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“सारी खुशियां”

     “ओ लड्डू रे” रेखा दीदी ने अपने छोटे भाई को दुलारते हुए बड़े लाड कहा। “तू कितना प्यारा सा गुड्डा है।” 

    लड्डू यानि अनुज अपनी दीदी की गोद में सर रखकर ख़ुद को स्वर्ग से भी अधिक सुखी महसूस कर रहा था। 

  “दीदी, मेरा मन करता है।” अनुज ने दीदी की हथेली में उंगली फिराते हुए बताया। “दुनियां की सारी खुशियां आपके पास लाकर इकठ्ठी कर दूं।” 

   “ओहो, मेरा राजदुलारा, लड्डू।” दीदी ने अनुज की बलाएं लेते हुए दुलारा। “कितना प्यारा बच्चा है।” 

  “क्या चल रहा है।” मम्मी यानि मंजू जी ने अपने दोनों बच्चों को एक दूसरे के लाड में खिलखिलाते देखकर आनंदित होकर पूछा। “तुम दोनों भाई बहन का?”

    “मम्मी, लड्डू मुझे दुनियां की सारी खुशियां देना चाहता है।” रेखा दीदी ने चहकते हुए कहा। “मेरा पारा सा लड्डू।” 

     “ओहो, राजदुलारे।” मम्मी ने अनुज की नाक खींचते हुए और भी ज्यादा लाड से कहा। “सारी खुशियां दीदी को दे देगा फ़िर तू क्या करेगा?”

    “मैं, अपनी दीदी की गोद में सर रखकर सोता रहूंगा।” अनुज दीदी की गोद में और भी अधिक सिमट गया। 

    “ओ मेरे लड्डू भैया।” दीदी का लाड मानों बरसने लगा। “अगर तू साथ रहेगा तो मुझे दुनियां की सारी खुशियां वैसे ही मिल जाएंगी।” 

   “दीदी,” लाड में दोहरा होता हुआ़ अनुज दीदी के कंधे पर मानों झूल गया। 

    “लड्डू।” दीदी ने अपने भाई को कलेजे से लगा लिया। 

     “ठाकुर जी, मेरे बच्चों पर अपनी कृपा बनाए रखना।” भाई – बहन का स्नेह देखकर मम्मी की आंखें खुशी से दमकने लगीं। “इनके जीवन में से अगर तुम साथ हो कि जगह सदा तुम साथ रहो की धुन गूंजती रहे।” 

पवनेश

One Reply to ““सारी खुशियां””

  • Divyanjli Verma

    बहुत बढ़िया

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