मंत्र
- Deepak Kumar Vasishtha
- 2024-04-09
- काव्य
- अर्धांगिनी, कविता, मंत्र, साहित्य, हिंदी
- 1 Comment
शीर्षक: मंत्र (कविता)
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चयन करना कितना मुश्किल है,
जब सामने वाला हो अपना,
और चुनना है उनमें से
जो दिए गए हो
विकल्प उनके द्वारा,
पहले मन सोचता है ,
अपना मत रखूँ ,
फिर मन कहता है पहले देखूं ,
उनके दिल में है क्या ?
कही मेरे एक के चुनने पर,
उसे अच्छा न लगे,
और अगर चुन लूं दूसरा,
तो कही
पहला ना लगता हो उन्हें अच्छा,
मन का ये श्रम, भ्रम में डालता है,
फिर एक तटस्थ निर्णय ,
और सब खुश,
निर्णय कि जो तुमको हो पसंद,
वही मेरी भी पसंद ,
इस तरह उनको खुश कर
अपने को खुश कर लेते है ,
उनके चुने में
स्वयं को बांध लेते है ,
पर कहीं निर्णय लेने में
मेरा क्या था निर्णय,
भूल जाता हूं ।
वे अर्धांगिनी है मेरी,
पर उन्हें पूरा खुश रखने का
यही एक मंत्र है मेरे पास,
One Reply to “मंत्र”
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पवनेश
पर उनको खुश रखने का यही एक मंत्र है मेरे पास, अंतिम पंक्ति में खुशी का सार लिखा है आपने, राधे राधे 🙏