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मेरे प्रिय कवि ” निराला “

विशिष्ट आमंत्रण क्रमांक :– कल्प/नवम्बर/२०२४/द  

विषय :- !! “मेरे प्रिय कवि” !!  

विधा: लेख 

 शीर्षक : मेरे प्रिय कवि ” निराला “

 

हिन्दी कविता की बात की जाए तो साहित्य का छायावादी युग एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। छायावादी कविता के एक प्रमुख स्तंभ ” महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला “मेरे प्रिय कवियों में से एक है। अपनी साहित्य साधना से निराला जी ने हिंदी साहित्य को एक उच्च स्तर पर समृद्ध किया है। छायावादी कविता की रूमानियत और संवेदनशीलता को अत्यंत सुंदर रूप से संयोजित कर उन्होंने अप्रतिम काव्य रचनाएं की। इसके साथ ही सामाजिक सरोकार और देशप्रेम का भाव भी उनकी रचनाओ मे दृष्टिगत होता है। इस प्रकार उनका काव्य छायावादी भावबोध के साथ राष्ट्रीय सांस्कृतिक चेतना का उत्कृष्ट समन्वय दर्शाता है। ” सरोज स्मृति ” ” राम की शक्ति पूजा ” “तुलसीदास” ,”अणिमा ” इत्यादि उनकी प्रमुख काव्य रचनाएं हैं। वे मूलतः ओज तथा विद्रोही स्वर के कवि है परंतु संवेदना और मार्मिकता भी उनके काव्य की विशेषता है।  

 

निराला जी का व्यक्तिगत जीवन अत्यंत वेदना पूर्ण रहा।अल्प आयु मे ही उन्हें पत्नी व पुत्री की असमय मृत्यु का दंश झेलना पड़ा। उत्कृष्ट साहित्य रचना के बाद भी वे सदैव आर्थिक परेशानियों में घिरे रहे। लीक से हटकर चलने के कारण समाज का भी बहुत विरोध उन्होंने सहा। उनके जीवन की यही वेदना संवेदना में परिणत होकर उनके काव्य मेें उतरी है । ” सरोज स्मृति ” नामक उनका काव्य करुण रस का सिरमौर है जिसे उन्होंने अपनी दिवंगत पुत्री की स्मृति मे लिखा। साथ ही उनके जीवन के दुख की छाया यदा कदा उनकी विभिन्न रचनाओं में दिख जाती है। ” राम की शक्ति पूजा ” में प्रभु श्री राम के माध्यम से जैसे वे स्वयं की ही पीड़ा कहने लगते है 

 

” धिक् जीवन को जो पाता ही आया विरोध, धिक साधन जिसका सदा ही किया शोध”   

( राम की शक्ति पूजा)

 

मूल रूप से छायावाद के कवि होने के बाद भी कारण निराला जी की रचनाएं विविधता से परिपूर्ण है । उनकी प्रथम रचना ” जूही की कली” प्रकृति सौंदर्य को श्रृंगार रस के साथ समन्वित कर प्रस्तुत करती है। रामायण प्रसंग पर आधारित ” राम की शक्ति पूजा ” जैसा महाकाव्य रचकर उन्होंने सीता की मुक्ति के माध्यम से स्वातंत्र्य चेतना जगाने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया जो उस समय के पराधीन राष्ट्र में अत्यंत आवश्यक था। ” कुकुरमुत्ता” “राजे ने अपनी रखवाली की ” ” दगा की ” जैसी रचनाएँ मार्क्सवादी प्रभाव लिए हुये है जो सीधा तत्कालीन शासन व्यवस्था पर चोट करती है। ” जागो फिर एक बार ” अपनी संस्कृति और महापुरुषों की महानता को वर्णित कर नवयुवकों में जोश भरने का कार्य करती है। काव्य के अतिरिक्त उनकी गघ रचनाएँ भी सांस्कृतिक राष्ट्रीय चेतना से ओतप्रोत हैं। ” वह तोड़ती पत्थर ” सामाजिक यथार्थ का आईना है जिसे कविता के माध्यम से निराला जी ने दर्शाया है। “बादल राग ” में बादलों का आह्वान भारतीय जीवन की आत्मा कृषकों की स्थिति को निरूपित करता है। 

 

जीर्ण बाहु, है शीर्ण शरीर, तुझे बुलाता कृषक अधीर, ऐ विप्लव के वीर ! 

चूस लिया है उसका सार, हाड़ – मात्र ही है आधार, ऐ जीवन के पारावार!  

( बादल राग)

 

काव्य रचना के साथ साथ निराला जी को अनेक नवीन स्थापनाओं का श्रेय भी प्राप्त है। कविता में मुक्त छंद के प्रयोग को सर्वप्रथम उन्होंने ही प्रारंभ किया। कविता मे बौद्धिकता और तर्कपूर्ण प्रयोगों को भी उन्होंने स्थान दिया। छायावादी काव्य को भारत की संस्कृति और जनवाद से जोड़कर उन्होंने छायावाद पर लगते आ रहे विदेशी प्रभाव के आरोप का भी खंडन किया। उनकी रचनाओं पर वेदांत का प्रभाव देखा जा सकता है जो उन्हें रामकृष्ण परमहंस तथा स्वामी विवेकानंद के दर्शन के अध्ययन से प्राप्त हुआ। 

निराला जी के अनूठे व्यक्तित्त्व को उनके समकालीन रचनाकारों ने अपने विभिन्न संस्मरणों के माध्यम से उल्लेखित किया है। छायावाद की ही एक प्रमुख कवियित्री महादेवी वर्मा उन्हें अपना भाई माना करती थी। अपने संस्मरणों में वे निराला जी को एक भावुक, दानशील और बालकों के समान भोले भाले भाई के रूप मे याद करती है। अज्ञेय जी ने भी अपने संस्मरण में निराला जी को स्वयं के प्रति किये आत्मीय आतिथ्य एवं विलक्षण प्रतिभाशाली कवि के रूप मे चित्रित किया है। निराला जी का संपूर्ण जीवन वृत्त ” निराला की साहित्य साधना” नामक तीन खंडों के ग्रंथ मे प्रसिद्ध आलोचक श्री रामविलास शर्मा द्वारा रचा गया है।  

 

रूढ़िवाद के कट्टर विरोधी और भारतीय संस्कृति के दृष्टा कवि के रूप में निराला जी हिन्दी साहित्य के सिरमौर हैं। संघर्ष पूर्ण जीवन और विपरीत परिस्थितियों से लोहा लेते हुये भी साहित्य के क्षेत्र मे अद्भुत कार्य निराला जी ने संपादित किया है। उनकी कविता जयदेव व विद्यापति जैसे प्राचीन कवियों के काव्य स्वरूप को भी दर्शाती है तो वहीं आधुनिक नयी कविता पर भी उसका प्रभाव देखा जा सकता है। 

 

निराला जी के अलग अनूठे व्यक्तित्त्व व व्यवहार को उनके अनेक आलोचकों द्वारा मानसिक अस्वस्थता व असामान्यता तक कहा गया परंतु गहन दृष्टि से देखा जाए तो निराला जी के विद्रोही स्वर की सामाजिक अस्वीकार्यता और व्यक्तिगत जीवन में विषम परिस्थितियों की वेदना पूर्ण मार का प्रभाव उनके व्यक्तित्त्व पर पड़ना स्वाभाविक ही था। इन सब बातों से परे एक रचनाकार के रूप मे उनका हिन्दी साहित्य को योगदान अतुलनीय है। यथार्थ और संवेदना को काव्य मे पिरोते महाकवि निराला स्वयं ही अपनी व्यथा ” सरोज स्मृति ” में कह गये है 

“दुःख ही जीवन की कथा रही 

क्या कहूँ आज जो कही नही ” ( सरोज स्मृति)

उनका यही भावपूर्ण अभिव्यंजना कौशल उन्हें अपने युग के कवियों में अलग और विशिष्ट स्थान प्रदान करता है। 

 

– स्वाति श्रीवास्तव 

  भोपाल 

 

 

 

 

 

 

Swati Shrivastava

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