
🕉️ “साप्ताहिक कल्प संवादकुंज – एकादशी व्रत विशेष” 🕉️
- Kalp Samwad Kunj
- 02/04/2025
- लेख
- प्रतियोगिता
- 3 Comments
🕉️ “साप्ताहिक कल्प संवादकुंज – एकादशी व्रत विशेष” 🕉️
⛩️ कल्प संवादकुंज:- “एकादशी व्रत – अध्यात्म और विज्ञान का संगम” ⛩️
⏳ “समयावधि: दिनाँक ०२-अप्रैल-२०२५ बुधवार सायं ६.०० बजे से दिनाँक ०८-अप्रैल-२०२५ मंगलवार मध्य रात्रि १२.०० बजे (भारतीय समयानुसार) तक।” ⏲️
🔆 “विधा – लेख (वैचारिक)” 🔆
📝 “भाषा:- हिन्दी (देवनागरी लिपि)” 📝
❇️ “विशेष: > एकादशी व्रत के आध्यात्मिक, धार्मिक, और वैज्ञानिक, महत्त्व पर आपके सम्मानित विचार।” ❇️
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Kalp Samwad Kunj
🕉️ “साप्ताहिक कल्प संवादकुंज – एकादशी व्रत विशेष” 🕉️
⛩️ कल्प संवादकुंज:- “एकादशी व्रत – अध्यात्म और विज्ञान का संगम” ⛩️
।। एकादशी और विज्ञान।।
हमारे हिंदू शास्त्र में अनेक प्रकार के उपवास और पूजा भक्ति का वर्णन किया है। जिसमें एकादशी का व्रत मनुष्य के मन शांति के लिए आवश्यक है, महीने में दो बार आने वाली एकादशी के दिन उपवास रखने का एक सौभाग्य हमे प्राप्त होता है, जिसके कारण हमारे पाचन शक्ति को मजबूत किया जाता है।
साथ ही एकादशी के समय सूर्य और चंद्र कुछ अपनी विशेष प्रकाश छोड़ते है। विशेष ऊर्जा हमे प्राप्त होती है, उसका फल हमें अपने मानसिक शांति के लिए मिलता है। एकादशी के दिन ध्यान और उपासना का भी महत्व बतलाया है, जिसमें हमें कार्य सिद्धि प्राप्त होती है। साथ में मानसिक शांति भी मिलती है। खासकर एकादशी में श्री विष्णु की महा पूजा का महत्व बताया है।
यह सब विधि धार्मिक होने पर भी विज्ञान से संबंधित होती है। जिसमें शरीर को यथायोग्य फायदा मिलता है।
🙏जय श्री राम🙏
रचना_विजय डांगे,नागपुर
महाराष्ट्र
Kalp Samwad Kunj
🕉️ “साप्ताहिक कल्प संवादकुंज – एकादशी व्रत विशेष” 🕉️
⛩️ कल्प संवादकुंज:- “एकादशी व्रत – अध्यात्म और विज्ञान का संगम” ⛩️
🔆 “विधा – लेख (वैचारिक)” 🔆
📝 “भाषा:- हिन्दी (देवनागरी लिपि)” 📝
“विशेष: > एकादशी व्रत के आध्यात्मिक, धार्मिक, और वैज्ञानिक, महत्त्व पर आपके सम्मानित विचार।”
शीर्षक – एकादशी व्रत के आध्यात्मिक धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व…..
एकादशी व्रत का आध्यात्मिक धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व है जिसमें भगवान विष्णु हरि की पूजा की जाती है पापों से मुक्ति, मन की शांति और शारीरिक स्वास्थ्य का लाभ मिलता है।
“भगवान श्री कृष्ण ने कहा जो व्यक्ति एकादशी व्रत को विधि पूर्वक करता है उसे धन-धान्य सुख और समृद्धि प्राप्त होती है ।”
इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं और उसे विष्णु लोक में स्थान प्राप्त होता है इस व्रत में एक समय फलाहार करते हैं इस व्रत की उत्पत्ति मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष के ग्यारवही तिथि को भगवान विष्णु से एकादशी तिथि प्रकट हुई यानी उत्पन्न हुई थी ।इसलिए इस दिन को एकादशी व्रत का नाम दिया गया।
आध्यात्मिक महत्व-
भगवान विष्णु का आशीर्वाद इस दिन व्रत करने से प्राप्त होता है इस व्रत से पिछले पापों कर्मों से मुक्ति मिलती है और आध्यात्मिक प्रगति का मार्ग प्रशस्त होता है।
एकादशी व्रत करने से आत्मा को जन्म मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है और मोक्ष प्राप्ति होता है मन और तन आत्मा की शुद्धि होती है जिससे व्यक्ति सांसारिक विकर्षणों से दूर रह सकता है।
धार्मिक महत्व…….
धार्मिक महत्व को देखा जाए तो एकादशी व्रत करने से सभी व्रत का फल एक साथ प्राप्त हो जाता है घर में सुख समृद्धि का वास होता है सभी पापों से मुक्ति मिलती है हरि की कृपा बरसती है।
एकादशी व्रत करने से व्यक्ति को विष्णु लोक में स्थान प्राप्त होता है साथ ही धार्मिक कार्यों में रुचि बढ़ती है।
वैज्ञानिक महत्व…..
एकादशी व्रत करने से मन की चंचलता कम होती है और ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलती है।
एकादशी के दिन हल्का भोजन करने से शरीर को आराम मिलता है और पाचन क्रिया सुचारू रहती हैं।
शरीर के रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है एकादशी व्रत करने से हार्मोनल संतुलन में भी सुधार होता है मानसिक शांति का अनुभव होता है साथ ही स्वास्थ्य सही होता है।
“वैज्ञानिकों के अनुसार एकादशी तिथि पर धरती एक खास स्थिति में होती है जो उपवास के लिए उपयुक्त होती है।”
एकादशी व्रत करने से कई फायदे हैं-
व्यक्ति निरोगित रहता है।
राक्षस ,भूत, पिशाच आदि योनि से छुटकारा मिलता है।
पापों का नाश होता है संकटों से मुक्ति मिलती है।
सर्व कार्य सिद्ध होते हैं ,
सुख सौभाग्य प्राप्ति होती है।
मोक्ष का फल भी प्राप्त होता है।
विवाह बाधा समाप्त होती है ,
धन और समृद्धि आती है ,
शांति मिलती है मोह माया और बंधन से मुक्ति मिलती है।
एकादशी व्रत कम से कम पांच और ज्यादा से ज्यादा 11 सालों तक किया जा सकता है
यह व्रत 12 साल की उम्र के बाद प्रारंभ कर देनी चाहिए यही नियम है।
एकादशी व्रत से जुड़ी मान्यताएं किस प्रकार से हैं-…..
एकादशी व्रत साल में 24 बार आता है।
हर महीने में दो बार एकादशी व्रत आती है।
अधिक मांस लगने पर एकादशी की संख्या 26 हो जाती है।
एकादशी व्रत के दिन दान पूर्ण का भी महत्व है।
एकादशी व्रत में रात्रि जागरण करके भगवान का ध्यान भजन करते हैं।
एकादशी व्रत कथा सुना अनिवार्य होता है।
शास्त्रों के मुताबिक बिना एकादशी व्रत कथा सुन व्यक्ति का उपवास पूरा नहीं होता साथ ही एकादशी व्रत के नियम बहुत कठोर होते हैं।
एकादशी व्रत में दशमी तिथि से ही नियम और संयम का पालन करना होता है।
एकादशी व्रत की शुरुआत मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी से करनी चाहिए इसे उत्पन्ना एकादशी
कहते हैं मान्यता है कि इस दिन ही देवी एकादशी उत्पन्न हुई थी इसलिए एकादशी व्रत को शुरू करने के लिए इस दिन को सबसे शुभ माना जाता है।
सुबह उठकर स्नान करो ब्रह्म मुहूर्त में श्री हरी और एकादशी माता की आराधना करें भगवान की आरती करें और अपने समर्थ के अनुसार जल, वस्त्र, पानी का घड़ा, पंखा आसान और फल का दान करें तुलसी माता की पूजन कर परिक्रमा भी करें साथी एकादशी के दिन चावल खाना निषेध है इन सब बातों पर भी विशेष ध्यान दें एकादशी व्रत अपने आप में एक फल दायक व्रत है जिससे करके व्रत धारी अपनी मनोकामना को पूर्ण कर मोक्ष की प्राप्ति का सौभाग्य प्राप्त कर सकते हैं।
ज्योति राघव सिंह
वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
वर्तमान पता – लेह लद्दाख
Kalp Samwad Kunj
सप्ताहिक कल्प संवादकुंज एकादशी व्रत विशेष
एकादशी व्रत – अध्यात्म और विज्ञान का संगम
विधा लेख
भाषा हिंदी
लेखक: डॉ. पंकज कुमार बर्मन
स्थान: कटनी, मध्यप्रदेश
सनातन परंपरा में एकादशी व्रत का विशेष स्थान है। यह न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी एक गहन और सुविचारित प्रणाली है, जो मानव जीवन को अनुशासन, स्वास्थ्य और आत्मविकास से जोड़ती है।
धार्मिक पक्ष:
भगवान विष्णु को समर्पित एकादशी तिथि को भक्त उपवास और साधना द्वारा अपने इष्ट को प्रसन्न करते हैं। यह व्रत आत्मशुद्धि का मार्ग है, जिसमें मन, वाणी और आचरण की पवित्रता का पालन किया जाता है। मान्यता है कि एकादशी के दिन उपवास करने से समस्त पाप नष्ट होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति संभव होती है। श्रीकृष्ण ने स्वयं भगवद्गीता में भी व्रत और संयमित जीवन की महत्ता को स्वीकार किया है।
आध्यात्मिक पक्ष:
एकादशी व्रत का मूल उद्देश्य है — इंद्रियों पर नियंत्रण, आत्मा का परिष्कार, और ब्रह्मचिंतन। जब हम शरीर की इच्छाओं को नियंत्रित करते हैं, तब हमारा मन अंतर्मुखी होता है और हम अपने आत्मस्वरूप के निकट पहुँचते हैं। यह तिथि ध्यान, जप, स्वाध्याय और प्रभु-स्मरण की सिद्धि के लिए श्रेष्ठ मानी गई है।
वैज्ञानिक पक्ष:
आयुर्वेद और आधुनिक विज्ञान भी एकादशी व्रत के पीछे छुपे वैज्ञानिक तथ्यों को प्रमाणित करते हैं। मास के दोनों पक्षों की 11वीं तिथि को मानव पाचन प्रणाली अपेक्षाकृत धीमी हो जाती है। ऐसे में उपवास करने से शरीर को विश्राम मिलता है और विषैले तत्व बाहर निकलते हैं। साथ ही, शरीर की चयापचय प्रक्रिया (metabolism) को संतुलन मिलता है। इस व्रत के माध्यम से intermittent fasting जैसा ही एक संतुलित स्वास्थ्य अभ्यास स्वतः विकसित होता है।
मनोवैज्ञानिक पक्ष:
व्रत के माध्यम से आत्म-नियंत्रण, धैर्य, और आत्मबल विकसित होता है। जब हम किसी इच्छा को दबा पाते हैं, तो मानसिक शक्ति बढ़ती है और जीवन में दृढ़ता आती है। यह अभ्यास मन की चंचलता को भी शांति प्रदान करता है।
निष्कर्ष:
एकादशी व्रत सनातन संस्कृति का एक ऐसा दीपस्तंभ है, जो धार्मिक आस्था, आध्यात्मिक उन्नति और वैज्ञानिक सत्य को एकत्र कर मानव जीवन को आलोकित करता है। यदि हम इसे केवल एक कर्मकांड न मानकर, एक समग्र जीवन शैली के रूप में अपनाएँ, तो यह न केवल आत्मिक कल्याण का कारण बन सकता है, बल्कि सामाजिक और शारीरिक स्वास्थ्य का सशक्त माध्यम भी