
“विश्वास की डोर”
- पवनेश
- 19/04/2024
- कहानी
- विश्वास की डोर
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“राजधानी हवाई सेवा मैं आप सभी का स्वागत है, सभी यात्रिओं से अनुरोध है की विमान उडान भरने के लिए तैयार है इसीलिए आप सभी अपनी कुर्सी पट्टिका बांध लें, ” विमान मैं अदृश्य स्पीकर से उभरने वाले इस स्वर ने हमें कल्पनालोक से बाहर ला दिया, अब वही स्पीकर अंग्रेजी मैं उद्घोषणा कर रहा था और हम यथास्थिति मैं आकर छोटी खिडकी से बाहर की और देखने लगे, गति ने एहसास करवा दिया की विमान रनवे पर गतिमान है, कुछ ही पलों के बाद आसमान में उड़ने का एहसास हुआ, जब नज़रों को वापस घुमाया तो पाया की विमान के अंदर हलचल काफी कम हो गयी है,
मन भटकने लगा, हाथ एक बार फिर वर्षा के उसी पत्र पर आ गया जो इस त्वरित यात्रा का कारक बना, वर्षा लगभग ३५ वर्ष पहले हमारी कक्षा से २ वर्ष पिछली की कक्षा की छात्रा थी, उसके पापा सेना में थे, सेना की गाड़ी से रोज़ नियत समय पर आने वाली एक सीधी सादी लड़की, जो पता नहीं कब और कैसे हमारी मण्डली की अहम सदस्य बन गयी, उस सीधी सादी लड़की ने हम सभी को पता नहीं कैसे और कब स्नेह के अनकहे बंधन में बांध लिया, एक ऐसे रिश्ते में जिसको नाम कुछ न ही दें तो बेहतर, क्यूंकि विश्वास की डोर के अलावा आर कुछ था ही नहीं, उसी विश्वास की डोर ने ३५ वर्ष के अंतराल के बाद भी उसी विश्वास से आवाज़ दी, उसी विश्वास ने पूरी शिद्दत से हमें झिंझोड़कर रख दिया, उसी विश्वास की डोर ने अनकहे रिश्ते को सामने ला दिया, इतने सामने की कोई समझ ही नहीं पाया की अचानक राजधानी की और मन – प्राण चलने लगे, बिलकुल सीधा सा पत्र जैसे पहले लिखती थी पागल लड़की, सच में पागल।
” बाबू सा,
- यह पत्र मिलते ही चले आना, जीवन के इस पड़ाव पर आकर आपको परेशान कर रही हूँ , मगर परेशान ना करुँगी तो सम्हाल नहीं पाऊँगी खुद को भी, ठीक वैसे ही जैसे अब से ३५ वर्ष पहले आपको परेशान ही करती थी, जानती हूँ बाबू सा की इस लम्बे समय में आपको कभी भी अपने परिवार से जोड़ नहीं पायी, लेकिन एक पल को भी आपकी यह पागल लड़की आप सभी की यादों से अलग नहीं हुई।
बाबू सा,
बहुत ही संक्षिप्त में लिख रही हूँ, ये (मेरे पति) एक रोड एक्सीडेंट में घायल होकर अस्पताल में जीवन की लड़ाई लड़ रहे हैं, मेरे बेटा “समृद्ध”, अमेरिका में पढाई करने गया है, बेटी “ऋषिका” अपने जीवन साथी के साथ पहले ही ऑस्ट्रेलिया में रहती है, आप तो जानते ही हैं कि मैं अपने मम्मी पापा की अकेली संतान हुन, जबकि इनके परिवार ने विजातीय विवाह के कारण इनको अलग ही कर दिया था, पापा मम्मी रहे नहीं, इनके परिवार से न तो कोई सम्बन्ध हैं न जानकारी, अपना कालेज छोड़कर जब जम्मू आये तो ये पापा की रेजिमेंट में ही थे, पापा के सबसे नज़दीक और भरोसेमंद, पता नहीं कब हम मन के इस बंधन में बंध गए, पापा को पता हुआ तो मान गए, लेकिन इनकी फैमिली तब से अब तक न कोई मिला न किसी से जुड़ पाये।
बाबू सा,
जीवन के इस पड़ाव में अब आकर लगा की अपनों के बिना जीना कितना विकट है, समृद्ध को आते आते १० दिन तो लग ही जायेंगे, ऋषिका भी परिवार, जॉब में उलझी है, अगर आना भी चाहे तो वीसा ईज़ा पता नहीं कब तक हो पायेगा, यहाँ आर्मी हॉस्पिटल में एडमिट हैं, डॉ. दवाई, देख-रेख, सब है, लेकिन मन का पंक्षी पता नहीं कहाँ – कहाँ उड़कर कैसा कैसा हो रहा है।”
“सर, आप कुछ लेंगे ” एयर होस्टेस की आवाज़ ने तारतम्य को तोड़कर यथार्थ के धरातल पर लेकर खड़ा कर दिया, जो अभी भी विमान के साथ हवा में ही था।
“हाँ कॉफी” हमारी आवाज़ हमें ही खोखली लगी, कलाई पर नज़र डाली तो होंठ बुदबुदा उठे। “अभी भी आधा घंटा है, राजधानी के हवाईअड्डे पहुचने में” और पत्र की और पुनः आँखें चली गयी,
बाबू सा,
इनके एक्सीडेंट के एक दिन पहले आपका एक साक्षात्कार पढ़ा एक पत्रिका में, इन्होने देखा तो बोले “तुम मन छोटा मत करो हम बाबू सा के पास जरूर चलेंगे।”
बाबू सा,
ऐसा मत सोचना की संकट के समय याद कर रही हूँ, सच में बाबू सा आप सबसे अलग होने के बाद जीवन के इतने भंवर आये की मेरे अपने साथी कहाँ रह गए चाहकर भी ढूंढ नहीं पायी, और जब ढूंढा तो कोई मिला ही नहीं, पहले शादी फिर बच्चे, फिर इनके साथ दुनिया की सैर, हर देश की अलग – अलग बातें आज भी डायरी में लिखकर रक्खी हैं आपके लिए, सच में बाबू सा बड़ी इच्छा थी आपसे सारी बातें साझा करने की, मेरा मन अब भी कह रहा है, कि आप जरूर आयेंगे अपनी पागल लड़की के पास।”
। आपकी पागल लड़की
“वर्षा”
मन के किसी कोने से हुक उठी जिसने सब मरोड़कर रख दिया, हे भगवान कभी मेरी गुड़िया को ऐसी विपदा में न डालना, अपनी छोटी बहिन की याद आ गयी।
“सर कॉफी।” एयर होस्टेस एक बार फिर भटकते मन को विमान के साथ ले आई।
“शुक्रिया” अपने चेहरे पर औपचारिक मुस्कराहट के साथ हमने कहा, बदले में उसने भी हलकी सी मुस्कराहट के साथ ट्रे को जॉइंट प्लेट पर छोड़ दिया।
कॉफ़ी सिप करते हुए, बादलों के बीच कितनी बार, कितनी तरह से, मेरा मन भी कहाँ कहाँ घूम आया, हर याद के साथ एक मुस्कराहट या आह, बरबस ही आ जाती हमारे चेहरे पर, इसी बीच विमान के हवाई अड्डे पर पहुचने की घोषणा हुई, तो बेकली और बढ़ने लगी, पल – पल युगों से भी भारी लगने लगा। हवाई अड्डा, टैक्सी, रास्ता, सब पीछे जाने लगा, याद आ रही थी तो वही पगली लड़की, विश्वास की डोर, अपनेपन का रिश्ता,
अवचेतन की आवाज़, बीता हुआ कल।
One Reply to ““विश्वास की डोर””
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Radha Shri Sharma
भावनाओ को एक मजबूत धागे में पिरोती हृदय को आर्द्रता से भरती मनमोहक कहानी।
आपकी कलम पर सदा ही माँ शारदे का आशीर्वाद बनाये रखें