“मांडवी”
मांडवी वह, मांडवी है मांडवी – २
मांडवी है मांडवी वह, रघुकुल को जिन पर मान है,
वह भरत की भार्या, सहधर्मिणी, अर्धांगिनी, वामा, वनिता, मांडवी।
मांडवी है मांडवी वह, मांडवी है मांडवी – २
विनयशीला, गुणप्रवीना, गौरवर्णा, कुलसुशीला,
चंद्रभागा – कुशध्वज की लाडली वह शंखश्रीला।
जानकी की भगिनी प्रिय वह, वह स्वसा हैं उर्मिला की,
श्रुतिकीर्ति की हैं जो सहोदरी, जो स्वयं में पुण्य लीला।।
बालपन बीता हुलसकर जनकपुर की गोद में,
ज्ञान की गरिमा सहेजी वेद कर्मयुत शोध में।
बालकौतुक, कृतमकाव्यम, सृजन शुभमन सुख सुधा,
जनक के नेत्रों की आभा, सुनयना के मोद में।।
संग पग पर पग चरण, जो सिय की सहमानिनी,
उज्जवल छाया लक्ष्मी की, भूमिजा की पावनी।
नयन जिनके सजल भीगे, क्षितिजा की शोभ पर,
शिवधनुष कोमल कृषा सा, पा हर्ष गाई स्वामिनी।।
मोक्ष जिनके कंत होकर तप विकट करने चले,
काजल सी कोठरी में भी वसन श्वेत जिनके भले।
मंथरा, कैकई, सरीखे कष्ट जिसने तृण कहे,
चरणरज मर्याद आशीष मां शारदा का ही फले।।
राम सिय संग निरख डबडबाए दृग विकल,
नेमि पितृ रुप पाकर चक्षु गौरव से सकल।
रक्षिका सब साथ खेली, साथ में भांवर पड़ी,
हिय भरा शुभ सिंधु सा, पालकी पाई सजल।।
राम के वनवास, सिय के वनगमन पर रह गई स्तब्ध सी,
वह भरत की भार्या, दृढ़ अटल थीं सत्य पर प्रारब्ध सी
पादुका चरणों की रखकर पूजती आश्रम में नंदीग्राम में,
मात पुष्कल तक्ष की वह, सक्षम सुधा सी मांडवी।।
मांडवी है मांडवी वह, मांडवी है मांडवी – २
मांडवी है मांडवी वह, रघुकुल को जिन पर मान है,
वह भरत की भार्या, सहधर्मिणी, अर्धांगिनी, वामा, वनिता, मांडवी।
है मांडवी वह, मांडवी है मांडवी – २
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