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“महाराणा प्रताप की गौरव गाथा”

तृतीया तिथि ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की, पाली गढ़ चित्तौड़ था,

१५४० ईस्वी सन, सिसोदिया कुल, राजवंश की भोर था।

जयवन्ताबाई माता थीं, जिन्होंने वीर सृजाया,

उदय सिंह पितु थे जिनसे, मेवाड़ सिंह सा आया।।

 

कुंभलगढ़ की माटी में, जन्मा वह प्रताप महान,

चित्तौड़ के दीपक की ज्योति, बना समूचा हिंदुस्तान।

पद्मावती के प्रताप सम, इतिहास में नाम सजा,

सिंह-स्वरूप यह राजपूत, रण में गर्जन सा गजा।।

 

पत्नियां थीं अठारह, किंतु, अजबदे का मान बड़ा,

पुत्र अमर सिंह उनके, कुल के नाम सजीव रखा।

हल्दीघाटी रणभूमि में, जहां प्रताप ने जौहर दिखलाया,

दिवेर रण में भी विजय, मुगलों को स्वाद पराजय का आया।।

 

जीते युद्ध अनेक प्रताप ने, झुके कभी न मेवाड़,

भामाशाह ने साथ दिया, संजोया राष्ट्र का आधार।

भीलों संग किया संग्राम, अकबर की सेना हर डाली,

हल्दीघाटी की धरा पर, गाथा वीरों ने लिख डाली।।

 

१९ जनवरी, १५९७ को, चावंड में मेवाड़ का सूर्य अस्त हुआ,

स्वाभिमान के दीप को लेकर, जीवन ज्वाला सा धधक जिया।

महाराणा का त्याग महान, युगों तक याद किया जाएगा,

वीरों के इस वीर सपूत का, अमर नाम सदा गाया जाएगा।।

 

चित्तौड़ का किला आज भी, उनकी गाथा कहता है,

वीरों की धरा पर, वीर सदा उनका जयकारा करता है।

महाराणा प्रताप का जीवन, भारत का गौरव गान है,

हर युग के हर सपूत की, वह अमिट प्रेरणा महान है।।

पवनेश

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