
पिता की पीड़ा
कहाँ गया तू बेटा मेरा, कौन दिशा में खोया है।
कैसी आज प्रतीक्षा बेटा, मन अश्रु-वाष्प से धोया है।।
गगन चला तू सपने देकर, लौटा ना वापस पंख लिए।
अब हर क्षण पूछे मुझसे, क्यूँ छोड़ा तू संबंध लिए।।
माँ वो तेरी नयन न मूँदे, ट्रेन को भी हाथ न जाए।
यहां प्रतीक्षा में तेरी रहा, रात दिवस मन रोता जाए।।
कानों में तेरी बातें गूंजें, आँखें धुंधला चेहरा बुनती हैं।
हर आहट चुपके से कहती, बस साँसों की गिनती है।।
राख नहीं तू बना अभी तक, मैं तुझको श्मशान न लाया।
हर पल हर क्षण अग्नि हुआ है, दावानल ज्यों हिया समाया।।
दुनिया बोले शांति मिले अब, क्या उनको कुछ हाल पता।
अब तक मुख न देखा मैंने तेरा, क्या यह भी कोई विधि कथा।।
तेरे बूट अभी कोने में, वहीं अलमारी पर बस्ता मौन पड़ा है।
हर वस्तु तुझसे संवाद करे, पर क्या सचमुच मौन बड़ा है।।
कफन कहाँ है, मुख देखूं मैं, किससे कह दूं अन्तिम बात।
श्वासों का श्रृंगार अधूरा, अब जीवन क्या व्यथित प्रभात।।
आ जा पुत्र! तुझे मुखाग्नि दूँ, यही वेदना क्षण क्षण खाए।
धर्म, नीति, संस्कार, मर्यादा, मुझसे अब यह सही न जाए।।
हे विधि! इतनी क्रूर न हो तू, कम से कम एक दर्शन दे दे।
देह पुत्र की नहीं मिली तो, बस उसकी परछाईं ही दे दे।।
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