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“खोई हवाऐं”

“पूर्व  प्रकाशित लघुकथा “अनबनी जोड़ी” में आपने पढ़ा कि चांदनी और केशव की शादी की पहली रात ही चांदनी केशव को बताती है कि वह मधुर के साथ जीवन में आगे बढ़ चुकी है। माता पिता की जबरदस्ती के कारण उसने शादी की, और वह चाहती है कि केशव उसको मधुर के पास पहुंचा दें। अब आगे। .  .  .  .  . “

    “मधुर, मैंने अपने पति को सब सच बता दिया है।” कॉल पर चांदनी ने मधुर को बताया। “वह मुझे तुम्हारे पास भेजने से पहले तुमसे मिलना चाहते हैं इसलिए तुम इस पते पर आ जाओ।” 

    अपने सपनों को हवाओं में खो चुकी केसर की खुशबू की तरह खोने के बाद केशव निराश हो चला था उसका जीवन तूफान में फंसी नाव की तरह अधर में लटक गया था उसके बाद भी केशव ने चांदनी को उसके प्रेम के पास भेजने का फैसला लिया मगर उसके उसने मधुर से साफ – साफ चर्चा करना ज्यादा बेहतर समझा।

     “मधुर, कल शाम तक यहां पर मिलने आएगा।” चांदनी ने कॉल डिस्कनेक्ट करने के बाद केशव को बताया।

     केशव चांदनी के चेहरे को ऐसे देखने लगा जैसे उसने अमावस की घोर काली रात में, कड़कड़ाती सर्दी के बीच एक दिए की लौ से लगन लगा बैठा है और अब उसको पता चला है कि जिस दिए की लौ को वह जीवन धन समझे था वह तो सिर्फ एक धोखा है। जेठ की दुपहरी में सर्द खोई हवाऐं हैं जिनका आभास उसने शीत ऋतु में किया था।

   केशव सोचने लगा अब क्या होगा? क्या मधुर चांदनी को अपनाएगा? क्या वह चांदनी को भुला सकेगा? क्या चांदनी वापस उसके पास आयेगी? या कुछ और होगा?

नोट:- कथानक को आगे बढ़ाने के लिए पुनः आप सभी के सुझाव कमेंट बॉक्स में सादर आमं

त्रित है। 

पवनेश

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