
“सोरठी”
🌷 !! “सोरठी” !! 🌷
“ताई यौ कूण सै?” संयुक्त परिवार पर डॉक्यूमेंट्री बना रही लतिका ने आंगन में चारपाई पर बैठकर हुक्का गुड़गुड़ाती हुईं वयोवृद्ध महिला के बारे में प्रश्न किया।
“यौ म्हारी मरद सै।” पचास – पचपन वर्षीय उत्तर देने वाली महिला ने बिलकुल निरपेक्ष भाव से कहा।
“कै मतलब?” लतिका को सुनकर आश्चर्य हुआ।
“जी मैं बताती हूं।” हाथ में चाय की ट्रे पकड़े अन्य किंतु युवा स्त्री ने कहा।
“जी।” लतिका ने भी हाथ में चाय पकड़ते हुए स्वीकृति दी।
“यह हमारी माई हैं।” बताने वाली महिला ने पुनः वयोवृद्ध महिला की तरफ़ संकेत किया। “और यह ताई हैं।” इस बार संकेत दूसरी महिला की तरफ़ था।
“अच्छा।” लतिका ने समझने का प्रयास किया।
“माई, ताऊ राणा जी की पहली ब्याहता है और छोटी ताई दूसरी।” परिचय से काफी कुछ स्पष्ट हो गया। “गाम में खेती बाड़ी होने के बाद भी ताऊ ट्रक ड्राइवरी का काम करते थे, माई घर में बाल- बच्चों के साथ बुजुर्गों की देखभाल करती थीं। तब किसी को ताई के बारे में जानकारी नहीं थी। कुछ लोगों ने बताया कि ताऊ से बीस साल छोटी हमारी ताई ताऊ को सड़क पर मिली थीं। ताऊ घर ले आए। माई और ताई की ताऊ के रहते आपस में कभी नहीं बनी। जैसा कहते हैं सोरठियां एक सी होते हुऐ भी कभी एक नहीं होती।”
“ओह।” अब तक लतिका काफी कुछ समझ चुकी थी।
“एक दिन ताऊ ट्रक एक्सीडेंट में नहीं रहे।” युवा महिला की आवाज में नमी आ गई। “सास- ससुर बुजुर्ग, देवर- ननद किशोरवय, घर का इकलौता मुखिया चला गया उस दिन से माई और ताई एक हो गई।”
अब लतिका का दृष्टिकोण दोनों के प्रति बदल चुका था।
“जिसके लिए लडाई थी वह तो चला गया।” दोनों बुजुर्ग महिलाओं की जीवनी शब्दों में बहने लगी। “इसलिए लडाई भी खतम हो गई, माई ने घर गांव खेत खलिहान जानवर बाजार देखने शुरू कर दिए और ताई ने घर। समय बदला बच्चे जवान हुऐ, शादी-ब्याह हुए, ताऊ के माता-पिता भी पूरे हुए, घर में नन्हें-नन्हों की किलकारियां गूँजी, माई और ताई दोनों न बदलीं, दोनों एक की होकर एक के बिना एक सी हो गई।”
“यौ सोरठी!” वयोवृद्ध महिला ने आवाज दी। “कितै मर गी रा. . . . . !!”
“आईं।”, दूसरी वृद्ध महिला ने मकान के भीतर से उत्तर दिया।
“माई, ताई को इसी नाम से बुलाती हैं।” लतिका ने बिना सुना बुदबुदाया। “सोरठी, एकदम सटीक।”
“तिहारे बिना कौ न मरन बारी।” ताई ने उसी लहजे में जवाब देते हुए हुक्के को सुलगाया।
“यौ बी सई सै।”, माई की आवाज कठोरता की जगह हास्य आ गया। “हैं तो दूनो एक मरद की रा. . . . . “
“रा . . . . . होगी तू, मैं तो ब्याहता सूँ।” ताई ने उसी हास्य को आगे बढ़ाया। “म्हारो मरद तो म्हारै सामने बैठी सै।” और माई को पीछे से अंक में भर लिया।
लतिका दोनों को ठठाकर हँसते हुए देखने लगी।
✍🏻 पवनेश मिश्रा
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