
लाड की खुश्बू
- पवनेश
- 28/03/2024
- लघुकथा
- लाड की खुश्बू
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“अरे वाह, दीदी आ गई है।” कॉलेज से वापसी घर के दरवाजे पर लड्डू ने चहकते हुए बताया।
“रेखा, तेरा सरप्राइज फिस्स हो गया।” मां ने खुशी से मुस्कुराते हुए रेखा को आवाज दी।
“तुझे कैसे पता चला?” छोटे भाई को कलेजे से लगाती रेखा की आंखों में स्नेह का सागर लहराने लगा। “मैंने तो तुझे सरप्राइज देने के लिए वीक डे में आईं थी।”
“दीदी. . . . . . !!” लड्डू अपनी दीदी के कंधे पर लाड से सर रखते हुए, “आप रहोगी और मुझे पता नहीं लगेगा। दरवाजे पर ही गुझिया की खुशबू ने बता दिया आप आ गई हो।”
“ओ नौटंकी,” मां ने दोनों के लाड की बलाएं ली। “गुझिया तो सब एक ही तरीके से बनाते हैं, ये बहन के लाड की खुशबू है जो सिर्फ़ तुझे समझ आती है।”
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