Dark

Auto

Light

Dark

Auto

Light

स्वतंत्रता दिवस 2025 : सच्चे अर्थों में स्वतंत्रता!!

विशिष्ट आमंत्रण क्रमांक :– !! “कल्प/अगस्त/२०२५/ब” !! विषय :- !! “वन्दे मातरम्” !!  

विधा :- लेख

भाषा :- हिन्दी

शीर्षक: स्वतंत्रता दिवस 2025 : सच्चे अर्थों में स्वतंत्रता!!

 

हर वर्ष की तरह इस बार भी हम अपने राष्ट्रीय गौरव एवं अस्मिता के त्यौहार “स्वतंत्रता दिवस” को मनाने तैयार है। 15 अगस्त का आगमन हर सच्चे भारतीय के हृदय को उल्लास से भर देता है। हमारा यह राष्ट्रीय त्यौहार अपने देश के प्रति प्रेम व समर्पण भाव का प्रतीक है। 

 

इस बार हमारा देश अपना 79वाँ स्वतंत्रता दिवस मना रहा हैं । 1947 से अभी तक की इस यात्रा में हमारे देश ने बहुत तरक्की की है। आज वैश्विक पटल पर भारत उत्तरोत्तर प्रगति पर अग्रसर है। आधुनिकता और तकनीक के समन्वय ने हमारी प्रगति में चार चाँद ही लगाये है और हम एक स्वतंत्र प्रगतिशील राष्ट्र के रूप में विश्व स्तर पर पहचान बनाने में सफल हुये हैं। परंतु आंतरिक दृष्टि से मूल्यांकन किया जाए तो क्या वाकई हम पूर्ण रूप से स्वतंत्र है?? उत्तर है नहीं।। कारण यह है कि आज भी एक बड़े स्तर पर हम उसी पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण कर रहे हैं, जिसने कभी हमारे समूचे राष्ट्र को गुलाम बना रखा था। 

 

आज हम आधुनिक है। हमारा अपना संविधान है जो हमें हमारे मूलभूत अधिकार प्रदान करता है। तकनीक और नए नए अविष्कारों ने हमारी जीवनशैली को आसान और आरामदेह बना दिया है। इसमे कोई दो राय नहीं कि इनमे से कितनी ही सहूलियतों को हमने पश्चिम की और देखकर ही अपनाया है लेकिन इस आधुनिकता की भागदौड़ में कहीं ना कहीं हमारी वह सभ्यता और वैचारिकता पीछे छूट रही है जो हमारे भारतवर्ष की पहचान हुआ करती थी। जो दर्शन, ज्ञान, योग, विचारशीलता आदि हमारी संस्कृति के मूल मे रचे बसे है आज उन्हें ही हम पाश्चात्य संस्कृति के चश्मे से देख रहे हैं। अपनी मूल सभ्यता को भुलाकर हम इस नयी सभ्यता को क्यूँ अपनाना चाह रहे है जो मात्र भौतिकवाद पर आधारित है और नैतिकता के मापदंडों पर नित नए प्रहार कर रही है । आज के समय मे जिस गति से समाज का वैचारिक पतन हो रहा है वह सचमुच चिंता का विषय है। 

 

हमारा देश आज स्वतंत्र है परंतु हम इसके नागरिक अभी भी मानसिक रूप से पराधीन है। भाषा से प्रारम्भ करें तो आज अंग्रेजी भाषा को हमारी मातृभाषाओं के आगे वरीयता प्राप्त है। शुद्ध हिन्दी को उपहास का पर्याय माना जाने लगा है। शासकीय कार्यप्रणाली में भी अंग्रेजी का बोलबाला है। शिक्षा क्षेत्र की तो बात ही छोड़ दें , वहाँ हिन्दी भाषा को दोयम दर्जे का माना जाता है। युवा वर्ग के लिए अंग्रेजी में बात करना “cool ” है। हिन्दी भाषा बोलने वाला उनके लिए गँवार है। 

 

हमारी सभ्यता का मूल आधार हमारी परिवार संस्था भी आज विघटन के कगार पर है। सामाजिक और पारिवारिक मर्यादा आज बोझ बन गई है। अपनी निजी स्वतंत्रता के आगे किसी भी प्रकार का आदर्श या नैतिक बोध मायने नहीं रखता। निजता की यह अति आवश्यकता अकेलापन,अवसाद,तनाव,जैसी कितनी ही नयी नयी मानसिक बीमारियों को जन्म दे रही है। 

 

स्त्री स्वतंत्रता से जुड़ा नारीवाद का पक्ष जो वास्तविकता में नारी सशक्तिकरण के लिये अति आवश्यक था आज अपनी दिशा भूलकर बिल्कुल ही अंधेरे की और बढ़ रहा है। स्त्री स्वतंत्रता का मूल स्वरूप शिक्षा, समानता और सम्मान पर आधारित था उसे अति आधुनिकता और पश्चिमी अंधानुकरण ने दिग्भ्रमित कर ऐसी स्वच्छंदता का रूप दे दिया जो स्त्री वहीं पुरुष दोनों के लिए ही अमान्य है।  

 

समाज का चारित्रिक पतन आज सभी के समक्ष है। उदाहरण देने की आवश्यकता नहीं है। युवा, बुजुर्ग, यहाँ तक कि किशोरवय बच्चों के ही चारित्रिक अवमूल्यन की कितनी ही घटनायें हम रोज अखबार मे पढ़ते हैं। आधुनिक बनने की होड़ में चरित्र निर्माण और शालीनता जैसे गुण उपेक्षित होते जा रहे हैं। माता पिता स्वयं भी अत्याधुनिक बनना चाहते है और उसी विचारधारा से संतान का पालन-पोषण करते है। परिणाम सामने देखकर भी नहीं संभलना चाहते। 

 

हमारी संस्कृति में रची बसी उपासना और कर्मकांड पद्धतियां आज संदेह के घेरे में है । वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण पर आधारित होने के बाद भी उन्हें अपनाने में एक बड़े तबके में हिचक है। अपनी संस्कृति से जुडाव को उपहास की दृष्टि से देखा जाने लगा है।  

 

इस प्रकार ऐसी कितनी ही बातें है जो हमारी वास्तविक स्वतंत्रता पर प्रश्न चिन्ह लगाती है। कहने का तात्पर्य सिर्फ इतना है कि स्वतंत्रता सेनानियों का उद्देश्य मात्र अंग्रेजी शासन से मुक्ति ही नहीं था। उनका सपना एक सभ्य सांस्कृतिक स्वतंत्र राष्ट्र के निर्माण का भी था । आज हमें अपने विचारो पर चिंतन करना आवश्यक है। हमें अपनी विरासत को सम्भालने की आवश्यकता है। अपनी संस्कृति के उन मूल्यों को सहेजने की आवश्यकता है जिनके कारण हमारे देश का सारे विश्व में डंका बजता था। हमे अगर विश्व का सर्वश्रेष्ठ देश बनना है तो वह अपनी सभ्यता और संस्कृति को गर्व से समुन्नत रखकर ही सम्भव हैं। 

 

यह सत्य है कि आधुनिकता और प्रगति अति आवश्यक है। सड़ी गली परंपराओं और रूढ़ियों को त्याग कर आगे बढ़ना और बदलते समय के साथ चलना आवश्यक है। आज अनेक दिशाओं मे ऐसे प्रयत्न हो भी रहे है। यह एक संतुष्टि की बात है कि आधुनिकता की दौड़ मे भाग रहे हमारे समाज में कई परिवार व व्यक्ति ऐसे भी है जो अपनी संस्कृति व मूल्यों की महानता को समझते है व उन पर गर्व भी करते है। उपहास व आलोचना से अप्रभावित रहकर वह अपने अपने स्तर पर राष्ट्र निर्माण मे संलग्न है। 

 

उन्नतिशील होना जरूरी है परंतु यह भी जरूरी है कि अपनी सभ्यता और शालीनता को साथ मे जीवित रखा जाए। उन्हें गर्व से अपनी पहचान बनाया जाए। एक संतुलित और समझदार सोच के साथ प्रगतिपथ पर आगे बढ़ा जाए ।

 

राष्ट्र की इकाई व्यक्ति है। हम नागरिकों से मिलकर ही यह देश बना है । ब्रिटिश शासन की गुलामी से मुक्ति पाने सम्मिलित प्रयासों का एक स्वतंत्रता संग्राम पहले भी सफल हुआ था। आज मानसिक गुलामी से छुटकारा पाने हेतु भी एक संग्राम आवश्यक है जिसका आगाज हम सभी को अपने अपने व्यक्तिगत स्तर पर करना चाहिए। जिस दिन हम सब अपनी संस्कृति और सभ्यता को गर्व से धारण करेंगे उसी दिन हम सच्चे अर्थों में स्वतंत्र राष्ट्र कहलाने के अधिकारी होंगे ।

सभी को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ। 

 

– स्वाति श्रीवास्तव 

भोपाल 

 

 

 

 

Swati Shrivastava

Leave A Comment