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!! “बीतते क्षण : एक आत्मकथा (जाते हुए लम्हे)”.!!

⛩️ !! “साप्ताहिक आमंत्रण – कल्प/दिसम्बर/२०२४/द” !! ⛩️

 

📜  विशिष्ट आमंत्रण क्रमांक :– !! “कल्प/दिसम्बर/२०२४/द” !!  📜

 

📚  विषय :- !! “जाते हुए लम्हें” !! 📚

 

🪔  विधा :- !! “आत्मकथा” !! 🪔

 

 

!! “बीतते क्षण : एक आत्मकथा” !! 

 

 

“क्षण-क्षण बीतते क्षण हृदय में एक अकुलाहट भर रहे हैं। मन में उठती कसक और उमड़ते झंझावात मन को मथे डालते हैं। ऐसा लग रहा है मानों एक मंथन मेरे भीतर भी चल रहा है।” – विचारों की दुनियाँ में मगन रहने वाला मैं आज बहुत व्याकुल हूँ। और मेरी इस व्याकुलता को या तो पहली बार ससुराल के लिए विदा होती कन्या समझ सकती है, जो अपने माँ पिता के घर से अब सदा के लिए अपना चहकना छोडकर अपना खुद का घरौंदा बनाने के लिए अपरिचितों के मध्य जा रही है। या फिर अपना घर मान कर अपने जीवन के स्वर्णिम और जोश से भरे हुए चालीस पचास वर्ष देने के बाद किसी काम की न रहने वाली वो वृद्ध स्त्री, जिसे ये कह दिया गया हो कि अब उसकी यहाँ कोई आवश्यकता नहीं है, अपना कोई और ठिकाना ढूँढ ले, समझ सकती है। आज मेरी मनोदशा भी बिल्कुल वैसी ही है।”

 

“मैं कौन हूँ?”

 

“अरे भई! मैं आपका प्यारा वर्ष 2024। आप सभी से विदा ले रहा हूँ। या फिर समझो अपनी ही अंतिम घड़ियाँ गिन रहा हूँ।”

 

“आपको पता है मैंने अपने बारह महीने के जीवन में बहुत से उतार-चढाव देखे हैं?”

 

“हाँ भई! मैंने भी हँसते गाते ही प्रवेश किया था इस संसार में। ऐसे लग रहा है मानो कल की ही बात हो जब मैं यहाँ आया था। सारा विश्व मुझे देख का आह्लादित था। मैं भी हर्षित था। प्रफुल्लित था।”

 

“किन्तु अभी तो मैंने ठीक से पैर रखे भी नहीं थे धरती पर कि स्थान स्थान पर एक अजीब सा कोहराम छाया हुआ मिला। कई स्थानों पर युद्ध और युद्ध का वातावरण देखकर मैं भौचक रह गया। मैं सोच में पड गया कि जब सब कुछ इन्हें यहीं छोडकर जाना है तो ये लड क्यों रहे हैं?” 

 

“वैसे सच कहूँ, इसका कारण तो मैं आज तक भी नहीं समझ पाया कि सब जानते हैं कि यहाँ से कुछ भी साथ नहीं लेकर जाना। फिर भी सब लडते क्यों रहते हैं? सम्भवतः ये भी संसार के सबसे बड़े आश्चर्यों में से एक होगा।” 

 

“हाँ, तो मैं कहाँ था? हाँ, सब आपस में लड रहे थे और मैं मुँह और आँख फाड़े उन्हें देख रहा था कि तभी मुझे एक बड़ी ही सुखद सूचना मिली कि भारत मंगल ग्रह और चंद्रमा के पश्चात अब सूर्य तत्वो की खोज में निकल चला है। अहा! सही अर्थों में प्रगति इसे ही तो कहते हैं कि विज्ञान के उन विविध आयामों पर निरन्तर और नियमित शोध होते रहें। इतना ही नहीं, भारत खेलों में भी आगे बढता जा रहा है। सचमुच हर्ष का विषय है।”

 

“अरे! भारत जैसे देश के निवासी भी ऐसा कर सकते हैं? वो भी अपने ही देश के साथ? हाँ भई! मनुज भी कलयुग के प्रभाव में आकर सही गलत की पहचान भूलने लगा है। उसका विवेक मर चुका है। जीवन मात्र अपने पेट भरने तक सीमित है। ऐसे में यदि कुछ अच्छा होता है तो मन को शांति मिलती है। भारत की धरती का प्रभुत्व ही कुछ ऐसा है कि यहाँ कोई न कोई चमत्कार दिख ही जाता है। जहाँ चारों ओर लूट खसोट का वातावरण है, वहीं खेलते कूदते बच्चे कितने मनोहर लगते हैं। मैं भी बच्चों को खेलते देख कर बडा प्रसन्न हुआ।”

 

“चलो भई! अब मेरे भी जाने का समय आ ही गया। प्यारे बंधुओं! आपसे एक अनुरोध है कि जो आने वाला है, वो मेरा छोटा भाई है। उसके साथ तुम सकारात्मक रहना और अपने आप को सही अर्थों में आगे बढाने के लिए प्रयास करना। अपने साथ-साथ समाज की प्रगति और उत्थान के विषय में सोचना। प्रकृति को नष्ट मत करना। साथ ही अपनी स्वाभाविक प्रवृत्ति को भी सहेज कर रखना। दूसरों की देखा देखी नहीं अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप जीवन जीना। चलो, अब मैं विदा लेता हूँ। आप सभी सुखी रहना।”

 

राधे राधे 🙏 🌷 🙏 

 

इति श्री 💐

 

✍🏻 राधा श्री

Radha Shri Sharma

One Reply to “!! “बीतते क्षण : एक आत्मकथा (जाते हुए लम्हे)”.!!”

  • पवनेश

    जाते हुए लम्हें, विषय पर बीतते क्षण शीर्षक से समय मानों अर्थात वर्षों का मानकीकरण निःसंदेह प्रशंसनीय है दीदी, राधे राधे 🙏

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