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प्रेम योग

प्रेम योग- भाग — ०१ 

परिचय 

 

प्रेम एक ऐसा एहसास है जो हमारे तन और मन दोनों को पवित्र कर देता है। प्रेम भावनाओं का वो आवेग है, जिसमें माता पिता संतान, भाई बहन, पति पत्नी आदि सम्बंध एक अटूट डोर से बंधे रहते हैं। ये प्रेम ही इस संसार का आधार है। प्रकृति का स्थायित्व है। प्रेम एक ऐसी अनुभूति है जिसे शब्दों में गूंथना कम से कम हमारे लिए तो असंभव है। इसीलिए हमने इस कहानी को नाम दिया है प्रेम योग।

 

नमस्कार मित्रो,

हम राधा श्री शर्मा लिये हमारा पहला उपन्यास “प्रेम योग” लेकर आपके सम्मुख उपस्थित हैं। ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक और केवल दिमाग और दिल में चलने वाले अंतर्द्वंद का परिणाम है। इस कहानी के सभी पात्र और घटनाएं काल्पनिक हैं। यदि इसका किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से सम्बंध पाया जाता है तो वो मात्र एक संयोग होगा। हम हमारे देश के कानून और कानून व्यवस्था का हृदय से सम्मान करते हैं और हम किसी भी प्रकार से कानून का उल्लंघन करने के पक्ष में नहीं हैं। यदि फिर भी किसी को ऐसा महसूस होता है तो हम अग्रिम क्षमा प्रार्थी हैं। आप सब अपने उदार हृदय से हमारी भूल को क्षमा करें। 

 

इस कहानी का आधार अपने धर्म का पालन करते हुए हमारी भारतीय संस्कृति का सम्मान व इसका मूल उद्देश्य हमारी भारतीय संस्कृति एवं इतिहास से आपको परिचित कराते हुए * “धर्मो रक्षति रक्षितः” * है। हमारी पूरी चेष्टा रहेगी कि ये कहानी आपका मनोरंजन करने में पूर्णतः सफल रहे। इसी उम्मीद के साथ हम राधा श्री कहानी का शुभारंभ करते हैं।

 

🌹 जय श्री गणेश। ॐ सरस्वतेः नमः।🌹

 

“उमा! अरी ओ उमा!…… अरी कहांँ मर गई? ढूंढ ढूंढ कर पैर भी थक गए मेरे तो…. और ये मरजानी कहाँ मर गई।” उमा की माँ भारती जी ने पूरा गाँव छान मारा पर उमा का कहीं पता ना था। टीक दुपहरी में भारती जी का हाल बुरा हो रहा था मुँह लाल हो रहा था। सूरज और गुस्सा दोनों का पारा चढ़ा हुआ था। थक हार कर भारती जी घर वापिस आ गई ये सोच कर कि आज आने दे उसे घर वापिस उसकी अच्छे से खबर लूँगी। 

 

दूसरी ओर उमा माँ की हर बात से बेख़बर घर की छत पर बने हुए कमरे में एक चारपाई पर तह कर के रखे हुए बिस्तरों पर गुदगुदा सा देख कर गणित अर्थात मैथेमेटिक्स के प्रश्नों का हल निकालने में जुटी हुई थी। उसे ये तक सुनाई नहीं दिया कि कब माँ वहाँ आकर आवाज लगा कर चली गई थी। चार घंटे से लगातार पढते पढते जब थक गई तो गीताप्रेस गोरखपुर की कल्याण से “मैं हूँ आपकी शारदा” कहानी पढ़ने लगी। पढते – पढते कब सो गई उसे पता ही नहीं चला। जब शाम को उठ कर नीचे आई तो माँ ने डांटते हुए पूछा….. 

 

भारती जी – मैं तुझे सारे गाँव में ढूंढ आई और तू ऊपर से आ रही है। क्या कर रही थी ऊपर…? 

 

उमा ( लडियाते हुए ) – माँ….. ऊपर पढ रही थी और पढते – पढते पता ही नहीं चला कि कब नींद आ गई। 

 

भारती जी – ठीक है… कोई बात नहीं…. ले अपने दादा जी को चाय दे आ और तू भी आकर चाय पी ले। 

 

उमा चाय से भरा हुआ लोटा और एक गिलास उठा कर ” ठीक है ” कहकर चली जाती है। 

 

उमा ( इठला कर )-दादा जी…. दादा जी… लो चाय पी लो। माँ ने भिजवाई है। 

 

दादा जी – अरी लाली, कितनी देर में लाई है…… मैं कब से बाट देख रहा था…. ले ये डोलची और पानी से भर ला, प्यास लग रही है। पहले पानी पीऊंगा। 

 

उमा – जी दादा जी,.. वो तो मैं पढते – पढते सो गई थी, इसलिए देर हो गई…. मैं अभी पानी ले आती हूँ। 

 

दादा जी – कोई बात नहीं… जा पानी ले आ। 

 

उमा डोलची ( दूध लाने वाला डोलू, जो बाल्टीनुमा होता है ) उठा कर भाग गई और मटके में से ठंडा सा पानी डोलची में भरकर दादा जी को दे आई। 

 

अरेरररर………… हमने अपनी नायिका और उसके परिवार का परिचय तो दिया ही नहीं। हमारी नायिका उमा की माँ भारती जी , पापा दिवाकर जी और तीन भाई बहन जिनमें बड़ी बहन निवेदिता, छोटी बहन वसुधा और भाई अरुण, दादाजी नारायण जी और दादी शारदा जी थे। वैसे तो कुनबे में और भी बहुत लोग थे जैसे दो ताऊ, ताईयां , बुआ फूफा, मामा मामी, नाना नानी और उनके सबके बच्चे,………. कुल मिलाकर भरा पूरा परिवार था। जैसे – जैसे उनका जिक्र आता जाएगा, हम उनका विवरण देते जाएंगे। फिलहाल हम उमा के परिवार का विवरण देते हैं………. 

 

माँ भारती जी घरेलू कामकाज के साथ साथ समाज सेविका भी थीं। मोहल्ले की औरतों के साथ गुट बाजी करने की जगह उन्हें अक्षर ज्ञान दिया करती थी, जिससे वे औरतें अपने घर में स्वयं रामायण पाठ करने लगीं। गाँव की औरतों को छोटी बड़ी कई जानकारी देती थी। साथ ही साथ मोहल्ले की ल़डकियों को सिलाई – कटाई, चादर की कढाई, बुनाई के सुन्दर सुन्दर डिजाइन भी सिखाया करती थी और गुणवान तो इतनी थी कि शायद कोई ही काम ऐसा होगा जो उन्हें ना आता हो। खेती बाडी, पशु पालन, सिलाई, कढाई, बुनाई, और बाहर के काम भी बखूबी निबटा लेती थी काम करने में तेजी इतनी कि 50 आदमियों की बारात का खाना भी दो घण्टे में ही निबट जाता। एक बड़े आदमी का बिना बाजू का स्वेटर तीसरे दिन पहना देती थी और वो भी घर, खेत और पशुओं का सारा काम करने के बाद भी। गाँव के बडे बूढ़ों का छोटा – मोटा इलाज या कह लो या किसी बीमारी में या दुर्घटना में फर्स्ट – ऐड देकर शहर भेजना हो, बहुत ही जतन, बुद्धिमानी और धैर्य से करती थी, जिसे देखकर बडे – बड़े डॉक्टर भी हैरान रह जाते थे। इतनी गुणवान होकर भी अहंकार उन्हें छूकर भी नहीं गया था और स्वभाव से बहुत ही विनम्र थीं।  

 

पापा दिवाकर जी पी. डब्ल्यू. डी. में सब डिविजनल ऑफिसर के पद पर आसीन थे। वे भी अपने कार्य में कुशल होने के साथ-साथ बहुत ही विनम्र, मिलनसार और सुलझे हुए व्यक्तित्व के इंसान थे। उन्हें इंसान की परख और समझ बहुत अच्छी थी। अपने काम के साथ – साथ वे घर, खेतों और पशुओं के काम में भारती जी की सहायता भी किया करते थे। जैसे खेतों में जुताई, बुबाई, पानी लगाना, फसल काटना या पशुओं को चारा डालना, पानी पिलाना, नहलाना या कभी-कभी दूध निकालना इत्यादि कामों में भारती जी और बच्चों की सहायता किया करते थे।

 

बड़ी बहन निवेदिता 11वीं कक्षा में नॉन मेडिकल से पढ़ाई कर रही थी। उनकी तारीफ में क्या कहें…. शब्द ही मौन हो जाते हैं फिर भी चेष्टा करते हैं…. दूध सा गोरा रंग, सुन्दर नैन – नक्श, छरहरा बदन, नदी की अल्हड़ता और सागर की गम्भीरता ( दोनों ही गुणों का सुन्दर समावेश ) निवेदिता दीदी को और भी आकर्षक बना देता था। जी हाँ….. निवेदिता को हमारी उमा के साथ साथ गाँव में सभी दीदी कहकर पुकारते थे…. उनका तेज ही ऐसा था कि कोई भी उन्हें दीदी कहने पर विवश हो जाता था। माँ – पापा उन्हें निम्मी कहकर पुकारते थे। निम्मी दीदी सारे छोटे भाई बहनों का माँ से भी ज्यादा ख्याल रखती थीं। हर काम पूरी जिम्मेदारी से निबटाती थी। निम्मी दीदी के होते हुए मम्मी-पापा या दादाजी – दादी किसी को भी घर की चिंता नहीं होती थी वे लोग दीदी पर सारा घर की जिम्मेदारी छोड़कर खेत – बार का काम करने चले जाते थे। 

 

अब बारी आती है छोटी बहन वसुधा की….. अब इसकी क्या तारीफ करें….. एक अलग ही प्रकार का नमूना बनाया है ठाकुर जी ने इस धरती पर और शायद एकमात्र भी….. फिर भी कहना तो पडेगा ही। महान शरारतों का दूसरा नाम था वसु अर्थात वसुधा। जी हाँ…. उसे घर – बाहर सभी वसु कहकर ही पुकारते थे। बड़ी ही धाकड़ और नटखट वसु कभी ल़डकियों की चोटियां बाँध देती तो कभी बडे – बूढ़ों की लाठी छुपा देती। छोटे बच्चों को पीटना तो जैसे अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझती थी। उसके इसी स्वभाव से परेशान हो कर, बहुत से बच्चों ने तो स्कूल जाना ही छोड़ दिया था। हुआ ये कि स्कूल जाने का रास्ता उनके घर के सामने से होकर जाता था। उनका घर गाँव के उस चौराहे पर था, जहां से सारे गाँव के लिए रास्ते जाते थे। उस चौराहे पर एक बड़ा सा नीम का पेड़ था। वसु वहीं सुबह – सुबह सारा रास्ता घेर कर खड़ी हो जाती और जो भी बच्चा वहां से गुजरता, उसी को पीट देती। शायद ही गाँव का कोई ऐसा बच्चा होगा, जो उससे पिटा ना हो। जब उसे कोई कुछ कहता तो, या तो वो भाग जाती, या पेड़ पर चढ़ जाती या घर में दरवाजे के पीछे छुप जाती……. खुद कभी किसी से मार नहीं खाती थी।…. हाहाहा 😂 😂 😂 😂….. वैसे सातवीं कक्षा में पढ़ती है वसु… 

 

सबसे छोटा भाई अरुण…. इकलौता और सारी बहनों का लाडला, एकदम भोला – भाला और बहुत ही प्यारा था। सबसे सुन्दर थी उसकी खनकती हँसी…. । वो पाँचवी कक्षा में पढता था और घर पर उसे पढ़ाने का काम करती थी… निम्मी दीदी और उमा दीदी। वैसे तो वसु भी उससे बडी थी और सातवीं कक्षा में पढ़ती थी, पर वसु की अरुण से लड़ाई हो जाती थी। वो उसकी चोटी खींच कर भाग जाता तो वसु उसे पकड़ कर पीट देती। वसु की कभी उमा से, तो कभी अरुण से लड़ाई चलती ही रहती। वैसे चारों भाई बहनों में प्यार बहुत था। 

 

दादा जी वैसे तो बड़े ताऊ में रहते थे पर जब तक उमा, निम्मी या भारती जी में से किसी के हाथ की चाय ना पी ले उन्हें चैन नहीं पड़ता था। पेशे से किसान, शांडिल्य गोत्री ब्राह्मण परिवार के सर्वोच्च मुखिया नारायण शर्मा ( दादाजी ) और दादी शारदा जी मिलनसार स्वभाव के थे। बुढापे का समय काटने के लिए एक दूसरे से लड़ने का दिखावा करते थे और एक दूसरे के बगैर उन्हें चैन भी नहीं था। यूँ तो दादाजी अनपढ़ थे और दादी अंग्रेजों के समय की भी चार जमात पढ़ी थी। फिर भी दोनों में अपार स्नेह था। दादाजी साँवले थे और दादी दूध सी गोरी… इसलिए दादाजी उन्हें ” सिंहल दीप की रानी ” बुलाते थे। 

 

अब बारी आती है हमारी नायिका उमा की….. अल्हड…, बहती नदी से निर्मल मन की उमा को दो ही कामों का सबसे ज्यादा शौक था…. एक तो पढना….. और दूसरा नृत्य करना। उसकी सबसे बडी कमजोरी या सबसे बड़ी ताकत…. जो भी कह लो….. उसका ध्यान बहुत ही ज्यादा केंद्रित था। वो इतनी ज्यादा केंद्रित थी कि भीड़ में भी बिना किसी की बात सुने एकांत प्राप्त कर लेती थी। जब भी कोई काम करती, तो जब तक वो काम पूरा ना हो जाए, ना तो उसे कुछ सुनाई देता था और ना ही कुछ दिखाई। फिर चाहे उसके कान पर बैंड बाजे ही क्यों ना बज रहे हों। जब अपना काम निबटा कर उठती, तो सबसे पूछती – – – तुम सब शोर क्यों मचा रहे हो? हाहाहा 😂 😂 😂….. हमारी उमा का एक ही फलसफा था….. मस्तराम मस्ती में…. आग लगे चाहे बस्ती में… 😊 😊 😊 

 

कहानी आगे बढ़ाने से पहले एक मजेदार किस्सा सुनाते हैं हमारी प्यारी सी उमा का….. हुआ यूँ… जब उमा पाँचवी कक्षा में पढ़ती थी। तो एक शाम भारती जी ने उमा से कहा कि…. 

 

भारती जी – जा उमा… भैंस के चारे में आटा मिलाया और उसे दो बाल्टी पानी भी पिला देना, फिर मैं दूध निकाल लाउंगी। 

 

उमा ने मुँह चढ़ाते हुए कहा – माँ, मुझे स्कूल में काम मिला है, प्रार्थना पत्र याद करना है। 

 

भारती जी – एक काम कर… याद करती करती चली जा और याद करती करती आ जाना। इतनी देर में तुझे याद भी हो जाएगा और काम भी निबट जाएगा। ( उस समय माँ बाप की बात में कमी निकालना दिमाग में भी नहीं आता था, वो जैसा बोलते थे वैसे ही कर देते थे।) 

 

ठीक है माँ….. – कहकर उमा आटा और कापी लेकर याद करती करती चली गई। नोहरे ( पशुओं को बांधने का स्थान ) में जाकर चारे में आटा मिला दिया, याद करते करते ही अगले दिन के लिए खर भी भिगो दी और वापिस घर चली आई। जब माँ ने घर आने के बाद भैंस को पानी पिलाने का पूछा तो कहती कि वहाँ भैंस थी ही नहीं, पानी किसे पिलाती। सब घर में हँस – हँस कर लोट – पोट हो गए कि अंधी हो गई ये तो, इतनी बड़ी भैंस नहीं दिखी इसे। फिर निम्मी दीदी जाकर भैंस को पानी पिला कर आईं थीं। ऐसा था हमारी नायिका उमा का बचपन…. 

 

रात का खाना खाकर पूरा परिवार एक साथ बैठ कर रामायण या भागवत का पाठ करता था। भक्ति पूजा पाठ में सबकी पूरी रुचि थी इसीलिए तो घर में भागवत पुस्तकों का भंडार था। किसी भी विषय की पुस्तक घर में मिल जाती थी। शायद इसी कारण हमारी नायिका पढ़ने की शौकीन थी। अरे हाँ……दूसरा शौक था हमारी नायिका को और वो था नृत्य का। रात को 11.00 बजे दूरदर्शन पर नृत्य का अखिल भारतीय कार्यक्रम आता था, जिसे देखकर उमा नृत्य की मुद्राएं सीखा करती थी। नृत्य में दक्ष कितनी हुई ये तो पता नहीं भावपूर्ण मुद्राएँ बनाना अवश्य सीख गई थी। जब दूसरे भाई बहन उसकी टांग खिंचाई करते तो वो उनसे रूठ कर अपनी किताबों में घुस जाती।

 

चलो ये तो हुआ परिचय। वैसे उस दौर की एक बात बहुत अच्छी थी कि किसी को भी घर का काम बोझ नहीं लगता था। सब खुश होकर काम करते थे। 

 

उमा दादा जी को पानी देकर आई और घर में सबके पास बैठ कर चाय पीने लगी। दादी ने उससे पूछा – उमा! लाली… वो बुड्ढा क्या कर रहा था। 

 

उमा – कुछ नहीं दादी, कमरे में बैठे हुक्का पी रहे थे। 

 

शारदा जी – कह रहा होगा कि….. बुढिया कहाँ मर गई? 

 

उमा – क्या दादी…. कुछ भी अटकल नहीं लगाते…. गर्मी हो रही है ना, उन्हें प्यास लगी हुई थी और मैं सो गई। वो आवाज लगाते रह गए। 

 

शारदा जी – अब दे आई तू पानी…. 

 

उमा – जी दादी….. दे आई… 

 

शारदा जी – ( उमा के सिर पर हाथ फेरकर ) जीमती रह मेरी बच्ची…. 😊 😊 😊 😊 

 

उमा चाय पीकर – मैया…. मैं दूध निकालने जा रही हूँ…. 

 

भारती जी हँसते हुए – जा और पहले दो बाल्टी पानी पिला देना भैंस को…. बेटा गर्मी बहुत ज्यादा हो रही है.. 

 

उमा – दो बाल्टी से कुछ ना होय तिहारी भैंस के…. कम से कम चार बाल्टी पीती है… 

 

भारती जी – जा अब…. 

 

उमा दूध निकालने चली जाती है। 

 

शारदा जी – भैंस भी हिला ( प्यार से वश में करना ) रखी है तेरी छोरी ने…. 

 

भारती जी – ( हँसते हुए ) हाँ… और माँ… ये उससे अँग्रेजी में बात करती है और वो भी इसकी सारी अंग्रेजी समझती है। 

 

दोनों सास बहू मिलकर हँसने लगती है…. 

 

उधर उमा जाकर भैंस को पानी पिलाती है फिर दूध निकालती है….. दूध निकालते समय आधा दूध खुद पीती है, कुछ भैंस को पिलाती है और आधा दूध कटिया के लिए छोड़ देती है और दूध से भरी बाल्टी लेकर घर आ जाती है। 

 

भारती जी – कितना निकाल के लाई है….? 

 

उमा – देख लो…. आपके हाथ नपे-तुले हैं… आप ही बताओ….. मुझे नहीं पता चलता। 

 

भारती जी बाल्टी को देखकर दूध का अंदाजा लगाती हैं 

 

भारती जी – तूने कितना पिया….? 

 

उमा – मैंने कहाँ पिया…. सारा तो निकाल लाई… 

 

भारती जी – हाँ… तेरे मुँह पर तो मैंने दूध मसल दिया। 😊 😊 😊…. चल जा मुँह धोकर आ। 

 

उमा हँसने लगती है… और मुँह धोने चली जाती है। उसी समय निम्मी आ जाती है… 

 

भारती जी – उमा सबके लिए चाय बना दे…. देख दीदी भी आ गई है और ताजे दूध की बनाना…। 

 

उमा मुँह पोछते हुए – ठीक है माँ 

 

उमा दीदी को एक गिलास पानी देकर चाय बनाने चली जाती है और बढ़िया सी सबके लिए एक एक गिलास चाय बनाती है और दो गिलास चाय दादाजी के लिए। सबको चाय देकर उमा दादाजी को चाय देकर आती है और फिर सबके साथ मिलकर अपनी चाय पीती है। 😊 😊 😊 

 

चाय पीकर भारती जी रात के खाने की तैयारी करती हैं। 

खाना बना कर सबको खिलाती हैं। 

 

Radha Shri Sharma

One Reply to “प्रेम योग”

  • रेखा शर्मा

    प्रेम योग….. सचमुच इस कहानी के माध्यम से प्रेम को एक योग के रूप में ही दर्शाया गया है।

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