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✍️ “!! कल्प संवादकुंज – हिन्दी हैं हम !!” ✍️

राधे राधे सभी को, 

             कल्प संवादकुंज के अंतर्गत वर्तमान विषय “हिन्दी हैं हम” पर अपने विचारों को अभिव्यक्त करने के पूर्व दो पंक्तियों का उल्लेख करना चाहते हैं। 

“हिन्दी है मेरी माँ समान, इसमें बसे हैं है संस्कृति की प्राण।”

“हर एक अक्षर है इसका मधुर, भारत की है यह अनमोल धरोहर।”

 

  मित्रों, 

       हिन्दी भाषा का महत्व और उसका सम्मान भारतीय संस्कृति और सभ्यता का अभिन्न अंग है। यह भाषा न केवल एक संवाद का माध्यम है, बल्कि हमारे देश की आत्मा और पहचान का प्रतीक भी है। हिन्दी, जो देवनागरी लिपि में लिखी जाती है, भारत में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसके अलावा, यह हमारे देश की राजभाषा भी है। हिन्दी साहित्य, संगीत, कला और संस्कृति के माध्यम से लोगों के बीच सांस्कृतिक और भावनात्मक एकता को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

 

       साथियों,

                 हिन्दी भाषा का इतिहास बहुत पुराना है और यह संस्कृत से उत्पन्न हुई है। संस्कृत, जो प्राचीन भारतीय साहित्य और धार्मिक ग्रंथों की भाषा है, ने हिन्दी को समृद्ध किया है। हिन्दी का विकास प्राचीनकाल से होता आ रहा है, जिसमें ब्रज, अवधी, कन्नौजी जैसी कई बोलियों का योगदान है। आधुनिक हिन्दी का स्वरूप 19वीं शताब्दी में उभरा और आज यह भाषा विश्व स्तर पर भी अपनी पहचान बना रही है। हिन्दी भाषा के विकास में भक्तिकाल और रीतिकाल के कवियों ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। सूरदास, कबीर, तुलसीदास और मीराबाई जैसे महान कवियों ने हिन्दी को जनमानस के बीच लोकप्रिय बनाया।

 

        दोस्तों, 

             हिन्दी साहित्य की गणना विश्व के समृद्ध साहित्य में की जाती है। इसमें प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद, सुभद्राकुमारी चौहान जैसे लेखकों और कवियों का अमूल्य योगदान है। हिन्दी साहित्य ने हमें मानवता, प्रेम, समर्पण, सामाजिक न्याय और नैतिकता के विषयों पर विचार करने का अवसर प्रदान किया है। हिन्दी भाषा ने उपन्यास, कविता, नाटक, कहानी और निबंध जैसे विभिन्न साहित्यिक विधाओं में अपनी विशेष पहचान बनाई है। इसीलिए कहा गया है।

“संस्कृत से पाई इसने पहचान, हर हृदय में बसा है इसका मान।”

“जन-जन की भाषा सरल और सजीव, हिन्दी है अपनेपन की नींव।”

 

     बन्धुओं,

                 हिन्दी भाषा का हमारी संस्कृति में विशेष स्थान है। यह हमारे लोकगीत, लोककथा, और परंपराओं का हिस्सा रही है। हिन्दी भाषा ने भारतीय समाज के मूल्यों, आदर्शों, और रीति-रिवाजों को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाने का कार्य किया है। हिन्दी सिनेमा, जिसे बॉलीवुड के नाम से भी जाना जाता है, ने विश्व स्तर पर हिन्दी भाषा को लोकप्रिय बनाने में अहम भूमिका निभाई है। हिन्दी फिल्मों के गीत, संवाद और कहानियाँ भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार करती हैं।

 

       भगिनियों, 

                   आज के युग में हिन्दी ने न केवल राष्ट्रीय स्तर पर, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहचान बनाई है। भारत में, सरकारी कामकाज में हिन्दी का व्यापक प्रयोग होता है। साथ ही, हिन्दी समाचार चैनल, पत्र-पत्रिकाएँ, और सोशल मीडिया पर भी हिन्दी का बोलबाला है। इंटरनेट के इस दौर में हिन्दी ब्लॉगिंग, व्लॉगिंग और पॉडकास्टिंग ने भी अपनी एक खास जगह बनाई है। डिजिटल युग में हिन्दी भाषा की उपस्थिति दिन प्रतिदिन बढ़ रही है। गूगल, फेसबुक, ट्विटर जैसी प्रमुख कंपनियों ने भी हिन्दी को समर्थन देना शुरू कर दिया है, जिससे इसका प्रसार और तेज़ हो गया है।

 

       भाईयों, 

                 हिन्दी भाषा का भविष्य बहुत उज्जवल है। इसे बोलने और समझने वाले लोगों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। भारतीय सरकार और विभिन्न संस्थाएँ हिन्दी के विकास और प्रसार के लिए प्रयासरत हैं। हिन्दी भाषा की शिक्षा को स्कूलों और विश्वविद्यालयों में अनिवार्य किया जा रहा है, जिससे अगली पीढ़ी भी हिन्दी के महत्व को समझ सके। इसके अतिरिक्त, हिन्दी विश्व स्तर पर भी अपनी पहचान बना रही है। कई देशों में हिन्दी भाषा का अध्ययन किया जा रहा है और विभिन्न विदेशी विश्वविद्यालयों में हिन्दी भाषा के पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं। हिन्दी का प्रसार वैश्विक मंच पर भारतीय संस्कृति, व्यापार और राजनीति के माध्यम से हो रहा है।

 

       बहिनों, 

               हिन्दी भाषा को सम्मान देने के लिए हमें इसे अपने दैनिक जीवन में प्रमुख स्थान देना चाहिए। यह भाषा हमारी विरासत और हमारे गौरव का प्रतीक है। हमें अपने बच्चों को हिन्दी का महत्त्व समझाना चाहिए और उन्हें हिन्दी में बात करने और लिखने के लिए प्रेरित करना चाहिए। इसके साथ ही, हिन्दी साहित्य को पढ़ना और उसका प्रसार करना भी आवश्यक है। हिन्दी के सम्मान के लिए हम यही कहेंगे कि 

“हिन्दी की महक से महके संसार, हिन्दी का गौरव रहे सदा अपार।”

 

        मेरे प्रिय देशवासियों,

              हिन्दी भाषा के प्रति प्रेम और सम्मान दिखाने का एक तरीका यह भी है कि हम इसे बोलने में गर्व महसूस करें। यदि हम अपनी भाषा का सम्मान नहीं करेंगे, तो अन्य भाषाओं के आगे हमारी पहचान कमजोर हो सकती है।

          अपनी वैचारिक अभिव्यक्ति को विराम देते हुए हम यही कहना चाहते हैं कि हिन्दी केवल एक भाषा नहीं है, यह भारतीय संस्कृति की आत्मा है। यह भाषा हमें एक दूसरे से जोड़ती है और हमारी पहचान को सशक्त बनाती है। हमें गर्व है कि हम हिन्दी भाषी हैं, और इसे संरक्षित और विकसित करने का दायित्व हम सबका है। हमें हिन्दी के प्रति अपने सम्मान को बनाए रखना चाहिए और इसके विकास और प्रसार के लिए निरंतर प्रयास करना चाहिए।

“हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोस्तां हमारा।”

इस भावना के साथ हमें हिन्दी भाषा का सम्मान करना चाहिए और इसे विश्व पटल पर ऊँचाइयों तक पहुँचाना चाहिए। वन्दे मातरम्, भारत माता की जय, जय हिन्द। 

पवनेश

One Reply to “✍️ “!! कल्प संवादकुंज – हिन्दी हैं हम !!” ✍️”

  • Jaya sharma

    (हिन्दी की दशा और दिशा)
    भारत की राष्ट्रभाषा  हिन्दी को याद करने का दिवस (हिन्दीभारत दिवस) सितंबर माह में सरकारी कार्यालयों, विद्यालयों, न्यायालयों और बैंकों में हिन्दी सप्ताह या हिन्दी पखवाडा मना कर आयोजित कर मनाया जाता है ।हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा है ।हिन्दी भाषा बोलने वाले और उसे समझने वालों की संख्या अन्य भाषाओं की तुलना में अधिक है ।हिन्दी भाषा में प्रान्तीय बोलियों के शब्द मिश्रित कर हम हिन्दी की लोकप्रियता और सहजता के नाम पर हम इसके स्वरूप को निरंतर क्षीण करते जा रहे हैं ।
    कहीं अपनी कुंठाजनित हीन भावना और कहीं छिछले   ज्ञान के प्रदर्शन के व्यामोह ने हिन्दी को जो रूप प्रदान किया वह रूप के स्थान पर विद्रूप ही है ।
    भारतीय भाषाओं में हिन्दी को संस्कृत भाषा का उत्तराधिकार प्राप्त है और समस्त प्रांतीय भाषाओं को आपस में बांधने का सामर्थ्य है ,प्रांतीय भाषाओं के लिए हिन्दी भाषा दुर्ग सदर्श है ।अपनी प्रांतीय भाषाओं की समर्द्धी के लिए प्रथम हिन्दी भाषा को समर्द्ध बनाना होगा ।
       हमें गंभीरता से विचार करना होगा कि जिस आदर सत्कार के साथ हम विदेशी भाषाओं के शब्दों का प्रयोग कर अपनी भाषा में चमक लाने की कोशिश करते हैं, क्या उसी तरह विदेशी भी अपनी भाषा में हिन्दी शब्दों का प्रयोग करते हैं? तो हम ही क्यों अपनी भाषा में विदेशी शब्दों का प्रयोग उसके मूल स्वरूप को धूमिल कर रहे हैं?
    विश्व के सभी देशों की पहचान उसकी राष्ट्र भाषा से होती है ,अतः विश्व के आगे अपनी व अपने देश की पहचान राष्ट्र भाषा के माध्यम से ही होनी चाहिए ।दो भिन्न देशों के लोगों में वार्तालाप के लिए संपर्क भाषा अंग्रेजी का प्रयोग मान्य है, पर अपने देश के लोगों के बीच उचित नहीं ।
    अपनी भाषा के साथ अन्य भाषाओं का ञान प्रतिभा मानी जा सकती है पर गौरव नहीं ।
    आपसी संबंध और संपर्क को प्रगाढ बनाने के लिए भाषा ही सर्वोत्तम माध्यम है ।हिन्दी के प्रति जैसी मानसिकता हमारे देश में है शायद ऐसा नमूना अन्यत्र हमें खोजने से भी न मिले ।
    प्रत्येक नगर में लोगों को सभ्य बनाने के लिए अंग्रेजी स्पीकिंग कोर्स खुल गए हैं, हिन्दी स्पीकिंग कोर्स की महत्ता हमें क्यों नहीं समझ आती ।
    सर्वत्र अंग्रेजी ञान रखने वाले को प्राथमिकता दी जाती हैं, आज प्राथमिक विद्यालयों में भी धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलने वालों को प्राथमिकता दी जाती है इन संस्थानों, विद्यालयों के संचालक नहीं जानना चाहते कि उनके प्रतिष्ठान में कार्यरत शिक्षकों का हिन्दी का  ज्ञान कितना प्रबल है ।
    हिन्दी ज्ञान का प्रश्न हमारी अस्मिता का प्रश्न है ।यह हमारी पहचान है इसे हमें अपनी जीवनशैली का अंग बनाना होगा, तभी हिन्दी और हमारा हित सुरक्षित है ।

    जया शर्मा

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