
व्यक्तित्व परिचय – श्रीमती आशा शुक्ला
- Kalpkatha Admin
- 19/01/2024
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- साक्षात्कार
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नाम : – श्रीमती आशा शुक्ला
माता का नाम : स्व.श्रीमती शरबती देवी
पिता का नाम :श्री श्यामनारायण अवस्थी
जन्मस्थान :ग्राम, बंथरा,शाहजहांपुर,उत्तरप्रदेश
जन्मतिथि :- (स्वैच्छिक, यदि बताना चाहें तो)
01/01/1973
पति का नाम :श्री बृजकिशोर शुक्ला
बच्चों का नाम :मयंक शुक्ला,दामिनी शुक्ला,शशांक शुक्ला,निहारिका शुक्ला
शिक्षा : एम.ए.हिंदी
आपकी पसंद……… अच्छी साहित्यिक पुस्तकें पढ़ना, संगीत सुनना , आर्ट बनाना और खाली समय में क्राफ्ट सब्जेक्ट पढ़ाना पसंद है।
भोजन : सादा भोजन दाल – चावल,सब्जी रोटी ही अच्छी लगती है,,,ज्यादा मसालेदार खाना या फास्ट फूड अच्छा नहीं लगता।
रंग : सफेद और काले रंग के अलावा सभी रंग अच्छे लगते हैं।
परिधान : सबसे अच्छा परिधान साड़ी का लगता है।
स्थान एवं तीर्थ स्थान : प्राकृतिक सुषमा से युक्त स्थान अच्छे लगते हैं। हरिद्वार,प्रयागराज,वृंदावन आदि शांत तीर्थ अच्छे लगते हैं।
लेखक /लेखिका : शरतचंद्र चट्टोपाध्याय, विभूतिभूषण वंद्योपाध्याय,शिवानी,मुंशी प्रेमचंद,जयशंकर प्रसाद,वृंदावन लाल वर्मा, आदि हैं जिनकी लिस्ट लंबी है।
विदेशी लेखकों में आस्कर वाइल्ड,थॉमस हार्डी, ओ हेनरी,हैं। इसके अलावा कहानी लेखन ऐप पर बहुत से लेखक हैं जिनकी रचनाएं बहुत प्रभावशाली हैं।
उपन्यास / कहानी / पुस्तक : विभूतिभुषण वंद्योपाध्याय का उपन्यास ,,पथेर पांचाली ,,मुझे सबसे अच्छा लगता है। कई बार पढ़ कर भी पढ़ने को मन करता है।कहानी में शरतचंद्र की,,राम की सुमति,चंद्रधर शर्मा गुलेरी की,,उसने कहा था,,अच्छी लगती है।
खेल :बचपन में खुद खेला था तो खो खो पसंद था ।अब क्रिकेट देखना अच्छा लगता है।
मूवी / धारावाहिक (यदि आप देखती हैं तो) : जागृति,सीमा,मदर इंडिया ,आया सावन झूम के,आनंद ,,जैसी म्यूजिकल और संदेशप्रद फिल्मे पसंद हैं।
लापतागंज,चिड़ियाघर, जैसे हल्के फुल्के कॉमेडी सीरियल अच्छे लगते हैं,, वाकी अन्य धारावाहिक मैं ज्यादा नहीं देखती।
रचनायें (प्रकाशित एवं अप्रकाशित गद्य व पद्य सभी रचनायें)
प्रकाशित कृतियां -जल बिच मीन पियासी (उपन्यास)
साझा संग्रह -भारत@75 ,मेरा गांव ,पिटारा,शहादत इक इबादत,जिद जीत की,दो टूक जिंदगी,उत्तर – आधुनिक काव्य -21वीं सदी की कविताएं,माहिया के हस्ताक्षर,पलाश,काव्य -शतक,भावनाओं के परिंदे,लघुकथा प्रदीप,साहित्य दशक,सुकून के दो पल (प्रकाशाधीन)
प्रतिलिपि पर प्रकाशित रचनाएं -जल बिच मीन पियासी, अफसाना मोहब्बत का, कातिल हसीना, मैं फिर भी तुमको चाहूंगा, ड्रीम्स ऑफ वासवदत्ता, वे झरे हुए फूल, तेरा साथ है कितना प्यारा, भूतिया बंगला (हॉरर पुरस्कृत कहानियों का संग्रह), मुझे पिशाचिनी से बचाओ, अजनबी के खत (लघुकथा संग्रह), एडवेंचर्स ऑफ परकाया प्रवेश, स्वर्ण कमल -इन द लैंड ऑफ डेविल्स, अजूबा का तमाशा, नल -दमयंती -ए ग्रेट लव स्टोरी, एक लड़की भीगी भागी सी (पुरस्कृत कहानियां),
,खौफ के साए (पुरस्कृत हॉरर कथा संग्रह), नई सुबह की नई उड़ान(पुरस्कृत लेखन मैराथन),
काव्य – गीतिका शतक, मेरे मन के छंद(कुंडलियां शतक), मनभावन विविध सवैया(सौ सवैया), कित्तूर की रानी चेन्ननम्मा (आल्हा छंद), उत्सव सृजन का, कला के रंग, पूछ रहा है दिल मेरा तुमसे , दोहे दादी नानी की औषधियों पर(दोहों के सौ शतक), कुछ दोहे अलबेले (दोहा संग्रह)
पुरूस्कार एवं विशिष्ट स्थान :- (साहित्य क्षेत्र में अब तक जितने भी प्राप्त हुए हैं।)
कहानी लेखन एप द्वारा दिए गए पुरस्कार
वतन के रखवाले (प्रथम पुरस्कार),भूतिया बंगला(प्रथम पुरस्कार),कोवलम – कन्नगी (प्रथम पुरस्कार) ,एक लड़की भीगी भागी सी (द्वितीय पुरस्कार),मृत्यु (द्वितीय पुरस्कार),पहला पहला प्यार (द्वितीय पुरस्कार),तुमसे मेरी लगन लगी है(तृतीय पुरस्कार),
अन्य पुरस्कृत रचनाएं -नटखट चारु की मजेदार दुनिया,खौफ के साए,बॉयज होस्टल,बचपन की बारिश -कागज की नाव, वे लाशें किनकी थीं,ऐसी बहुत सी पुरस्कृत कहानियां हैं।
विभिन्न साहित्यिक मंचों के द्वारा प्राप्त कई सम्मानपत्र
दैनिक जागरण समाचारपत्र द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में
प्राविधिक मंत्री श्री जतिन प्रसाद द्वारा प्रदत्त,,साहित्य पुरस्कार।
प्रश्न 1. आपकी साहित्य में रुचि के मूल कारण क्या रहे?
उत्तर – साहित्य में मेरी रुचि कुछ तो जन्मजात है, कुछ परिवेश ऐसा रहा है कि होश संभालते ही घर में किताबें देखीं।पिताजी को किताबों में तल्लीन देखती थी।उनसे हजारों सवाल पूछती थी,,,वे बड़े धैर्य से मेरे हर सवाल का जवाब देते थे। फिर किताबों को पढ़ना शुरू किया तो यह सिलसिला अनवरत चला।
शादी के बाद तमाम उलझनों और जीवन के कठिन उतार चढ़ाव के बीच इसमें विराम जरूर लगा परन्तु बच्चो के प्रयत्न से पुनः साहित्य साधना में कदम रखा और,,,मार्च 2018 से लेखन शुरू कर दिया।
प्रश्न 2. आधुनिक और प्राचीन काल के किन रचनाकारों की रचनाओं को आप अपनी रचनाओं के अधिक निकट पाती हैं?
उत्तर – पुराने लेखकों में मुंशी प्रेमचंद,जयशंकर प्रसाद के अलावा बंगला लेखकों की रचनाएं पसंद थीं।उनके साहित्य से उस समय के काल खंड के दर्शन होते हैं। समय के साथ परिस्थितियां बदलती हैं। वैसा ही साहित्य भी बदलता जाता है।
शिवानी, मालती जोशी, उषा प्रियम्वदा की रचनाएं अच्छी लगीं। वर्तमान में कहानी लेखन पटल के कई लेखकों की रचनाएं पसंद आ रही हैं। उच्च कोटि की रचनाएं पढ़ने को मिल रही हैं। लेखकों में अपार क्षमताएं हैं। इस डिजिटल युग में सबको अवसर मिल रहा है,, इसलिए कुछ सीमित लेखकों के नाम लेना नामुमकिन और अनुचित है
प्रश्न 3. “जल बिच मीन प्यासी” कहानी की पृष्टभूमि का चयन कैसे किया?
उत्तर – मेरे मन में जल बिच मीन पियासी ,कहानी की पृष्ठभूमि एक लड़की के संघर्ष को देखकर आई। मेरे परिचितों में एक लड़की थी।उसके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी।उसकी शादी दहेज के कारण रुकी थी।तभी उन्हें एक ऐसा अधेड़ मिला जो धनवान था पर उसके बच्चे नहीं थे।
इसलिए लड़की के मां बाप ने उसकी इच्छा के विरुद्ध उससे लड़की की शादी कर दी। फिर लड़की के बच्चा होने के बाद उसे छोड़ भी दिया गया।अंत में मायके में रहते हुए वह लड़की मानसिक रूप से विक्षिप्त हो गई और उसकी दुखद मौत हुई।
मुझे बहुत गुस्सा आया कि यह कैसा समाज है ,,,,और अगर उस लड़की ने संघर्ष किया होता तो शायद वह जिंदा होती। तभी मैंने वह कहानी लिखी और उसका अंत इस तरह का किया ,,जिसमें नायिका अपनी लड़ाई लड़ती है और अपनी मंजिल भी हासिल करती है
प्रश्न 4. आपकी रचना “स्वर्णकमल” के प्रमुख पात्र के विशिष्ट गुण कौन से रहे और उनका चयन आपने कहाँ से किया?
उत्तर – स्वर्णकमल का नायक अशोक,वीर,साहसी,कर्तव्यनिष्ठ है। वह राजा का रक्षक है लेकिन राजकुमारी से प्रेम करने लगता है।यहां कर्तव्य और प्रेम के बीच झूलता हुआ वह कर्तव्य को चुनता है।अपने साहस से वह अपने अभिशप्त भाई को भी मुक्ति दिलाता है और राजा का इच्छित स्वर्णकमल भी लाकर देता जिससे प्रसन्न होकर राजा उससे राजकुमारी का विवाह कर देते हैं।इसकी प्रेरणा मुझे बचपन में सुनी एक छोटी सी लोककथा से मिली।उसको मैंने कल्पना का विस्तार दिया और ये कहानी लिखी।
प्रश्न 5. आपकी रचना के नायक और खलनायक को यदि आपको उनके विपरीत स्वरुप में प्रदर्शित करना पड़े तो आप कैसे करेंगी?
उत्तर – तब तो कहानी का रूप ही बदल जायेगा। आम कहानियों में नायक का गुणवान रूपवान होना अपेक्षित है। नायिका भी उसकी तरफ तभी आकर्षित होती है। पर आजकल बदलते परिवेश में नायकों का स्वरूप बदल चुका है। उनमें मानवीय कमजोरियां हैं।
अगर नायक को खलनायक प्रदर्शित करना पड़ेगा तो उनकी सामान्य कमजोरियों को दिखाना होगा अगर यथार्थ रूप चित्रित करना है तो उसी रूप में कहानी समाप्त हो जायेगी। लेखक की रचनाएं समाज पर असर डालती हैं,,,तो हर समस्या का हल भी दिखाना होगा। अंततः बुराई पर अच्छाई की ही जीत होती है अतः नायक को अंत में सुधरा हुआ दिखाऊंगी।
उसी तरह से नायक को यदि खलनायक दिखाना है तो यह और भी आसान है क्योंकि आजकल अधिकांश व्यक्ति दोहरा जीवन जी रहे हैं जो दिखते कुछ और हैं ,,,होते कुछ और हैं। अच्छा होते होते नायक बुराई की ओर मुड़ जाता है। हर हाल में घटनाक्रम और परिस्थितियां नाटकीय मोड़ लेंगी,,,पर अंत वही है बुराई पर अच्छाई की जीत।
प्रश्न 6. अगले पाँच सालों में साहित्यिक क्षेत्र में आप स्वयं को कहाँ देखती हैं?
उत्तर – अभी तो यह कहना मुश्किल है। प्रयत्न अपने हाथ में है, पर सफलता ईश्वर के हाथ में है। हां यह जरूर है कि साहित्य के पथ पर अग्रसर होना है। पांच सालों में लगभग चार उपन्यास और कुछ काव्य के साझा संग्रह जरूर आयेंगे। बाकी फैसला पाठकों पर निर्भर है कि मेरा स्थान क्या होगा।
प्रश्न 7. लगातार होते परिवर्तनों के बीच में आप साहित्य को भविष्य में किस स्वरूप में उच्चतम स्तर पर देखती हैं?
उत्तर – लगातार परिवर्तनों के बीच साहित्य अब एक नए रूप में आ रहा है। युवा वर्ग को पढ़ना पसंद है वह साहित्य को खूब पढ़ रहा है। वह जागरूक है,,,हर ज्वलंत और तत्कालीन समस्याओं पर अपनी तीखी प्रतिक्रिया देता है।एक ओर वह यथार्थ को पसंद करता है,,तो दूसरी ओर पौराणिक आख्यानों को हाथो हाथ ले रहा है। आने वाले समय में साहित्य का भविष्य उज्जवल है।यह विविध विषयों में फल फूल कर नई पीढ़ी के जीवन को प्रकाश देगा।
प्रश्न 8. आप साहित्य को और भी अधिक समाज उपयोगी बनाने के लिए किन प्रयासों की अनुशंसा करती हैं?
उत्तर – सबसे पहला तो यही होना चाहिए कि लेखक रचना में मनोरंजन के साथ कोई संदेश भी शामिल करें। केवल पैसे कमाने का लक्ष्य रचना के साथ साथ समाज का भी विनाश करता है। पर कहीं न कहीं लेखक भी दवाब में रहता है और वह समाज में व्याप्त बुराई को खुल कर नहीं लिख सकता,, कि कहीं विरोध न होने लगे। प्रकाशको को भी इस दिशा में काम करना चाहिए। वे अच्छी रचनाओं को चुन कर प्रकाशित करें, लेकिन अफसोस की बात है कि धड़ाधड़ पैसे देकर स्तरहीन रचनाएं छप रही हैं। जिनके अंबार में अच्छे लेखकों की रचनाएं कहीं खोकर रह जाती हैं।
प्रश्न 9. आपने पद्य विद्या में बहुत साधना की है। आपको उसे सीखने की प्रेरणा कहाँ से और कब मिली?
उत्तर – मैं जो ठान लेती हूं वह करके मानती हूं,,, कि देखें यह काम होगा कैसे नहीं,,।
मैं पहले छंदमुक्त कविताएं लिखती थी। मैने फेसबुक पर एक पोस्ट देखी। किसी वयोवृद्ध कवि ने किसी के लिए कमेंट किया था,,,, आजकल हर कोई कवि बन गया है।पाई मात्रा का कुछ भी ज्ञान नहीं।छंद किस चिड़िया का नाम है यह भी पता नहीं ।बस दो किताबें छपवा लीं और लो,,,,हो गए कवि।
बस उसी दिन से मैंने ठान लिया कि मैं अब सारे छंद सीखूंगी,,,क्या पता कल कोई मेरे बारे में यह सब कहने लगे।
फिर मैने छंद प्रतियोगिता का एक ग्रुप ज्वाइन किया और छंद लिखने लगी।कुंडलियां,दोहा,रोला,घनाक्षरी, सोरठा, आल्हा, गीतिका,नवगीत आदि छंदों को मैने भलीभांति सीख लिया।इन छंदों में सम्मान भी प्राप्त किया।
एक दिन वही महानुभाव मिल गए।मेरी कुंडलियां की पोस्ट पर पब्लिकली इन्होंने कमेंट किया,,,,कुंडलियां के बारे में जानती हो?बताओ?
मैं कुंडलियां शतकवीर बन चुकी थी।
उस दिन मुझे बहुत खुशी हुई।मैने बड़े विस्तार से बताया। उन्होंने खुश होकर ढेर सारा आशीर्वाद दिया।और खूब तारीफ की।
प्रश्न 10. आपने हॉरर सीरीज में कई रचनाएं लिखी हैं। आप अपने उस अनुभव के बारे में हमें बताइये।
उत्तर – हॉरर मुझे शुरू से पसंद नहीं था। लेकिन एक चुनौती आई थी कि एक लेखक को हर कैटेगरी में लिखना चाहिए। तो मैंने इसे चुनौती के रूप में लिया,,, और मैंने हॉरर कहानियां लिखीं। लेकिन यह बहुत कठिन प्रयास था। मैं कल्पना करती थी कि मैं भुतहा माहौल में हूं ,,,किसी मरघट में खड़ी हूं। फिर कल्पना करके भयानक से भयानक रूप में जो लिख सकती थी वह लिखती थी।
शुरू शुरू में तो मेरी हॉरर रचनाओं के भूत लास्ट में कॉमेडियन में बदल जाते थे ,,,क्योंकि वे अपने शिकार को इतना बेरहमी से मार ही नहीं पाते थे ,,,, फिर मेरे बच्चे मेरी हॉरर कहानी को पढ़कर हंसते थे ,,,कि मम्मी के भूत बड़े दयालु हैं। भुतहा मकान, कहानी ऐसी ही है। लेकिन फिर मैंने हॉरर कहानियों को लिखने में सफलता पाई और मुझे पुरस्कार भी हासिल हुए।
प्रश्न 11. आपने एक कहानी ऐतिहासिक लिखी थी “टेल्स ऑफ वासवदत्ता”। आपने इसके इतिहास के बारे में कहाँ से पता किया और इसका चयन आपने अपने लेखन के लिए क्यों किया?
उत्तर – इसका प्रेरणा स्रोत संस्कृत में रचित ,,स्वप्नवासवदत्ता,, था। इसके अलावा और भी स्रोतों से मैंने इस कहानी के बारे में पता किया। मेरे मन में विचार आया कि एक से एक बेहतरीन कहानियां संस्कृत साहित्य में है। लेकिन जो संस्कृत नहीं जानते वे उन कहानियों का आनंद नहीं उठा पाते ।तो क्यों ना मैं उन कहानियों को हिंदी में लिखूं ,,तो सबको कहानियों को पढ़ने का आनंद मिलेगा। दूसरे हम अपने इस बेशकीमती साहित्य से परिचित हो सकेंगे तभी मैंने यह कहानी लिखी।
प्रश्न 12. आप कहती हैं कि आपकी कहानी “कच्चे नीम की निम्बौरी” आपके मन के सबसे निकट है। हम इसका कारण जानना चाहेंगे?
उत्तर – वास्तव में ,,कच्ची नीम की निमकौरी,,एक लोकगीत है। जब मैं बहुत छोटी थी,,तो मैं और मेरी सहेलियां नीम के पेड़ पर पड़े झूलों पर झूलती थीं और बहुत सारे खेल खेलती थीं।उन्हीं में से एक लड़की थी जिसे हम छोटी कहते थे।उसका चेहरा भी बहुत ही प्यारा था,,वह इस सावन गीत को खूब गाती थी इसके अलावा भी उसे बहुत से सावन गीत आते थे।
फिर मेरे पिताजी का ट्रांसफर दूसरे शहर में हो गया और हम सभी लोग चले गए। कई सालों के बाद जब हम लौट कर आए तब हमें पता चला कि उसकी मौत हो चुकी है जिससे मुझे बहुत गहरा धक्का लगा। जब भी मैं उधर जाती थी तो उस नीम के पेड़ को देखकर मुझे उसकी बहुत याद आती थी।
अब तो समय बिल्कुल बदल गया है न तो वह घर रहा न वह नीम का पेड़ ,,, कुछ भी नहीं रहा।सब बदल कर नया हो गया है पर उसकी याद आज भी आती है ,,,उसी की याद में मैंने यह कहानी लिखी।
प्रश्न 13. कल्पकथा से जुड़े हुए आपको लगभग एक वर्ष से ऊपर हो गया है। आपका अनुभव कैसा रहा कल्पकथा के साथ जुड़कर?
उत्तर – कल्पकथा से जुड़ने का अनुभव बहुत ही अच्छा रहा। एक वर्ष के अल्प समय में कल्पकथा ने बहुत खूबसूरत सफर तय किया है। दैनिक, साप्ताहिक और मासिक रचनाओं का निरंतर प्रकाशन, विचार गोष्ठी के लिए से अलग से कार्यक्रम बहुत ही अच्छे रहे हैं। रचनाओं को पत्रिका में देखकर और भी खुशी होती है।इसके अलावा रविवार को नियमित रूप से वीडियो काव्य गोष्ठी से सभी रचनाकार जुड़ते रहे। सम्मानपत्र रचनाकारों का प्रोत्साहन बढ़ाते हैं। छंद पाठशाला में छंदों का ज्ञान कराया गया। प्रतियोगिता भी कराई गई,, जिससे छंद सीखने के इच्छुक रचनाकारों को लाभ मिला। प्रयागराज में भव्य वार्षिक समारोह के साथ कल्पकथा ने एक वर्ष पूरा किया ये सफर बहुत ही सुखद रहा।
प्रश्न 14. आप कल्पकथा की प्रगति और उन्नति के लिए क्या सुझाव देंगी?
कल्पकथा की प्रगति के लिए रचनाकारों में जागरूकता लानी है। जिससे समय निकाल कर उसमे सब शामिल हों। इससे उदासीन सदस्यों में भी उत्साह आयेगा। इसके लिए समय समय पर ऑनलाइन ऑडियो ,काव्य सम्मेलन भी करवाया जा सकता है जिससे व्यस्त होकर भी सब भाग ले सकते हैं।
बीच बीच में खास अवसर पर ई बुक पर रचनाएं संकलित हो सकती हैं।
प्रश्न 15. आप समाज को क्या संदेश देना चाहती हैं?
उत्तर – समाज को मैं ये संदेश देना चाहती हूं कि मानवता का भाव सर्वोपरि है। इस मूल भाव को छोड़कर दुनिया भर के अंधविश्वास में न पड़ें।जो सही है उसे अपने विवेक से ग्रहण करें और भेड़चाल को छोड़ दें।इससे जाने कितनी ही कुरीतियां समाप्त हो जाएंगी। ये वह दौर चल रहा है जहां व्यक्ति असमंजस में है।भौतिकतावादी परिवेश हावी हो रहा है तो वह इसी रास्ते पर चल पड़ा है।पर परिणाम निराशाजनक हैं,नैतिकता का पतन हुआ है तो उसके दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं।आज के लगभग हर व्यक्ति के मन में कहीं न कहीं छटपटाहट भी है,,एक कसक है कि हम कहां जा रहे हैं,,वह साहित्य में भी दिख रहा है।सारी विसंगतियां साहित्य के माध्यम से उभर कर आ रही हैं। मेरा मानना है कि केवल कल्पना से कुछ हासिल नहीं होना है,,वहीं कठोर यथार्थ को ज्यों का त्यों लिखने से घोर निराशा उपजेगी।इसलिए साहित्य के माध्यम से मैं समाज को यही संदेश देना चाहती हूं कि जीवन कठिन है,,यथार्थ बहुत कठोर है, पर निराश नहीं होना है,हिम्मत नहीं हारनी है, जीवन के अंतिम क्षण तक संघर्ष करो और जीवन को सुगम बना लो।
इसी संदेश की वजह से मेरी अधिकांश कहानियां सुखांत हैं।
लेखिका :-
आशा शुक्ला
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