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बेटे भी विदा होते हैं।

सिर्फ बेटियां ही नहीं बेटे भी विदा होते हैं।

मुस्कुराती आंखों में जिम्मेदारी पिरोए, 

जाने के पहले, आंसुओं को रोके,

घर के दरवाजे को हसरत से देखते,

हाथों में सामान से भरी ट्रॉली, पीठ पर लैपटॉप बैग, 

जबरन मोबाइल की स्क्रीन को स्क्रॉल करते, 

खुद को खुद से छिपाते, 

घर के लाडले सपनों की दौड़ में घर से विदा होते हैं। 

 

कल तक सुबह आठ बजे मां के जगाने पर लाड से आंचल में छुप जानें वाले, 

अब सुबह पांच बजे अलार्म से भी पांच मिनट पहले खुद ही उठ जाते है। 

कल तक पापा की डांट पर दिन भर मुंह फुलाए भुनभुनाने वाले, 

अब पापा को मत बताना, उनका ख्याल रखना, अपनी ही मां को समझाते हैं।

कल तक बड़ी बहन के साथ बात – बात पर वर्ल्ड वॉर थ्री लड़ने वाले, 

मिस यू दीदी, लव यू दीदी, के मैसेज व्हाट्सएप पर लिखकर भी हजार बार मिटाते हैं।

छोटे भाई को बात बे बात थप्पड़ जमाने वाले, छोटे का ख्याल रखना उसके ही दोस्तों को सिखाते है।

 

जानें के पहले अखबार वाले, फूल वाले, लाईट वाले, भईया से समय पर आने की ताकीद करते हैं। 

आटा चक्की वाले काका से अनाज पिसवाकर आटा घर भिजवाने की उम्मीद करते हैं। 

किराने की दूकान पर चंदू चाचा से हर हफ्ते पापा की पसंद के बिस्कुट मंगवाने की गुजारिश करते हैं।

रात को चौकीदारी करने वाले थापा से घर की ज्यादा देखभाल करने की सिफारिश करते हैं। 

 

कन्धों पर उम्मीदों का वजन ओढ़े हॉस्टल में खाने की लाइन में लग जाते है।

सुखद भविष्य के सपनों की खातिर राजदुलारे ऑफिस में चुपचाप सबकी सुनते जाते है।

परिवार की उम्मीदों को सीने में भर, किसी के सामने अपनी पसंद तक नहीं बताते।

दोस्तों के साथ जमकर खिलखिलाने वाले अब दोस्तों की कॉल पर ही चुप लगा जाते हैं।

मां को याद आएगी इसलिए हर शाम आठ से नौ मां से फोन पर खूब बतियाते हैं।

पीठ का दर्द, आंखों की जलन, क्लास का स्ट्रेस, बॉस का प्रेशर, पानी के घूंट की तरह पी जाते है। 

 

 

मोहल्ले वाली मामी को मां से हर रोज़ मिलने को कहते हैं।

पडोस वाली चाची को उनके साथ मंदिर जाने की याद दिलाते हैं।

बुआ और मौसी को कॉल करके मां से बात करने के लिए भी मनाते हैं।

बहिनों के सामने सब ठीक कर लूंगा का दम भरने वाले, 

अकेले में, अंधेरे में, कंबल में छुपकर बिना आवाज रोते हैं।

 

पापा की सीख और मान के लिए अपने घर से निकल जाते है।

मां के आँचल के स्वर्ग को पीछे छोड़ कर निकल जाते हैं।

कर्तव्य की राह पर अपनी हसरतों को दबाकर निकल जाते हैं।

कुछ तो ऐसे भी होते हैं जो निकलकर फिर कभी वापस नहीं आते हैं। 

 

इसलिए कहते हैं सिर्फ बेटियां ही नहीं बेटे भी विदा होते हैं।

मुस्कुराती आंखों में जिम्मेदारी पिरोए, 

जाने के पहले, आंसुओं को रोके,

घर के दरवाजे को हसरत से देखते,

हाथों में सामान से भरी ट्रॉली, पीठ पर लैपटॉप बैग, 

जबरन मोबाइल की स्क्रीन को स्क्रॉल करते, 

खुद को खुद से छिपाते, 

घर के लाडले सपनों की दौड़ में घर से विदा होते हैं। 

पवनेश

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