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होली है भई होली है

 

होली है भई होली है, बुरा न मानो होली है। 

उछलकूद नटखट मरकट सी खुशियां हंसी ठिठौली है।

हुरियारों की टोली है।

होली है भई होली है, बुरा न मानो होली है।

लाल गुलाबी नीले पीले हरे बैंगनी श्वेत सजीले रंगों के बादल सपनीले।

करतब कौतुक और किलोल की मस्ती रंग भिगोली है।

होली है भई होली है, बुरा न मानो होली है।

 

 

मिले सामने सींक महाशय नाम था जिनका पर्वतराज,

राह बदल दें देख स्वान को मिले शेरसिंह हमको आज।

देख छिपकली जो चिल्ला दें वीर बहादुर प्यारे, 

प्रेम प्यारे नाम के भैया भटकत न्यारे न्यारे।

देख तवा जिनको शर्माए उनका सुंदर नाम,

रंग दूध सा जिस तरूणी का कहें सांवली आम।

लड़त हवा से शाम सुबह जो शांतिलाल कहावें, 

फूटी आंख दीन न देखें खुदको दीनदयाल बतावें।

नाम फूलचन्द्र कक्का जिनकी है पत्थर सी भाषा,

रोवें रोज रोज जीवन में कहते पूर्ण हुई अभिलाषा।

महीनन मंदिर पट न देखें नाम भगत जी भाई,

संकट मोचन जी के ऊपर विपदा हर क्षण आईं।

धीरज से लेना न देना धीरजवान है लिखते,

बैठें पुलिस कोठरी में नित सज्जन बनकर फिरते।

मन में भेद मिठास वचन में फिर कहते हमजोली हैं।

होली है भई होली है, बुरा न मानो होली है। 

उछलकूद नटखट मरकट सी खुशियां हंसी ठिठौली है।

हुरियारों की टोली है।

होली है भई होली है, बुरा न मानो होली है।

 

होली खेलें भोले बाबा महादेव जी शिवशंकर कैलासी,

एकादशी मनाई रंग से गौरा मां के रंग में रंग गई काशी।

मुदित गजानन रिद्धि सिद्धि कार्तिकेय वल्ली देवयानी शुभ राशि,

झूमें मूषक, झूमें नंदी, नाग वासुकी शशिशेखर गण आशी।

ब्रज मण्डल में होली खेलें केशव मुरलीधर घनश्याम,

संग राधिका रानी प्रमुदित, हर्षित कुंज गली सुख गाम।

गोप गोपियां ग्वाले धेनु लता वल्लरी कानन उपवन, 

मथुरा हर्षे, गोकुल हर्षे होली, आनंदित पा वृन्दावन धाम।।

होली खेलें कंचनवन में युगल छविधर राम सिया सुखदाई,

सखियां रंग अबीर उड़ावें, मिथिलांचल पुलकित भाई।

सर शधानें जब करुणाकर प्रकटी बिग्घी गंगा की जलधारा,

खैलें होली भरत शत्रुघ्न लखनलाल जी आनंद मंगल छाई।

देव देवियां ऋषि मुनि गावत मधुर मिलन शुभ बोली है।

होली है भई होली है, बुरा न मानो होली है। 

उछलकूद नटखट मरकट सी खुशियां हंसी ठिठौली है।

हुरियारों की टोली है।

होली है भई होली है, बुरा न मानो होली है।

 

लगे बसंती फगुआ बहने मिल बयार के झोंके से,

मधुरम मन में लगे झूमने स्पंदन के कोने से।

तरुवर पादप लगे बदलने जैसे बदले वस्त्र विशेष,

नव कोंपल, नव सृजन, उभरने लगे मदन के मौके से।

जली होलिका ख़ुद प्रभाव से, बच गए जहां भक्त प्रह्लाद,

हुईं शाश्वत भक्ति भावना बिखरा तृण सा पाप प्रसाद।

कहीं फूल से, कहीं रंग से, कहीं लठ्ठ से, कहीं शस्त्र से,

स्वांग रचाते तरह तरह के रुचिकर खट्टा मीठा तीखा स्वाद।

परिवर्तन की लगे घूमने कथा रीति अनमोली है।

होली है भई होली है, बुरा न मानो होली है। 

उछलकूद नटखट मरकट सी खुशियां हंसी ठिठौली है।

हुरिया

रों की टोली है।

होली है भई होली है, बुरा न मानो होली है।

 

पवनेश

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