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मेरी प्रिय पुस्तक : मानस का हंस: श्री अमृतलाल नागर

विशिष्ट आमंत्रण क्रमांक :– !! “कल्प/नवम्बर/२०२४/ब” !!

विषय: मेरी प्रिय पुस्तक 

विधा: लेख 

 

पुस्तक: मानस का हंस

लेखक: श्री अमृतलाल नागर

 

मेरी प्रिय पुस्तकों में से एक “मानस का हंस” एक लोकप्रिय उपन्यास है, जो हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध रचनाकार श्री अमृतलाल नागर जी द्वारा रचित है। यह रोचक उपन्यास महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी के जीवन पर आधारित है। चूंकि गोस्वामी तुलसीदास जी का प्रामाणिक जीवन वृत्त उपलब्ध नही है, इसीलिए यह तुलसीदास जी की प्रामाणिक जीवनी नही है, परंतु लेखक ने इसे गोस्वामीजी की विभिन्न रचनाओं में से झांकती उनके जीवन की घटनाओं से तथा उनके बारे में प्रचलित लोककथाओं से प्रेरित होकर लिखा है। अपने गहन अध्ययन , विस्तृत शोध, और कल्पनाशक्ति के द्वारा लेखक ने गोस्वामीजी के जीवन का बहुत ही रोचक और ज्ञानवर्धक स्वरूप पाठक वर्ग के समक्ष प्रस्तुत किया है। 

 

ये कहानी बालक रामबोला के तुलसीदास, और तुलसीदास के संत तुलसीदास बनने की है। तुलसीदास जी का बाल्यकाल बहुत ही संघर्षपूर्ण परिस्थितियों में बीता। बहुत ही छोटी सी उम्र मे परिवार से अलगाव, भूख, गरीबी, अपमान इन सबका सामना करना पड़ा, पर अपनी रामभक्ति से उन्होंने जीवन का कठिन से कठिन समय भी हंसते हंसते पार किया। अपनी भक्ति और विश्वास के बल पर वे खुद को निखारते गए, अपने दोषों को देखते गए, समझते गए और इतने परिपक्व हो गए कि रामचरितमानस जैसा महाकाव्य रचकर उन्होंने भगवान राम का सच्चा स्वरूप जनमानस तक पहुंचा दिया। 

 

इस उपन्यास में उनके जीवन को घटनाओं को बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण रूप से उकेरा गया है। हनुमान चालीसा की रचना का वर्णन बहुत ही रोमांचक है जिसमें ईश्वर पर उनके अटूट विश्वास और समर्पण भाव का रोचक चित्रण है। साथ ही समय समय पर अपने अवगुणों से लड़ना, रामभक्ति के आश्रय से निरंतर स्वयं को निखारना, संवारना और अपने आचरण के द्वारा समाज के समक्ष उदाहरण प्रस्तुत करना उनकी विशेषता रही है। उनकी युवावस्था,दाम्पत्य जीवन, फिर संन्यास और लोकमंगल में किए गए अनगिनत कार्यों के बारे में पढ़ते हुए ये लगता है कि हम बाबा तुलसीदास जी साथ ही कोई यात्रा कर रहे हैं।

 

उपन्यास रोचक होने के साथ साथ बहुत ज्ञानवर्धक भी है। तुलसीदास जी के जीवन से हमे बहुत कुछ सीखने मिलता है। समय के साथ हुये अनेक साहित्यिक विचार विमर्श में तुलसीदास जी पर वर्णवादी व नारी विरोधी होने का भी आरोप लगता रहा है परंतु उस पक्ष का भी उपयुक्त खंडन तथा तात्कालिक परिपेक्ष्य में उसकी प्रासंगिकता को भी लेखक ने स्पष्ट किया है। उपन्यास की मूल भावना यही है कि एक सामान्य मनुष्य का जीवन जीते हुए, उसके विभिन्न अनुभवों से गुजरते हुए भी तुलसीदास रामभक्ति में लीन रहे तथा जन कल्याण और लोकसेवा की गतिविधियों में प्रवृत्त होकर समाज को नयी दिशा भी देते रहे। उनका संपूर्ण जीवन अपने आराध्य के प्रति सच्ची भक्ति और समर्पण का सटीक उदाहरण प्रस्तुत करता है।  

 

वस्तुत: ईश्वर के प्रति वही सच्ची भक्ति है, जो भक्त में संवेदना जगा सके, उसे परिष्कृत कर सके, जन जन में अपने भगवान के स्वरूप को देख सके और इसी भावना को गोस्वामी जी ने जीवन भर जिया। श्री रामचरितमानस और अपनी अन्य रचनाओं के माध्यम से जनमानस की आस्था और विश्वास को पुर्नजीवित किया और स्वयं एक लोकनायक महाकवि के रूप में अमर हो गए। उनका जीवन उन्ही की लिखी इस चौपाई को सार्थक करता है।

सियाराम मय सब जग जानी करहुं प्रनाम जोरि जुग पानी”🙏🙏

 

-स्वाति श्रीवास्तव 

 भोपाल 

Swati Shrivastava

One Reply to “मेरी प्रिय पुस्तक : मानस का हंस: श्री अमृतलाल नागर”

  • पवनेश

    मानस का हँस, राधे राधे स्वाति जी, हमारे भी हृदय के बेहद नजदीक पुस्तक को आपने लेख में स्थान दिया है। सादर 🙏

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