
सप्तशती सारांश
- Deepak Kumar Vasishtha
- 09/04/2024
- काव्य
- दुर्गा, दुर्गा सप्तशती, भगवती, मां, हिंदी कविता
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शीर्षक: सप्तशती सारांश
जो प्रतापी था, वह स्वजन से हारा गया,
स्व प्रजा का बोझ ना, अब उससे धारा गया ।
रण से हारा, लौट रहा था नगर को,
मन से हारा, बल से ना वह मारा गया ।
नाम सुरथ था, न्याय में ना उसका कोई पार था,
अपनी प्रजा, अपनी पत्नी, अपने पुत्रों से उसे प्यार था ।
आज रण में हारकर, सबके विषय में सोचता,
जा रहा था जंगल घने में, मन था उसका कोसता।
वैश्य समाधि के हितकारियों ने, भी हित अपना था साध लिया ,
इस दु:ख के कारण उसने, मृत्यु का मार्ग था ठान लिया ।
और देखा कि सामने, मेधा ऋषि का आश्रम था,
दोनों की स्थिति एक थी, दोनों का मार्ग एक था ।
प्रश्न कर रहे मेधा से, जीवन से व्यथित थे दोनों,
सार जीवन का पाने को, सम्मुख थे ऋषि के दोनों ।
मेधा ऋषि ने जीवन का रहस्य सारा खोल दिया,
मां जगदम्बा का चरित्र, सारा का सारा बोल दिया ।
धूम्र लोचन, चण्ड-मुंड, शुंभ-निशुंभ का वध किया ,
मां काली, मां शारदा ने देवों को जो वर दिया ।
ना पराजित हो, ना भयभीत हो, मां कहे तू मांग ले ,
अजेय राज्य सुरथ को, वैश्य को ईश्वर ध्यान दें ।
One Reply to “सप्तशती सारांश”
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पवनेश
जय मां जगदंबा, कम शब्दों में विस्तृत विषय को उकेरने का उत्तम प्रयास, राधे राधे 🙏