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माता शबरी

 

मन में विश्वास ले, दर्शन की आस ले, राम नाम जपने लगी।

जय हो माता शबरी, जय हो माता शबरी।

भक्ति की डोर बांध, मन की हर कोर बांध, कर्म सकल छोर बांध, 

गुरूवर की आज्ञा से, ब्रह्म की अनुज्ञा से, विधना की विधि बदली।

जय हो माता शबरी, जय हो माता शबरी।

 

01) अप्सरा थीं स्वर्ग की, अनुराग भर श्री हरि, स्वर्ग छूटा श्राप से,

रानी परसमहि बनी, याचना की भक्ति की, ली जलसमाधि आप से।

भीलराज अज की लाडली, माता हुईं इंदुमति, श्रमणा सुधि शुभ नामकर,

विद्वता की मूर्ति, कोमल ह्रदय की स्वामिनी, खग मृग सुभग सुभाष से।।

वैराग्य जब बढ़ने लगा, पित मात ने ब्याह रचा, बलि जान माता वन में रमने लगी।

जय हो माता शबरी, जय हो माता शबरी।

 

02) सघन वन विचरकर, प्रकृति संवरकर, सेवा प्रसाद को मन में बसाकर,

ज्ञान की उपासना में, मुनि जन सी साधना में, ऋषि मतंग मिले गुरुवर।

मन प्रसन्न सर्जना, साधक अभ्यर्थना, गुरु के आशीष संग नित्य पूर्ण वंदना,

राम द्वार आयेंगे, मंगल हर्षायेंगे, साज सज्ज आनंद बोल गए मुनिवर।।

तपस्या सफल हुई, आए राम लखन तापसी, आई शुभ सुख घडी, 

जय हो माता शबरी, जय हो माता शबरी।

 

03) चरण कमल मानकर, नयन सजल जानकर, राम मिले आनकर,

नेह रस में भीगे से, चखें बेर मीठे से, मुदित हुई हर्षित वह राम को खिलाकर।

सत्संग कथा प्रेम, गुरु सेवा वेद नेम, कपट त्याग हरिकीर्तन,

शील पुण्य आचरण, जगत रूप राम श्रमण, सरल जीव संतोष भक्ति नवधा सिखाकर।

राम ने आनंद किया, शुभता सा मान दिया, राम के दर्श में कृतार्थ हुई शबरी, 

जय हो माता शबरी, जय हो माता शबरी।

 

मन में विश्वास ले, दर्शन की आस ले, राम नाम जपने लगी।

जय हो माता शबरी, जय हो माता शबरी।

भक्ति की डोर बांध, मन की हर कोर बांध, कर्म सकल छोर बांध, 

गुरूवर की आज्ञा से, ब्रह्म की अनुज्ञा से, विधना की विधि बदली।

जय

हो माता शबरी, जय हो माता शबरी।

पवनेश

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