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पुराने लम्हों में सिमटी जिंदगी मेरी

अर्ज किया है :-

की याद नहीं मुझको , तेरी बेबफई का वो वक्त |

जिस वक्त तूने मुझे,  बर्बाद करने में कोई कसर न छोड़ी |

 

पुराने लम्हों में सिमटी जिंदगी मेरी

नया कुछ अब याद नहीं रहता ||

 

बदलते वक्त के साथ मैं नहीं बदला

इश्क की तड़फ में खुद को जला डाला

बदल गए जो उन्हे कुछ याद नहीं रहता |

पुराने लम्हों में सिमटी जिंदगी मेरी

नया कुछ अब याद नहीं रहता ||

 

है कहानी पुरानी मेरे जहन में

अश्क आँखों से आए उसे सुनने में

ये दिल-ऐ-दुश्मन तेरा अक्स याद नहीं रहता ||

पुराने लम्हों में सिमटी जिंदगी मेरी

नया कुछ अब याद नहीं रहता ||

 

नीरज मिश्रा “ नीर “ बरही कटनी मध्य प्रदेश

NEERAJ MISHRA

2 Comments to “पुराने लम्हों में सिमटी जिंदगी मेरी”

  • पवनेश

    नया अब कुछ याद नहीं रहता।
    खूब लिखा है आपने नीरज जी 🙏🌹🙏

  • NEERAJ MISHRA

    आभार आदरणीय

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