स्वदेश – कोरोना वारियर्स
- Radha Shri Sharma
- 2024-01-11
- कहानी
- समसामयिक
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ओ मैडम,… अरे ओ मैडम… वहाँ मत जाइए, उसे सरकार ने रेड जोन घोषित किया है, – किसी ने मुझे जोर से चिल्ला कर आवाज दी, तो मैं चौंक कर पलटी ।
पीछे से एक अजनबी लड़का मुझे आगे जाने से रोकने का भरसक प्रयास कर रहा था। और मैं आगे बढती जा रही थी, ये जानते हुए भी वहां मास्क ना लगाने पर मुझे बहुत ही जल्दी कोरोना के विषाणु पकड़ सकते हैं। अब आप कहेंगे कि बडी मुर्ख लडकी है, जानती है कि कोरोना पकड लेगा और एक अजगर की तरह अपनी चपेट में लेकर निगल जाएगा और तो और हमारे सम्पर्क में आने वाले जाने कितने और लोगों को निगल जाएगा। ऐसा नहीं है कि हम मास्क पहनना नहीं चाहते, या हम फैशन के कारण मास्क नहीं पहन रहे। अपितु हमें हमारे होठों को ढंकने का फोबिया है…. नहीं समझे?…. समझाते हैं…. यदि कोई हमारे ज्यादा बोलने से त्रस्त होकर कोई हमारे मुँह पर हाथ रख देता है तो उससे भी हमारा दम घुटने लगता है, ऐसे लगता है कि अभी हमारे प्राण निकले।पर आप ये सब छोड़िये आप तो कहानी पर आइये, वो मेरी समस्या है मैं सम्भाल लूँगी।
वो लड़का अब तक मेरे पास आ चुका था और मुझसे कुछ दूरी पर खड़ा होकर कहने लगा – मैडम क्यों आत्महत्या करने जा रही हो? यहां इस कोरोना के बहुत से मरीज़ हैं।
मैंने उससे मुस्कुराते हुए कहा – मैं एक आँगनवाडी वर्कर हूँ, और मेरी इस गाँव में ड्यूटी लगी है। मुझे सबकी रिपोर्ट तैयार करनी है। और साथ ही साथ ये भी देखना है कि कहीं कोई भूखा – प्यासा तो नहीं? आपके सद्भाव के लिए मैं आपकी आभारी हूँ भाई, किन्तु मुझे तो यहां जाना ही है। यही मेरा काम है और यही मेरे ठाकुर जी की सेवा।
वो बोला – वो तो ठीक है मैडम, पर कम से कम मास्क और ग्लव्स तो पहन लेती । जिससे संक्रमण का खतरा कम हो जाए। आप से आपके परिवार को होते देर नहीं लगेगी।
मैं बोली – अच्छी बात है, ग्लव्स तो मेरे बैग में रखे हैं और मुँह को मैं अपने दुपट्टे से ढक लूँगी।
ये सुनकर वो लड़का चला गया और मैं अपने गंतव्य की ओर आगे बढ़ती हुई, उसकी बातों से अपनी ही यादों में खो गई।
मैं सरल शर्मा, नाम और स्वभाव दोनों से ही सरल। पढ़ाई BA तक पूरी की ही थी कि माँ – पापा ने मेरी शादी कर दी। मैं भी आम लडकियों की तरह अपने भावी जीवन के सपने सजाये पिया घर आ गए। यहां आकर पता चला कि घर चलता भी है, मैंने तो अब तक लोगों से उनकी गृहस्थी चलती ही देखी थी। चार साल में मैं कब 22 साल से 35 साल की हो गई पता ही नहीं चला अब तक दो बेटों की माँ भी बन चुकी थी। ससुराल वालों को मेरा सरल स्वभाव पसंद नहीं आया। वो मेरे इतने बड़े अपराध को कैसे सह सकते थे। उन्होंने मुझसे मेरे दोनों नन्हें से बच्चे छीन कर मार पीट कर घर से निकाल दिया। रोती पीटती घर पहुंचीं तो घर में भी बात बात पर ताने ही मिलते कि सासरे में नद (ढंग) के रही होती तो आज हमारी छाती पर मूंग ना दलती। जरूर तेरी ही गलती होगी। पड़ोस की चाची ने जब मेरी दुर्दशा देखी तो उन्होंने दया करके मुझे आँगनवाडी में वर्कर की नौकरी दिलवा दी। मैंने पोस्टिंग के लिए कोई स्पेशल जगह नहीं भरी थी तो मुझे मेरे ससुराल के पास के ही एक गाँव में पोस्टिंग मिल गई और मैंने बिना किसी को बताये चुपचाप अपनी पोस्ट सम्भाल ली।
उन्हीं दिनों मुझे पता चला कि मेरा पति दूसरी शादी कर रहा है। तो मैंने चुपचाप अपने पति को बुलाया और उससे कहा – ” तुझे दूसरी शादी करनी है तो शौक से कर, पर मेरी संतान मुझे देने के बाद। ” उसने जब मना किया तो मैंने उसे उसकी शादी ना होने देने की धमकी दी। वो ये जानता था कि मैंने अगर पुलिस में शिकायत कर दी तो बच्चे तो मुझे देने ही पड़ेंगे साथ ही साथ बच्चों का सारा खर्च और पैतृक संपत्ति में हमारा अधिकार भी घोषित हो जायगा। और उसकी शादी रुक जाएगी वो अलग से। उसने कहा कि मैं दोनों बच्चों का खर्च नहीं उठा पाऊँगी। हमारा समझौता इस बात पर हुआ कि बच्चे मेरे साथ रहेंगे और उनके खाने पीने का खर्च मेरा होगा और ऊपर का पढ़ाई – लिखाई कपड़े लत्ते सब वो करेगा। उसके लिए बस मैं उसे सप्ताह में एक दिन बच्चों से मिलने दूँ। अगले दिन वो बच्चों को मेरे पास पहुंचा गया। उसने मेरे ऊपर एक ये मेहरबानी कर दी थी कि किसी को नहीं बताया था कि मैं कहाँ रह रही हूँ, यहां तक कि अपनी माँ को भी नहीं।
इन्हीं यादों में घिरी हुई मैं अपने गंतव्य पर पहुंच गई। जब मेरी सहायिका ने कहा कि दीदी मुँह पर दुपट्टा तो लगा लो, तब मैं यथार्थ में आई। मैंने तुरंत ही अपने हाथों में ग्लव्स पहने और अपने दुपट्टे से मुँह, को इस तरह कवर किया कि सिवाय आँखों के मेरे मुँह का कोई हिस्सा नहीं दिख रहा था।
मैंने अपने हाथों में एक रजिस्टर और एक पेन लिया और होम क्वारंटीन हुए लोगों की लिस्ट बनाने लगी। एक तरफ टोटल कोरोना पेशेंट और दूसरी तरफ होम क्वारंटीन पेशेंट। कुछ लोग जो हॉस्पिटल जाने को तैयार थे उन्हें हॉस्पिटल भेज दिया गया सरकारी एम्बुलेंस मुफ्त में ऐसे मरीजों को हस्पताल पहुंचा रही थी और साथ ही साथ क्वारंटीन सेंटर भी। कुछ मरीज़ ऐसे भी थे जो कह रहे थे कि नहीं, आप हमें घर में ही क्वारंटीन कर दो, इससे हस्पताल के बेड किसी ज्यादा बीमार मरीज़ के काम आ जाएंगे। मैंने उनकी जिम्मेदारी अपने सिर ले ली, दूसरे मुझे कह रहे थे कि मूर्खता का काम क्यों कर रही है, तेरे छोटे छोटे बच्चे हैं। लेकिन मैंने किसी की नहीं सुनी। अपने पति को फोन करके बच्चों को उसके साथ भेज दिया। और खुद दिन रात उन मरीजों की सेवा में जुट गई।
मैंने ऑर्डर पर 50 शीशी जूडी ताप की मंगवाई। वहाँ बीस मरीज़ थे सबको एक एक शीशी पकडा कर कहा कि एक चम्मच सुबह शाम लेनी है और खुद भी दोनों समय नियम से दवाई लेने लगी, जिससे मुझे यदि विषाणु लग भी जाए तो ज्यादा असर ना करे। मैं तीनों समय उनके खाने पीने का भी पूरा प्रबंध देखती। समय पर फल और दूध का प्रबंध करती। जो राशन खत्म हो जाता, उसे उन तक पहुंचाती। साथ ही साथ उन्हें आंवला रस और गिलोय का काढ़ा भी पीने को कहती दिन में दो बार उनसे नींबु की चाय पीने के लिए कहती और कई बार तो खुद भी बना कर देती। एक जूडी ताप की शीशी खत्म होने पर हमने उन्हें एक एक शीशी और पीने के लिए दी।
उन लोगों ने भी मुझे पूरा सहयोग दिया और कुछ ही दिनों में वो सब स्वस्थ हो गए। जब उनको दुबारा टेस्ट किया गया तो सबकी रिपोर्ट निगेटिव आई। जब उन्होंने मुझे कहा कि मेरी सारी मेहनत सफल हुई, तो मैंने कहा कि अभी कहाँ, असली सफलता तो तब होगी जब मेरी रिपोर्ट भी निगेटिव होगी। क्योंकि सफल योद्धा वो नहीं मारते – मारते मर जाये। असली सफल योद्धा वो होते हैं अपने शत्रु को मौत के घाट उतार कर विजय तिलक माथे पर लगा कर सही सलामत घर आ जाए।
दो दिन के बाद उसकी रिपोर्ट भी निगेटिव आई। आज वास्तव में मेरी जीत का दिन था। मुझे एक सफल कोरोना योद्धा का सम्मान मिला। मैं नहीं जानती कि मैं इसके योग्य हूँ या नहीं किन्तु मैं आज बहुत प्रसन्न हूँ कि मेरे जिम्मेदारी पर होम क्वारंटीन हुए बीस के बीस मरीज आज स्वस्थ हो गए। कमजोरी तो जाते जाते ही जायेगी, किन्तु हमें आज कोरोना का एक देशी इलाज जरूर मिल गया – ” जूडी ताप ” जिसके कारण हम अपनी और इन सबकी जान बचा पाए।
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पवनेश
राधे राधे 🙏