श्री कृष्ण की बाल लीलाएं
- Swati Shrivastava
- 2024-08-27
- लेख
- प्रतियोगिता
- 2 Comments
विशिष्ट आमंत्रण क्रमांक :– कल्प/अगस्त/२०२४/द
विषय :- !! “बाल गोपाल श्रीकृष्ण” !!
विधा: लेख
विषय विशेष: ठाकुर जी की बाल लीलाएं
कृष्ण एक ऐसा नाम है जो हमारी भारतीय संस्कृति के कण कण में समाया हुआ है। हमारी युगों युगों की प्राचीन सभ्यता के संस्कृति पुरुष है श्री कृष्ण। स्वयं ईश्वर हैं परंतु फिर भी सखा, प्रेमी, पुत्र ,गुरु जैसे कितने ही रूपों मे जन जन से जुड़े हुये है। किसी ने उनको अपनी संतान में देखा, किसी ने उनको प्रियतम बना लिया, किसी के लिए वो मार्गदर्शक सच्चे मित्र है तो किसी के लिए ठाकुर, किसी के सेठ, किसी के लड्डू गोपाल। जितना विराट स्वरूप है उनका उतना ही विस्तृत व्यक्तित्व। कृष्ण पूर्ण है। सबके लिए उनके पास कोई ना कोई अवलंबन है।
कृष्ण को सोलह कलाओं से परिपूर्ण अवतार कहा गया है। बचपन से लेकर अपने महाप्रयाण तक सृष्टि को कृष्ण ने बहुत कुछ दिया है। इनमे से सबसे अधिक भावपूर्ण है उनकी बाल्यावस्था। उनकी बाल्यावस्था ने वात्सल्य को एक नया आयाम दिया। कन्हैया औऱ यशोदा मैया के बीच माता और संतान का सहज प्रेम भाव है परंतु यह प्रभु कृपा ही है कि उनकी बाल लीला को विभिन्न कृष्णभक्त कवि पूर्ण उत्कृष्टता से अपने काव्य में व्यक्त कर पाए हैं। उनकी रचनाओं से कान्हा की बाल लीलाएं युगों युगों तक अमर हो गयीं।
श्री कृष्ण ने कान्हा रूप में जनमानस का मर्म ऐसे छुआ कि आज भी चाहे वह कितनी भी आधुनिक माँ क्यूँ ना हो, अपने बच्चे में उसे लड्डू गोपाल की ही छवि नजर आती है। आज नए नए आधुनिक नामों की भरमार के बीच भी कितने ही ” कान्हा” नाम रूपी बालक सहज ही मिल जाते हैं। जन्माष्टमी, भागवत कथा जैसे आयोजनों मे छोटे छोटे राधा कृष्ण अपने रूप से सबका मन मोह लेते है।
कन्हैया का बचपन बहुत सरल है। बिल्कुल वैसा ही जैसा एक साधारण मनुष्य का होता है। वही बाल सुलभ चेष्टाएं, खीझना , गिरना, मिट्टी खाना, शरारतें, माता की डांट, मित्रों से लड़ाई, दाऊ से नोक झोंक…..। घर आँगन, वन , उपवन , चारागाह इत्यादि नंदगांव में यही कन्हैया की कर्म भूमि रही है। उनके चमत्कारों को छोड़ कर कन्हैया में सब कुछ सरल सामान्य है। पर उनकी इसी सहजता ने उन्हें विशिष्ट बनाया है । इसी सरल स्वरूप ने कन्हैया को सबसे जोड़ रखा है। एक और वे परमात्मा के रूप में मंदिर में स्थापित है तो वहीं दूसरी और कन्हैया के रूप में सबके अपने बने हुए है। अपने ईश्वर से इतने सरल सहज प्रेम और आत्मीयता को श्री कृष्ण ने ही सम्भव बनाया है।
श्री कृष्ण की बाल लीला अनुपम है। महाकवि सूरदास के काव्य का तो आधार ही श्रीकृष्ण है। यह कृष्ण भक्ति का ही चमत्कार है कि एक जन्मान्ध कवि अपने इष्ट की बाल लीला का सूक्ष्म से सूक्ष्म वर्णन भी कितनी कुशलता से कर पाया है। उदाहरण स्वरूप:
खीझत जात माखन खात।
अरुन लोचन भौंह टेढ़ी बार बार जंभात॥
या
मुख दधि पोंछि बुद्धि इक किन्ही दोना पीठि दुरायो।
डारि सांटि मुसुकाइ जशोदा स्यामहिं कंठ लगायो॥
बाल कृष्ण की छोटी छोटी चेष्टाएं रूठना, मनाना आदि को पढ़कर मन पुलकित हो जाता है और वहीं यशोदा मैया जो अपने बालक पर बलिहारी हैं। अपने आंगन मे बालक कृष्ण को खेलता देख कर जो सुख वे अनुभव करती है उसे शब्दों मे व्यक्त नहीं किया जा सकता। यह भाव तो बस एक माँ का ह्रदय ही समझ सकता है।
अपने बाल्यकाल से ब्रजभूमि को धन्य बनाकर कृष्ण जब अपने अपने कर्म पथ की और अग्रसर हो मथुरा चले जाते हैं तो पीछे रह जाता है उनका ब्रजमंडल, उनके नंद बाबा , उनकी यशोदा मैया , उनकी राधा, गोपियाँ ,बाल सखा ,गाएँ….. वियोग की पीड़ा को इनसे अधिक किसने जाना होगा?
आगे चलकर कान्हा वासुदेव कृष्ण बन जाते हैं । द्वारिकाधीश बन जाते हैं। द्रौपदी के सखा, अर्जुन के सारथी, सुदामा के मित्र, पांडवों के दूत, ऐसी कितनी ही भूमिकाएं श्री कृष्ण अपनी जीवन लीला में निभाते हैं , परंतु उनकी ब्रजमंडल की बाल लीला सबसे अधिक मनमोहक, सबसे अधिक भावपूर्ण है। कर्तव्य पथ पर अडिग रहकर कृष्ण हमें जीवन मे आगे बढ़ने का संदेश देते है। जीवन की हर परिस्थिति मे धैर्य, संयम और आत्मविश्वास को साधने का मंत्र बताते है। परंतु स्वयं योगेश्वर कृष्ण बनकर भी कृष्ण के भीतर एक “कान्हा ” बसता है। ब्रजभूमि से बिछड़ने की पीड़ा उनके मन मे सदैव रहती है इसीलिए वे भी उद्धव से कहते हैं ,
“ऊधो, मोहिं ब्रज बिसरत नाहीं”.…….
– स्वाति श्रीवास्तव
भोपाल
2 Comments to “श्री कृष्ण की बाल लीलाएं”
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पवनेश
राधे राधे स्वाति जी,
बाल गोपाल श्री कृष्ण की लीलाओं के सौंदर्य को आपकी समृद्ध लेखनी ने बहुगुणित कर दिया है। बहुत सुंदर 🙏🌹🙏
Swati Shrivastava
सादर धन्यवाद 🙏
राधे राधे