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“!! स्वराज्य रक्षक संतोजी – धनाजी !!”

प्रथम मनाऊं गणनायक को, गुरु चरणन में शीश नवाएं।
मात शारदे किरपा करियो, देवी – देवता लेऊं मनाएं।।
तेज मराठा के दो दीपक, संताजी-धनाजी नाम पुकार।
रण में उठती जब भी धूली, दोनों जाएं शेर ललकार।।
वीर शिवा के छाया रक्षक, दो स्वराज्य दीप समान।
शंभू हत्या खबर पहुंच गई, रण में बने घनघोर तूफान।।
मातृभूमि की शपथ उठाकर, माथे तिलक ओज को धार।
रणचंडी के पुत्र बन गए, न्याय करे जिनकी तलवार।।
धनाजी गूढ़ नीति के ज्ञाता, संताजी गति के तूफान।
छल-बल, कौशल, और चेतना, हर विधा में वीर महान।।
जब जब कूच करे संताजी, दुश्मन भागें पाँव पसार।
जहाँ धनाजी घेरा डालें, मिट जाए मुगलों को सार।।
तंजावूर पर धावा बोला, संताजी की गरज को जोर।
छाती फाड़ी बुरहानपुर में, तोड़ा किला खजाने डोर।।
बीजापुर लओ घेर धनाजी, रोकी रसद जंजीरें डार।
पिंगली की रणभूमि में फौज मुगलिया दई पछार।।
धारवाड़ पर करी चढ़ाई, संताजी बनें काल को रूप।
चेतक सी गति, तेज बाण को, मुगल मार दए तक तक कूप।।
कभी चित्तौड़, कभी सतारा, कथा शौर्य की बने लकीर।
रणभूमि में रचे शिलालेख, गढ़ें शौर्य की शुभ प्राचीर।।
हमीद, कासिम, फिरोज, मुकर्रब, हार मान गए बारंबार।
कभी उत्तर में, कभी दक्षिण में, छाया सी रणभेरी वार।।
संताजी तेज हुंकारें पल के पल में बोल तलवार।
एक अकेला सौ पर भारी, दुश्मन सह न पाए मार।।
भए संगठित शेर मराठे, रथ स्वराज्य को चलो अपार।
कभी बचाओ किला विशालगढ़, कभी किले छीन के लाए।
सिंहसुतों के नीति-पथों से, दुश्मन काँप-काँप थर्राए।।
कर्नाटक से महाराष्ट्र तक, पंक्ति वीर कई एक हजार।
नीति चतुराई धनाजी की, संताजी की तीखी मार।।
दो भूतों की जोड़ी कह कर औरंगजेब ने खाई जुहार।
साल सत्रह रण में जूझे, औरंग्या के घाव हजार।
थकी मुगलिया फौजें सबरी भागी डार डार हथियार।।
धनाजी रहे अंतिम दम तक, जब औरंग कबर में जाए।
संताजी बलिदान की थाती, बनी प्रेरणा अमर कहाए।।
रण के सिंहों की गाथा यह, जन-जन तक पहुंचे सौगात।
महाराष्ट्र के गीतों में गूँजे, संताजी-धनाजी की बात।।
न साम्राज्य, न तख्त, न ताज, केवल एक ही लक्ष्य स्वराज।
ध्वंस कर दिया घमंड मुगलिया, अहम किनारे धर कर ताज।।
जिनके घोड़ों की टापों में, जय सुराज की गूंज महान।
अमर रहे इतिहास युगों तक, गौरव उनका चिरसम्मान।।
धन्य धन्य है वह माताएँ, जिनने जनी वीर संतान।
वीरमरण को जिसने वरणा, उनके पुण्य रहें संज्ञान।।
जिनकी ढालें सूरज चमके, जिनकी तलवारों में दीप।
वीर अमरगाथा हैं जिनकी, युग-युग तक वह रहें सजीव।।
हिन्दू स्वाभिमान के प्रहरी, संताजी-धनाजी युग प्रतिमान।
श्रद्धांजलि पुण्यात्माओं को, जिनसे बढ़ गयो रण को मान।।

पवनेश

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