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सांसो की लय हो तुम

तुम स्त्री हो 
केवल स्त्री नहीं
तुम निर्मात्री 
तुम संचालिका
  तुम निर्देशिका भी हो मेरी ।
कभी दूर होकर भी 
तुम्हारी छाप मेरे साथ होती है ।
मेरे हर फेसले पर ,
छिपी राय तुम्हारी ही होती है ।
थके हुए कदम घर वापसी में 
तुम्हारी मौजूदगी में
सहज हो चंचल हो उठते हैं ।
तुम हो तो, 
घर मेरा घर है।
तुम्हारी मौजूदगी  घर की गरिमा है ।
सुबह शाम की ज्योत बाती हो तुम ।
तुम ही हो घर की लक्ष्मी ,
मेरे मन में बसी छिपी दुर्गा तुम ही हो  ।
तुम्हारी अनहोनी को .
सपने में भी सोच बेचैन हो जाता हूँ ।
मेरी सांसो की लय हो तुम ।

मेरी प्रियतमा बन
मेरी जिंदगी की डोर हो तुम ॥

Jaya sharma

One Reply to “सांसो की लय हो तुम”

  • पवनेश

    स्त्री, सहज शब्दों में आपने विशिष्ठ भावों को अभिव्यक्त किया है, सादर राधे राधे 🙏🌹🙏

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