✍🏻 !! “कल्पकथा साप्ताहिक आमंत्रण – कल्प/अक्तूबर/२०२४/ब” !! ✍🏻
- Kalpkatha
- 2024-10-21
- लेख
- प्रतियोगिता
- 2 Comments
✍🏻 !! “कल्पकथा साप्ताहिक आमंत्रण – कल्प/अक्तूबर/२०२४/ब” !! ✍🏻
📜 विशिष्ट आमंत्रण क्रमांक :– कल्प/अक्तूबर/२०२४/ब 📜
📚 विषय :- !! “दैनंदिनी (डायरी) लेखन – मनोभावों की अनुभूति” !! 📚
⏰ समयावधि :- दिनाँक २१/१०/२०२४ प्रातः ८.०० बजे से २५/१०/२०२४ रात्रि १०.०० बजे तक ⏰
🪔 विधा :- !! “स्वैच्छिक” !! 🪔
📢 भाषा :- !! “हिन्दी, संस्कृत” !! 📣
⚜️ विषय विशेष :- अपनी उर्वर शक्ति को सकारात्मक रंग देकर सुन्दर भावनाओं का सृजन करें।। ⚜️
💎 !! “आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं” !! 💎
📢 कल्प कथा के नियम :- 📢
✍🏻 कल्प आमंत्रण प्रतियोगिता में रचना भेजते समय रचना में ऊपर आमंत्रण क्रमांक, विषय एव शीर्षक और नीचे लेखक/लेखिका का नाम होना आवश्यक है। उसके बिना रचनाएं सम्मिलित नहीं की जायेंगी।
✍🏻 कल्पकथा वेबसाइट पर रचना प्रतियोगिता श्रेणी के अंतर्गत लिखने पर प्रति प्रतियोगिता प्रमाणपत्र एवं मासिक विशेष सम्मान दिया जाएगा।
✍🏻 साप्ताहिक आमंत्रण में सभी प्रमाणपत्र श्रेष्ठ, उत्तम और सहभागिता रूप में तीन प्रकार के रहेंगे।
✍🏻 मासभर सभी आमन्त्रणों में प्रतिभाग करने पर श्रेष्ठ, किन्ही तीन में प्रतिभाग करने पर उत्तम और दो में प्रतिभाग करने पर सहभागिता प्रमाणपत्र रहेगा।
✍🏻 साप्ताहिक आमंत्रण में विविध विधाओं में लिखने वाले लेखकों को “कल्प कलम श्री” सम्मान से सम्मानित किया जायेगा।
✍🏻 दैनिक आमंत्रण में आई रचनाओं के सभी श्रेष्ठ रचनाकारों को “कल्प विधा श्री” सम्मान से सम्मानित किया जायेगा।
✍🏻 कल्पकथा की ऑनलाइन काव्य गोष्ठियों में प्रतिभागियों को “कल्प काव्य श्री” सम्मान से सम्मानित किया जायेगा।
✍🏻 आपकी सभी रचनाएं स्वरचित एवं मौलिक होनी चाहिए। किसी भी प्रकार के कॉपीराइट इशू के लिए लेखक स्वयं जिम्मेदार होगा।
✍🏻 कल्पकथा पर किसी भी प्रकार का व्यक्तिगत, सामुहिक या राजनैतिक प्रचार-प्रसार पूर्णतः प्रतिबंधित है।
✍🏻 यदि आप कल्पकथा संदेशों से इतर कोई व्यक्तिगत, राजनैतिक या सामुहिक विज्ञापन करना चाहते हैं तो आप संस्थापक निर्देशक या संस्थापक निदेशक कोषाध्यक्ष को इसका शुल्क जमा करवा कर प्रचार-प्रसार कर सकते हैं।
✍🏻 यदि आप बिना अनुमति लिये किसी भी प्रकार का राजनैतिक, व्यक्तिगत या सामुहिक लिंक, पोस्ट या फिर कोई चित्र/चलचित्र आदि डालते हैं तो आप पर तुरंत 25000/- रुपये का जुर्माना लगाया जायेगा, जो संस्था नियमों के अनुसार अवश्य ही देय होगा।
✍🏻 लिखते रहिये, 📖 पढते रहिये और 🚶 बढ़ते रहिये। 🌟
✍🏻 कल्प आमंत्रण अध्यक्ष
—: कल्पकथा परिवार :—
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पवनेश
📜 विशिष्ट आमंत्रण क्रमांक :– कल्प/अक्तूबर/२०२४/ब📜
📚 विषय :- !! “दैनंदिनी (डायरी) लेखन – मनोभावों की अनुभूति” !! 📚
🪔 विधा :- !! “संस्मरण” !! 🪔
📢 भाषा :- !! “हिन्दी” !! 📣
राधे राधे डायरी,
आज हम आपके साथ अपने बचपन के बहुत ही विशेष पल साझा करने जा रहे हैं। यह बचपन की एक खास याद जो आज भी मेरे दिल में बसी हुई है, वो है हमारे काका के साथ साइकिल की सवारी। आज काका हमारे बीच नहीं हैं किन्तु उनसे संबंधित अनेकों स्मृतियां हमारे मनो मस्तिष्क में संरक्षित हैं। यहां पर सबसे पहले यह बता देना चाहते हैं कि काका पिताजी के अभिन्न मित्र थे। वह भले ही पिता जी के सहोदर नहीं थे किन्तु हमारे लिए वह पिता सरीखे ऐसे व्यक्तिव रहे हैं जिनकी छत्रछाया में हमने निर्द्वंद बचपन जिया है। एक ऐसा वट वृक्ष जिसके तले कितनी बाल सुलभ गतिविधियां चंचलताएं आकार लेकर हमारे निंद्रा में जाने तक अठखेलियां करती रहीं।
मेरी प्रिय डायरी,
उस समय साइकिल सिर्फ एक साधन नहीं थी, बल्कि पिता सरीखे सम्माननीय काका के साथ बिताए कुछ विशेष क्षणों का प्रतीक थी। उन साइकिल यात्राओं में न केवल हम स्थानों के मध्य की दूरी तय करते थे, बल्कि रिश्तों की गहराइयों को भी महसूस करते थे। यूं तो काका सारे वाहन चलाना जानते थे किन्तु घर से खेत, या फिर वाहनों के गैराज (हमारा गैराज हमारे खेत वाले कुएं के पास था जिसकी घर से दूरी लगभग तीन किमी होगी) जाने के लिए, काका साइकिल का उपयोग करते थे।
डायरी
तब हम शायद सात या आठ साल की आयु के होंगे जब हर सुबह जब काका अपनी पुरानी नीले रंग की साइकिल लेकर निकलते, तो हम बड़ी उत्सुकता से उनके साथ जाने की ज़िद करते। काका की सहमति मिलते ही मैं साइकिल में हैंडल के पास डंडे पर लगी छोटी सीट पर बैठने के लिए तैयार हो जाता। बैठने के बाद जब काका साइकिल की पेडल मारते, तो हवा की ठंडक चेहरे पर महसूस होती और ऐसा लगता जैसे हम एक अलग दुनिया में प्रवेश कर रहे हैं।
मेरी दैनंदिनी,
साइकिल पर बैठकर गांव की कच्ची गलियों से गुजरना मेरे लिए किसी रोमांच से कम नहीं था। रास्ते के दोनों तरफ फैले हरे-भरे खेत, पेड़ों से गिरी पत्तियों का सरसराहट और आसपास की प्रकृति का सौंदर्य मन को मोह लेता था। हर बार एक नई दिशा में जाने का रोमांच होता, मानो हर सफर हमें कुछ नया सिखाने वाला हो।
दैनिकी,
छोटी – छोटी यात्रा के दौरान काका अक्सर हमसे बातें करते। कभी वो हमें गांव के बारे में बताते, तो कभी जीवन के छोटे-छोटे पाठ सिखाते। उनकी बातें सुनते-सुनते हमने बहुत कुछ सीखा – धैर्य, मेहनत और हमेशा आगे बढ़ते रहने का साहस। काका की उपस्थिति में मैं खुद को सुरक्षित महसूस करता था, मानो मैं किसी मजबूत दीवार के पीछे छिपा हुआ हूं, जहां से दुनिया को देख तो सकता हूं, पर उसकी चुनौतियों का सामना करने के लिए अभी समय है।
जंत्री,
कभी-कभी रास्ते में हम गांव के छोटे-छोटे दुकानों पर रुकते, जहां काका हमारे लिए कुछ मिठाई या गुड़ खरीद देते। वो मिठाई उस समय मुझे किसी अमूल्य खजाने जैसी लगती थी। हमें आज भी याद है कैसे काका अपनी साइकिल को चलाते हुए धीरे-धीरे मुस्कराते थे, और हम पीछे मुड़कर उनका चेहरा देखकर खुद भी मुस्कराने लगते।
दिन पत्रिका,
साइकिल की सवारी के दौरान मैंने कई बार संतुलन बनाए रखने की कला को समझा। जीवन में जैसे उतार-चढ़ाव आते हैं, वैसे ही साइकिल चलाते वक्त भी बैलेंस बनाए रखना जरूरी था। काका की साइकिल चलाने की तकनीक ने मुझे यह सिखाया कि कैसे जीवन में निरंतर चलते रहना चाहिए, चाहे रास्ता कितना भी कठिन क्यों न हो।
दैनिक पुस्तिका,
समय के साथ वो साइकिल भी पुरानी हो गई, और हमारे बचपन की यादें भी धीरे-धीरे धुंधली होने लगीं, पर काका के साथ बिताए वो पल हमेशा मेरे दिल के सबसे खास कोने में बस गए। आज जब भी मैं साइकिल देखता हूं, मुझे वो बचपन के दिन याद आ जाते हैं, जब साइकिल सिर्फ एक साधन नहीं, बल्कि मेरे और काका के रिश्ते की गहराई का प्रतीक थी।
रोज़नामचा जी,
वो साइकिल की सवारी सिर्फ सफर नहीं थी, बल्कि काका के साथ बिताए उन अनमोल पलों की यादगार थी, जो जीवनभर हमारे साथ रहेंगी
✍️ :- पवनेश मिश्रा।
Radha Shri Sharma
✍🏻 !! “कल्पकथा साप्ताहिक आमंत्रण : कल्प/अक्तूबर/2024/ब” !! ✍🏻
📜 !! ”विशिष्ट आमंत्रण क्रमांक : कल्प/अक्तूबर/2024/ब” !! 📜
📚 विषय : !! “दैनन्दिनी लेखन : मनोभावों की अनुभूति” !! 📚
🪔 विधा : !! “दैनन्दिनी” !! 🪔
📢 भाषा : !! “हिन्दी” !! 📢
⚜️ शीर्षक :- !! “सुरीली मनसा : नियति के खेल” !! ⚜️
राधे राधे सुरीली,
कहो कैसी हो?
सच में सुरीली, बहुत समय बाद तुमसे भेंट हो रही है। हाँ, आज मन में भावनाओं का उद्वेग कुछ अतिरिक्त ही उत्ताल ले रहा है। अतः हम तुम्हारे पास चले आये।
पता है सुरीली, इस संसार में बहुत कुछ ऐसा है, जो हमें लगता है कि नहीं होना चाहिए, किन्तु परिस्थितियाँ, और घटनाओं का क्रम वही सब कराता है, जो हमें लगता है कि नहीं होना चाहिए। इस प्रकार से कभी कभी तो लगता है कि हम इन घटनाओं के दास मात्र हैं। ये घटनाएं, ये परिस्थितियाँ, हमें जैसे घुमाती हैं, हम घूम जाते हैं। उस समय विवेक शून्य हो जाता है और हम वही करते चले जाते हैं, जो ये परिस्थितियाँ हमसे कराना चाहती हैं।
उदाहरणार्थ, कंस, जो अपनी बहन देवकी से बहुत स्नेह रखता था, अपनी उसी बहन के बच्चों की हत्या करता चला गया। क्या वो ये नहीं जानता था कि ये सब पाप की श्रेणी में आता है? अवश्य जानता था। फिर भी वो राजा होकर भी ऐसे ही जघन्य पाप करता रहा। उसे पहले से ही पता चल गया था कि उसकी बहन का आठवां पुत्र उसका काल है। वो ये भी जानता था कि पहले सात बच्चों से उसे कोई खतरा नहीं है। फिर भी उसने उन बच्चों की हत्या कर दी। इतना ही नहीं, उसने नंदराय जी के पुत्र कृष्ण को मारने के लिए भी बहुत से दैत्य भेजे।
हाँ सुरीली, तुम स्वयं सोचो न, जब कंस को पता चला था कि देवकी का आठवां गर्भ उसकी मृत्यु है, उसी समय से यदि वो पाप वृत्ति छोड़ कर धर्म का आचरण करता और सत्य की उपासना करता, तब सम्भवतः भगवान श्रीकृष्ण उसे नहीं मारते। किन्तु उसकी मति पाप कार्यो में ही लगी रही। परिणामस्वरूप भगवान श्रीकृष्ण ने उसे कुश्ती में पछाड़कर मार डाला।
हाँ सुरीली, कुछ ऐसे श्रेष्ठ जन हुए हैं, जो परिस्थितियों को अपने अनुरूप ढाल पाये। किन्तु ऐसे सत्पुरुष अब तक इतिहास में अब तक मात्र गिने चुने ही रहे हैं। इसका कारण सम्भवतः ये भी हो सकता है कि वे समर्थ होते हुए भी नियति के कार्यो में हस्तक्षेप नहीं करते।
“रे मनुज, तू है यहाँ बस निष्ठुर नियति के हाथों का खिलौना।”
स्व. कवि रविन्द्र जैन की ये पँक्तियाँ भी हमारी बात को सिद्ध करती हैं। अतः सुरीली, हमें तो यही लगता है कि नियति अपने खेल खेलती है और हम मनुष्य उसके हाथों के खिलौने मात्र हैं।
अच्छा सुरीली, अब हम विदा लेते हैं। तुमसे फिर मिलेंगे।
राधे राधे 🙏 🌷 🙏
तुम्हारी सखी
राधा श्री