हुलसी के तुलसी
- Jaya sharma
- 29/11/2024
- लेख
- आध्यात्मिक
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विशिष्ट आमंत्रण क्रमांक :– कल्प/नवम्बर/२०२४/द 📜
📚 विषय :- !! “मेरे प्रिय कवि” !! 📚
भाषा हिन्दी
शीर्षक (जन जन के कवि हुलसी के तुलसी )
हिंदी साहित्य का प्रत्येक काल, अपने विशिष्ट, अनमोल रत्न रूपी कवियों से युगों उपरांत भी अपनी अमिट आभा से सभी को आलोकित कर रहा है ।
प्रत्येक कवि की अपनी विशिष्ट प्रतिभा है और सभी के शब्दों और भावों में ऐसा आकर्षण है कि पाठक उसकी गहराई में ही समा जाता है ।
तुलसी के राम की कथा के अमृत पान के लिए जहां देवता भी लालायित रहते हैं ,उस कथा के प्रवाह में साधारण पाठक अपने को स्वयं प्रवाहित होता देख स्वयं को चिरकाल के लिए आनंद रस में भिगो लेता है।
(तुलसीदास जी का जीवन परिचय)
प्रयाग के पास बांदा जिले में राजापुर नामक एक गांव है, वहां आत्माराम दुबे नाम के एक प्रतिष्ठित सरयूपारीण ब्राह्मण रहते थे, उनकी धर्मपत्नी का नाम हुलसी था संवत् 1554 कि श्रावण शुक्ला सप्तमी के दिन मूल नक्षत्र में बारह महीने तक गर्भ में रहने के पश्चात गोस्वामी तुलसीदास का जन्म हुआ,
जन्म के समय तुलसीदास रोए नहीं थे किंतु उनके मुख से राम का शब्द निकला। उनके मुख में बत्तीसों दांत मौजूद थे, और उनका डीलडोल भी पांच वर्ष के बालक का सा था, इस प्रकार के अद्भुत बालक को देखकर पिता अमंगल की आशंका से भयभीत हो गए और उसके संबंध में कई प्रकार की कल्पनाएं करने लगे ,माता हुलसी को यह देख कर बड़ी चिंता हुई ,उन्होंने बालक के अनिष्ट की आशंका से दशमी की रात को नवजात शिशु को अपनी दासी के साथ उसके ससुराल भेज दिया और स्वयं दूसरे दिन इस संसार से चल बसी ।
चुनिया नाम की दासी ने साढे पांच वर्ष तक बालक का पालन पोषण किया ,चुनिया के देहांत के बाद अनाथ बालक द्वार द्वार भटकने लगा ।
इस पर जगत जननी पार्वती को उस होनहार बालक पर दया आई ,वे ब्राह्मणी का वेश धारण कर प्रतिदिन उसके पास जाती और उसे अपने हाथों भोजन कराती ,इधर भगवान शंकर जी की प्रेरणा से रामशैल पर रहने वाले श्री अनंत आनंद जी के प्रिय शिष्य श्री नरहरि आनंद जी ने इस बालक को ढूंढ निकाला ,और उसका नाम रामबोला रखा। उसे अयोध्या ले गए और वहां संवत् 1561 माघ शुक्ल पंचमी शुक्रवार को यज्ञोपवीत संस्कार कराया, बिना सीखे रामबोला ने गायत्री मंत्र का उच्चारण करना शुरू कर दिया, जिसको देखकर सब लोग चकित हो गए इसके बाद नरहरी स्वामी ने वैष्णवों के पांच संस्कार करके राम मंत्र की दीक्षा दी और अयोध्या में उनको विद्या अध्ययन कराने लगे। बालक रामबोला की बुद्धि बड़ी प्रखर थी। एक बार गुरु मुख से जो सुन लेते थे ,उन्हें वह कंठस्थ हो जाता था ,वहां से कुछ दिन बाद गुरु शिष्य दोनों शूकर क्षेत्र (सोरों )पहुंचे ,वहां श्री नरहरि जी ने तुलसीदास को रामचरित सुनाया।
कुछ दिन बाद वह काशी चले गए ।
काशी में शेष सनातन जी के पास रहकर तुलसीदास ने पन्द्रह वर्ष तक वेद वेदांग का अध्ययन किया ।
इधर इनकी लोक वासना जागृत हो गई, और अपने विद्या गुरु से आज्ञा लेकर भी अपनी जन्म भूमि को लौट आए ,वहां पर उन्होंने देखा कि उनका परिवार सब नष्ट हो चुका है ,उन्होंने विधि पूर्वक अपने पिताजी का श्राद्ध किया। वहीं रहकर लोगों को भगवान राम की कथा सुनाने लगे, संवत 1583 ज्येष्ठ शुक्ला 13 गुरुवार को भारद्वाज गोत्र की एक सुंदरी कन्या के साथ उनका विवाह हुआ, और वे सुख पूर्वक अपनी नवविवाहिता वधु के साथ रहने लगे ,एक बार उनकी स्त्री अपने भाई के साथ अपने मायके चली गई ,पीछे पीछे तुलसीदास जी भी जा पहुंचे ,उनकी पत्नी ने उन्हें बहुत ही धिक्कारा और कहा कि मेरे इस हाड मास के शरीर में जितनी तुम्हारी आसक्ति है उतनी या उससे आधी भी यदि भगवान में होती ,तो बड़ा बेड़ा पार हो गया होता ।
तुलसीदास जी को यह शब्द लग गए , बे एक क्षण भी नहीं रुके ,तुरंत वहां से चल दिए
वहां से चलकर तुलसीदास जी प्रयाग आए वहां उन्होंने गृहस्थ का वेश का परित्याग कर ,साधु का वेश ग्रहण किया फिर तीर्थाटन करते हुए काशी पहुंचे।
(तुलसी का कवित्व)
, गोस्वामी तुलसीदास जी ने काव्य कला गत अवधारणाओं और कसौटियों पर विचार करते हुए कविता की पहली कसौटी पर विचार करते हुए कहा है कि कविता को गंगा की भांति लोकोपकारक होना चाहिए
(कीरती भनिति भूति भलि सोई ।
सुर सरि सम सबकर हित होई।। )
, अर्थात (भनीति)कविता वही सार्थक है ,जो गंगा की भांति सब की हितकारिणी और लौकिक समृद्धि और आध्यात्मिक सिद्धि का कारण भी हो।
गंगा गंगोत्री की हिमाचली शांत सुरम्य दिव्य धवल भूमि से निकलती हुई अपने स्पर्श से सत्य पाप पूर्ण जड़ चेतन सभी को जीवन प्रदान करती है और लौकिक समृद्धि और आध्यात्मिक सिद्धि का कारण बनती है ।
छोटे-छोटे नदी नाले भी गंगा नदी के संपर्क में आकर दिव्य और मंगलमय हो जाते हैं।
गोस्वामी तुलसीदास जी कविता में भी इसी विलक्षण शक्ति की अपेक्षा करते हैं ,कविता भी कवि के निर्मल ,प्रसन्न ,,प्रशांत और उदंत मनोभाव से निकलकर लोकमंगल का विधान करें और अंततः आध्यात्मिक उत्थान की चरम सिद्धि के उप कारक बनें।
गोस्वामी तुलसीदास जी की कविता के लिए दूसरी कसौटी है ,विमल यश की सहज और सरल अभिव्यक्ति,जो कविता में किसी आदर्श व्यक्तित्व की उज्जवल कीर्ति का सरल भाषा में चित्रण किया जाता है,उस कविता का ज्ञानीजन आदर करते हैं ,इस प्रकार की कविता का प्रभाव इतना अधिक होता है ,शत्रु भी अपनी शत्रुता को भूलकर उस कविता की प्रशंसा करते हैं ।
तुलसीदास कविता का मुख्य मापदंड लोक स्वीकृति को मानते हैं ,जो कविता जनमानस को आकर्षित करने की शक्ति नहीं रखती और ज्ञानियों के द्वारा स्वीकार नहीं की जाती वह कविता समाज में चिरस्थाई नहीं रह सकती ।
तुलसीदास जी कहते हैं लोकप्रिय कविता वही हो सकती है जिसमें पाठक को आकर्षित करने की अद्भुत क्षमता हो और लोकमंगल से संबंध हो।
तुलसीदास जी की चौथी कसौटी है राम नाम का गान गोस्वामी जी के अनुसार कविता का उपकारक तत्व राम नाम है ,राम नाम से रहित होने पर कुशल कवियों की कविता अपना सौंदर्य खो देती है,
तुलसीदास जी कविता में विमल यश की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए दिव्य और लोकोत्तर चरित्र का यशोगान करना चाहते हैं ,जिससे लोक परलोक दोनों की सिद्धि हो । मनुष्य की वाणी विधाता का उत्कृष्ट वरदान है ,उसका सार्थक उपयोग राम नाम के जप से ही संभव है ।
गोस्वामी जी के राम विश्वरूप हैं ,विश्व के कण कण में राम व्याप्त है वह सभी के लिए कल्याण कारक हैं।
तुलसीदास गोस्वामी जी के लिए भक्ति वह मानक है जिसके आधार पर सार्थक जीवन की व्याख्या की जा सकती है,
तुलसीदास जी की समस्त रचनाएं उनके द्वारा निर्धारित कसौटियों पर खरी उतरती हैं,तुलसीदास जी कविता लिखने को एक कठिन साधना मानते हैं।
रामचरितमानस में शिव पार्वती संवाद की हर पंक्ति, क्या हर शब्द का चुंबक हमें अपने में ही समाहित कर लेता है। असंख्य बार पढ़ने पर भी प्यास कभी नहीं बुझती ।
पार्वती का शिव के साथ विवाह प्रसंग जहां हम सब को आमंत्रित करता है ,वही पार्वती की मां मैना का पुत्री के प्रति स्नेह वर्णन हम सबकी आंखें नम कर देता है ।
तुलसी की रामचरितमानस का पाठ करना और स्वाध्याय कर मनन करना स्वयं में ही विलक्षण है ।
तुलसी का नाम उन कवियों में सर्वोपरि है जिन्होंने कविता को जन-जन की कविता बनाया ।
अपने को अल्पज्ञ कह रामचरितमानस के अनमोल मोती हमारे लिए शब्दों में पिरो देना एक विलक्षण काम है ,सदियां बीती जा रही है पर पाठक आज भी रामचरितमानस को पढ़कर अपने को आनंद रस में निमग्न पाते हैं ।
तुलसीदास ने अपनी रामचरितमानस की कथा के माध्यम से जनता के बीच राम भक्ति का प्रचार किया, गुरु नरहरिदास के शिष्य गोस्वामी तुलसीदास ने ,दशरथ पुत्र मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का शक्ति ,शील, सौंदर्य से परिपूर्ण रामचरितमानस महाकाव्य की रचना की ।
रामकथा भक्ति की पावन मंदाकिनी है, जो अनेकलोगों के कलुषित मन की कलुस्ता को दूर करने वाली सिद्ध हुई। तुलसीदास द्वारा स्थापित लोक आदर्श और रामराज की महिमा की महान कल्पना करना, भारतीय समाज को ही नहीं संपूर्ण विश्व के लिए एक अनमोल ज्योति है ।
इस महाकाव्य में जीवन का पूर्ण प्रतिबिम्ब है।
रचना कौशल ,प्रबंध पटुता ,भाव प्रवणता रस, रीति , अलंकार ,छंद आदि सभी दृष्टि से यह उत्कृष्ट काव्य है ।
तुलसी की रामचरितमानस लोकमंगल की साधना है। तुलसीदास ने मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचंद्र के लोक संग्रह चरित्र को काव्य का विषय बना कर भारतीय संस्कृति समाज और साहित्य को शक्ति प्रदान की है।
जहां तुलसी ने अलौकिकता का समावेश अपनी कविता में पिरोया है ,वहीं जब सुंदरकांड में मरुत उनचास कहकर अपने भौगोलिक ज्ञान का भी परिचय दिया है। संजीवनी बूटी का प्रकरण और मार्ग की दूरी का माप उनके भौगोलिक ज्ञान का भी परिचायक है ।
आज जो हम अपने मानकों से दूरी माप रहे हैं ,वही हमारी धरती को पवित्र करने वाले विभिन्न क्षेत्रों के विभिन्न विषयों का सटीक ज्ञान अपने भीतर समाए तुलसी ने हमें अपनी कविता के माध्यम से आनंदित करने के लिए इस धरती पर जन्म लिया और हमें पवित्र किया।
राम जब सीता को वन वन में खोजते हुए लोगों से पूछ रहे थे तब सभी अपनी अपनी दिव्य दृष्टि से सरोवरों और पर्वतों को बाकायदा दूरी के माप के साथ बताते हुए बीच-बीच में मिलने वालों से मिलने वाली जानकारी प्राप्त करने के लिए निर्देश देते हैं ।
यह तुलसी की राजनीति ज्ञान का भी परिचायक है। प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण मानस ,हमारे मानस को प्रभावित करता है ।मानस का हर चरण चित्त पर छा जाता है और तुलसी के प्रति मेरी श्रद्धा को प्रतिष्ठित करता है। रामचरितमानस की एक-एक पंक्ति या यूं कहें एक-एक शब्द अमूल्य है ।
राम की शक्ति और स्वरूप का ,विहंगम स्वरूप चित्रित करने वाले ,तुलसी राम के शत्रु रावण के शक्ति, वैभव और सम्पन्नता का भी वर्णन करते हैं ।
तुलसी के काव्य में रस, छंद और अलंकारों का जो समायोजन है ,वह अन्यत्र दुर्लभ है ।तुलसी की पूर्ण कविता पढ़ी नहीं जाती, अपितु गाई जाती है ।
तुलसी के पूर्ण साहित्य में जहां राग है वही विराग भी है। जहां तुलसी की कविता में सुख प्रफुल्लित होता है ,वहां दुख भी तुलसी के हाथों काव्य में आकर अपने को धन्य समझता होगा ।
तुलसी की कविता में जीव जंतुओं के साथ प्रकृति भी चिरयौवन प्राप्त कर निखर उठती है ।
तुलसी की कविता को कविता की आधारशिला कहना अतिशयोक्ति ना होगा ।
मानस में संस्कृत श्लोकों से प्रारंभ करना जहां तुलसी को भाषा का मर्मज्ञ घोषित करता है ,वही लोकाचार से परिपूर्ण अवधी भाषा में लेखन कर राम की कथा को जन-जन तक पहुंचाना तुलसी की दूरदर्शिता का द्योतक है ।रामचरितमानस के साथ साथ तुलसी के अन्य ग्रंथ भी रस, छंद अलंकार के लिए साक्षात श्रृंगार ही तो है ।
कवितावली में सुशोभित तुलसी की पंक्तियां
(पुर तें निकसी रघुवीर वधू ,धरी -धीर दये मग में डग द्वै ।झलकी भरि भाल कनी जल की, पुट सुख गए मधुराधर वै।)
जब सीता पति अपने पति श्री राम भगवान राम नहीं के साथ बनवास के लिए अभी नगर से निकली हुई है और सीता जी के द्वारा अब और कितनी दूर चल कर पढ़ कुटीर बनाने का पूछना सीता की सुकुमारता को देख कुलभूषण श्रीराम की आंखों को अश्रुपूरित कर देते हैं ।इस पंक्ति के भाव का सौंदर्य मुझे आह्लादित कर देता है, और मेरा चित्त तुलसी के काव्य के सौंदर्य के प्रति पूर्णतया समर्पित हो जाता है ।तुलसी की विनय पत्रिका ,गीतावली ,दोहावली आदि के साथ तुलसी के संपूर्ण ग्रंथ भारतीय संस्कृति के अनमोल रत्न है।
मेरे कुछ शब्द मेरे प्रिय कवि तुलसी के लिए सादर ।।
श्रीमती जया शर्मा (प्रियंवदा )
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