
“हरि शयनि एकादशी”
- पवनेश
- 08/07/2025
- काव्य
- हिन्दी कविता
- 0 Comments
हरिशयन कर क्षीर में, ले चतुर्मासिक ध्यान।
तजि विकार निज चित्त में, साधक भजें भगवान।।
नारायण साधक भजें भगवान।
शंखासुर के नाश से, आरम्भ व्रत ओ विधान।
पद्म पुराण में वर्णित, जिनका उच्च स्थान।।
नारायण जिनका उच्च स्थान।
सूर्य तेज जब क्षीण हो, वर्षा लाये विकार।
कीट-रोग उत्पन्न हों, चेतें जड़ संसार।।
नारायण चेतें जड़ संसार।
चार महीनों संयमी, भोजन न हो चाव।
शुद्ध आहार-विहार से, तन मन निर्मल-भाव।।
नारायण तन मन निर्मल-भाव।
विवाहादि सब कर्म को, दे देते विश्राम।
धर्म, संयम, श्रम-साधना, दें समाज को धाम।।
नारायण दें समाज को धाम।
वर्षा ऋतु में वृक्ष का, होता हित कल्याण।
व्रती करें संरक्षण, भूमि बने हरिता धाम।।
नारायण भूमि हरिता धाम।
वाणी में मधुरत्व हो, मन निष्कलुष हो शांत।
देवशयन में हो जपे, नाम-रूप सद ग्रन्थ।।
नारायण नाम-रूप सद ग्रन्थ।
गृह त्याग नहीं अनुशासन, जीवन में हो भाव।
विष्णु-व्रत की सीख है, संयम सुख का दाव।।
नारायण संयम सुख का दाव।
राजा मांधाता के सम, पालन करें व्रत श्रेष्ठ।
धर्म बिना राजा अधम, व्रत से बढ़े विशेष।।
नारायण व्रत से बढ़े विशेष।
चातुर्मास्य में नित्य जो, व्रती धर्म निर्वाह।
हरि अनुग्रह से उसे, भवसागर हो पार।।
नारायण भवसागर हो पार।
Leave A Comment
You must be logged in to post a comment.