सर पर शत्रुओं के रेले थे।।

 

मूल्य न था रत्नों का उनको, राष्ट्रधर्म ही प्रथम पुकार बना।

द्रव्य नहीं था ध्येय समर्पण, पुरुष वीर वह बरछी ढाल कटार बना।।

 

मेवाड़ी रज की विभूति वह, कुलगौरव का प्रकाश बने।

शौर्य ओज की सन्तान सुनो, रणभूमि में विश्वास बने।।

 

रहे प्रताप जहाँ संकट में, वहां भामाशाह ढाल बने।

छाया बनकर साथ चले, शत्रु को कठिन सवाल बने।।

 

मित्र नहीं बस एक सहायक, पथप्रदर्शक से बढ़कर थे।

राष्ट्रहितों में लीन भाम, वह त्याग शिरोमणि हर पल थे।।

 

अहोभाग्य निज मेरा है, इस माटी का सबकुछ माटी को अर्पण है।

रानी अजब्दे शीश झुका जब सुना कि माँ ये समर्पण है।।

 

न झुके रुके न वह ठहरे, न डरे कुटिल ललकारों से।

राज्य नहीं, सम्मान न चाहा, यश उमड़ा शब्द प्रहारों से।।

 

बनी धरोहर गौरवशाली, जिसकी स्मृति में जन गाते हैं।

राजस्थान की माटी उसको, मणि रत्नों समतुल्य बताते हैं।।

 

भामाशाह, वह तेज पुंज जो, दीपक बन हर काल जले।

स्वार्थविहीन समर्पण करके, विरोचित् कर ऊंचा भाल चले।।

पवनेश

Leave A Comment