
पौने का होना ( पूरे से कम )
- Deepak Kumar Vasishtha
- 10/04/2024
- काव्य
- कविता, ख्वाब, पौना, हिन्दी काव्य
- 1 Comment
पौने का होना ( पूरे से कुछ कम )
जीवन में जो कुछ मिला,
पौना ही रह गया,
दी सांस अगर ,
जीना था, सौ वर्ष मगर,
पौना ही रह गया,
सोचा था खेलेंगे मन भर,
मां ने जो लगाई आवाज़
खेल अधूरा ही रह गया,
पढ़ पढ़ कर काटी रात सभी
आया निष्कर्ष तो
पौना ही रह गया,
पाया तो रिश्तों में कुछ न ,
लोगों को खोना ही रह गया,
प्रेम मार्ग पर बढ़े मुसाफ़िर,
प्रेम छूटा……. टूटा
तो पौना ही रह गया,
जब युवा हुए और बने कवि
भावों को समेटना एक पंक्ति में,
कठिन बड़ी डगर हो गया ।
रात हुई सपना देखा , टूटी नींद ,
ख्वाब मेरा पूरा ना हुआ,
पौना ही रह गया ।
वह सोच रहा,
समय …
कभी अपना भी आयेगा,
बीता समय, जवानी सब बीती,
जीवन को जाना तो,
माना मुश्किल सफ़र ये,
आदमी खिलौना ही रह गया ।
पौना ही रह गया ।
One Reply to “पौने का होना ( पूरे से कम )”
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पवनेश
पौना ही रह गया, पूर्णता की आवश्यकता को इंगित करती रचना, राधे राधे 🙏