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“आधा सच”

   “तुम बदल गए हो।” मोबाइल कॉल पर प्रगति के शब्दों ने विकास का मन कसैला कर दिया। “जबसे तुम वहां गए हो तुमने मुझसे बात करना बंद कर दिया है।” 

   विकास और प्रगति, उन्नति इंजीनियरिंग कोचिंग क्लासेज में अलग अलग शाखाओं में काम करते हैं। ढाई वर्ष पहले दोनों ने कोटा में कोचिंग क्लासेज ज्वॉइन की थी एक ही जगह सहकर्मी होने से लेकर दोनों के मन में एक – दूसरे को लेकर कोमल भावनाऐं स्वीकृत होने तक का समय बहुत रुचिकर निकला।

   “ऐसी बात नहीं है प्रगति।” विकास ने प्रगति को समझाने का प्रयास किया।

     “ऐसी ही बात है।” प्रगति कॉल पर ही मानों फफक पड़ी। “जब तुम यहां थे तब रोज सुबह बालकनी में आकर गुड मॉर्निंग करते थे। दिन में चाय, नोट्स, किसी न किसी बहाने चार पांच बार बात करते थे।” प्रगति भी कोचिंग क्लासेज में उसके साथ काम करती थी। “शाम को घर जाने के समय मेरे आने का इंतजार करते थे। अब कुछ भी वैसा नहीं रहा।” 

    छह महीने पहले विकास को पदोन्नति देते हुए कोचिंग क्लासेज मैनेजमेंट ने उसको इंदौर ब्रांच इंचार्ज बनाकर भेज दिया। 

   “प्रगति समझने की कोशिश करो।” विकास ने समझाने की कोशिश की। “कोटा और यहां पर बहुत अंतर है।” विकास भी प्रगति और उसके साथ को बहुत मिस कर रहा था। “यहां पर सारा काम एक साथ मुझे सम्हालना पड़ रहा है इसलिए काम का प्रेशर है और हर रोज कुछ न कुछ ऐसा होता है कि समय कब निकल जाता है पता ही नहीं चलता।” 

     “तुम झूठ मत बोलो?” प्रगति कुछ भी सुनने के लिए राजी नहीं थी। “तुम अकेले ब्रांच इंचार्ज नहीं हो, यहां पर भी शेखर सर ब्रांच इंचार्ज हैं रोज सुबह साढे दस बजे आते हैं और शाम को साढे छह बजे चले जाते हैं। क्या उनको काम नहीं होता?” 

     “प्रगति, कोटा हमारी कंपनी का हेड ऑफिस है। वहां पर जोनल मैनेजर, रीजनल मैनेजर, एरिया मैनेजर, सीओ, ऑपरेशन मैनेजर, मैनेजमेंट, सभी लोग हैं।” विकास ने वास्तविकता बताई। “वहां पर ब्रांच इंचार्ज के पास सिर्फ़ ब्रांच इंचार्ज की जॉब है, यहां पर छोटी ब्रांच है इसलिए ब्रांच इंचार्ज के साथ ही मार्केटिंग, बैक सपोर्ट स्टॉफ, लीगल एक्टिविटी, जैसी सारी जिम्मेदारी मेरी है, अभी यह नई ब्रांच है इसलिए ज्यादा ध्यान रखना पड़ रहा है।” 

     “मतलब तुम्हें दिन में एक बार कॉल करने का भी टाइम नहीं है?” प्रगति की आवाज में शिकायत की जगह कड़वाहट आ गई।

    “ऐसा नहीं है प्रगति, तुम बात समझ ही नहीं रही हो।” विकास का संयम भी टूटने लगा। “जब भी तुमसे बात करने की कोशिश करता हूं तुम शिकायतें शुरू कर देती हो, कितना मुश्किल होता है सम्हालना, दुनियां भर की परेशानियां कम है क्या जो तुम भी उल्टा सीधा सुनाने लगती हो।” 

   “अच्छा, तो अब मैं तुम्हें उल्टा- सीधा बोलती हूं।” प्रगति का पारा बिलकुल ऊपर चढ़ गया। “सीधा बोलो कि तुम उधर कॉर्डिनेटर प्रिया से चिपक गए हो, मैंने देखे हैं वहां के कैंपेन विडियो, तुम दोनों साथ में कैसे हंस हंसकर बातें कर रहे थे।” 

   “प्रगति, तुम आधे सच देखकर कुछ भी मान रही हो।” विकास भी भड़क गया। “प्रिया यहां पर मेरी टीम में कोऑर्डिनेटर है, टीम मेंबर के साथ काम करते समय बात भी करनी पड़ती है। हमारे काम का कोई निर्धारित मापदण्ड नहीं होता, कम्पनी प्रोफाईल में जरूरत होने पर परिस्थिति के अनुसार सामंजस्य, और प्राथमिकता बनाने पड़ते हैं। जेंडर देखकर काम या बात नहीं की जाती।” 

   “मैं सब समझती हूं विकास।” प्रगति बिलकुल आपे से बाहर हो गई। “टीम मेंबर के नाम पर क्या और कैसे किया जाता है, मुझे मत सिखाओ।” 

    “प्रगति, तुम आधा सच देख रही हो जबकि आधा सच पूरे झूठ से भी ज्यादा खतरनाक होता है।” विकास ने अपनी तरफ़ बात को खत्म करने के लिए कहा। “तुम अपने पेरेंट्स को तैयार कर लो, मैं मैनेजमेंट से रिक्वेस्ट करके तुम्हारा ट्रांसफर यहां इंदौर करवा लेता हूं शायद तुम्हें

तब मुझ पर विश्वास आएगा।” 

पवनेश

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