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18320

यात्रा वृतांत – हिमाचल

चलिये, आज आपको हिमाचल की यात्रा पर लेकर चलते हैं। हिमाचल अर्थात हिम का आँचल। हिम का शाब्दिक अर्थ होता है बर्फ। तो यदि हम हिमाचल को बर्फ का आँचल कहें तो कदापि गलत नहीं होगा।

 

       हिमाचल की भव्यता इसकी ऊँची-ऊँची बर्फीली पहाडियों से ही है। सर्दियों में जब चारों ओर पहाड़ बर्फ की चादर ओढ़ कर अपने में सिमट जाते हैं तो ऐसा लगता है मानो पूरा अंचल दिव्यता से सराबोर हो गया है। वहां की दिव्यता उस अंचल के कण-कण में महसूस होती है। उस समय यहां की सुन्दरता को देख कर स्वर्ग के देवता भी यहां आने के लिए लालायित हो जाते हैं। सम्भवतः इसीलिये इसे देव भूमि कहा गया है।

 

     यदि इस अंचल की जलवायु का वर्णन करें तो, यहां की जलवायु इतनी उत्तम है कि यदि आप दस दिन तक भी निराहार रहें तो आपके शरीर में किसी भी पोषक तत्व की कमी नहीं आएगी। आपको चाहे कितनी ही जोर की भूख लगी हो, मात्र थोड़े से जल से ही आपकी क्षुधा-पिपासा शांत हो जाएगी। संभवतः यही कारण रहा होगा कि हमारे ऋषि-मुनियों ने इस अंचल को अपनी तपस्थली और अनुसंधान क्षेत्र के रूप में स्वीकार किया। यही नहीं, यहां के पहाड़ों पर ऐसी-ऐसी दुर्लभ जड़ी-बूटियां मिलती हैं, जिनका विकल्प अभी तक विश्व का बड़े से बड़ा मेडिकल रिसर्च सेंटर नहीं खोज पाया है। इसीलिए यहाँ भारतीय प्राचीन चिकित्सा पद्धति के बहुत से पर्याय आज भी विकसित हैं।

       

           हरियाणा और पंजाब के उत्तर में ऊँची-नीची पहाडियों पर बसा हुआ हिमाचल अपनी सहज सुन्दरता से सबके मन को आकर्षित कर लेता है। पंजाब के रोपड़ या रूपनगर जिले से लगता हुआ बिलासपुर जिला माता नैना देवी और भाखड़ा बाँध के लिए प्रसिद्ध है। भाखड़ा बाँध हिमाचल और पंजाब की सीमा को जोड़ता हुआ हिमाचल क्षेत्र में ही पड़ता है। अपने समय का एशिया का सबसे ऊँचा बाँध, जिसे तीन नदियों के ऊपर बनाया गया है। इसके लिए तीन नदियों को बाँध बना कर एक ही दिशा में जोड़ा गया। ये तीन नदियाँ हैं भाखड़ा, व्यास और सतलुज। भाखड़ा नदी सतलुज की सहायक नदी है। जब कि व्यास नदी का कुछ पानी बाँध की सहायता से सतलुज में छोड़ा गया है। भाखड़ा बाँध पर आज भी देश की सर्वाधिक विद्युत का निर्माण होता है, जो देश के चार राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में विद्युत आपूर्ति करता है। ये हैं – हिमाचल, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली।

 

          सुन्दरनगर अपने अनुपम सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ कुल्लू की बनी हुई शुद्ध ऊन की शॉल बहुत ही वाजिब दाम में मिल जाती हैं। कुल्लू तो पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र पहले से ही है। इसकी दोनों राजधानियों (शिमला और धर्मशाला) में एक अलग ही अनुभूति होती है।

 

        NH-22 से होते हुए जब कालका शहर से निकलते हैं तो हिमाचल की सामने दिखने वाली पहाडियाँ मन को सम्मोहित करती हुई अपने हरे-भरे और दिव्य आकर्षण में बाँध लेती हैं। पंजाब के जीरकपुर से शिमला एक्सप्रेसवे पर जाते हुए हरियाणा के पंचकूला से ही सामने हिमाचल के कसौली की ऊँची ऊँची पहाडियों का विहंगम दृश्य बहुत ही लुभावना लगता है। सोलन और शिमला जाते हुए अनेक ऐसे ऐसे दृश्य देखने को मिलते हैं जो मन को बाँधने के साथ-साथ भयभीत भी करते हैं।

 

        गढ़वाली, कुमाऊँनी और पहाड़ी बोली वाले हिमाचल प्रदेश की राजभाषा हिन्दी और संस्कृत है। 68,64,602 जनसंख्या की आबादी वाला हिमाचल प्रदेश अपने भीतर लगभग 21,629 वर्ग मील अर्थात 56019 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल का विस्तार संचित करता है। ये उत्तर में जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख, पश्चिम और दक्षिण-पश्चिम में पंजाब, दक्षिण में हरियाणा और उत्तरप्रदेश, दक्षिण-पूर्व में उत्तराखंड तथा पूर्व में तिब्बत से घिरा हुआ है।

 

   यहां की संस्कृति की बात करें तो ये अभी तक भी अपनी पौराणिक संस्कृति की अक्षुण्णता पर ही निर्भर करते हैं। इनके लिए अपनी संस्कृति ही अपनी पहचान है। ऐसा नहीं है कि ये आज के आधुनिक उपकरणों से परिचित नहीं हैं। उसके उपरांत भी यहां बहुत से ऐसे प्रचलन हैं, जिनसे अपने देश के अपनेपन की सौंधी सुगंध आती है। आपको ये जानकर बहुत ही अचम्भा होगा कि आज भी यहां विवाह मात्र दस से पंद्रह हजार के मामूली से खर्च में हो जाते हैं। यहां विवाह में बारात के नाम पर मात्र बीस या पच्चीस बाराती होते हैं, जिन्हें घर की महिलाएं ही पेठे अर्थात पीले मोटे कद्दू की सब्जी, खीर, हलवा और सामान्य रोटी या फिर बहुत किया तो आलू पूरी के साथ, जमीन पर टाट बिछा कर पत्तल पर परोस कर भोजन कराते हैं। वर-वधू के फेरे करवा कर विदा कर देते हैं। दान दहेज का कोई चक्कर नहीं। लड़के वाले अपनी बहू के लिए जितने इच्छा हो गहने कपड़े बनवाएं, उन्हें कोई मतलब नहीं है। बेटी वाले बस दूल्हा दुल्हन के कुछ कपड़े देकर उन्हें विदा कर देते हैं। और आप को ये जानकर तो और भी आश्चर्य होगा कि वे अपनी सुखी गृहस्थी जीते हैं। जिसका कारण सम्भवतः उनके मन में किसी भी प्रकार का लालच न होना होता होगा।

 

     जाते-जाते आपसे एक बात कहना चाहेंगे हरियाणा-हिमाचल की विश्व धरोहर टॉय ट्रेन में यात्रा नहीं की तो कुछ नहीं किया। यकीन मानों, बहुत ही रोचक अनुभव है टॉय ट्रेन की यात्रा का। हरियाणा के कालका से शिमला तक चलने वाली ये टॉय ट्रेन लगभग 96 किलोमीटर की दूरी तय करती है, जो कि रेल्वे की नैरो गेज लाइन, जिसकी पटरी की चौड़ाई दो फीट छः इंच है, पर 30 से 35 किलोमीटर प्रति घण्टे की गति से दौड़ती है। जिसमें कुल एक सौ तीन टनल हैं। कोटी और बड़ोग की टनल सबसे लंबी टनलों में से हैं। कहते हैं कि बडोग की टनल, जिसका नंबर तेतीस और लंबाई 1143.61 मीटर है, अंग्रेजी आर्किटेक्ट मिस्टर बडोग के नाम पर है, जो इस टनल को बनाने में असफल रहा था। उस समय उस पर एक रुपये की पेनल्टी लगी थी, जिससे शर्मिंदा होकर उसने इसी टनल में आत्महत्या कर ली। उसके बाद वहीं के एक स्थानीय ग्रामीण ने पर्वत का उचित अनुमान लगा कर सहज ही इस टनल का निर्माण कर दिया।

 

     सारे रेलमार्ग पर यात्रा को रोमांचित करते कुल आठ सौ उनहत्तर छोटे बड़े पुल हैं और नौ सौ उन्नीस घुमाव हैं। पेट में गुदगुदी और मन में भय का संचार करते हुए तीखे मोड़ों पर ट्रेन अड़तालीस डिग्री के कोण बनाती है। इसके अलावा सन 1898 में कनोह रेलवे स्टेशन पर एक ऐतिहासिक पुल बनाया गया, जो शिमला जाते हुए 64.76 किलोमीटर पर स्थित है। आर्च शैली में निर्मित इस चार मंजिला पुल में चौंतीस मेहराबें हैं, जो कि भारतीय रेलवे में आर्च गैलरी के सबसे बेहतर पुलों में शामिल है।

 

       आपको एक और मजेदार बात बताएं सन 1974 में बनी फिल्म दोस्त का प्रसिद्ध गीत “गाड़ी बुला रही है…” इसी ट्रैक पर फिल्माया गया है।

Radha Shri Sharma

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