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पीहर से लौटती बेटियाँ

विशिष्ट आमंत्रण क्रमांक :– कल्प/नवम्बर/२०२४/अ

विषय: स्वैच्छिक

विधा: काव्य 

 

शीर्षक: ” पीहर से लौटती बेटियाँ “

नेह की डोरी से 

दो घरों को जोड़कर, 

पीहर से लौटती हैं बेटियाँ 

कुछ समेट कर,

कुछ छोड़ कर……

 

आँगन की ठंडी छाँव मे बैठ

यूँ ही निहारती हैं….

कुछ पुराने बक्से, कॉपियां, किताब 

मन में चलती रहती है,

दूजे घर की भी चिंता..

दिनों की गिनती..

रुकने रहने का हिसाब…..

 

वक्त गुजरता जाता है…

इस घर से उस घर तक,

कभी आने, कभी जाने का,

क्रम यूँ ही चलता जाता है 

धीरे धीरे..

वो मेरा घर , फिर माँ का घर,  

फिर नानी घर बनता जाता है……

 

-स्वाति श्रीवास्तव 

भोपाल 

 

Swati Shrivastava

One Reply to “पीहर से लौटती बेटियाँ”

  • पवनेश

    अद्भुद सृजन

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