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✍️ “!! कल्पकथा साप्ताहिक आमंत्रण – भारत देश के अंचलों की वेशभूषा !!” ✍️

✍️ !! “साप्ताहिक आमंत्रण – कल्प/जुलाई/२०२४/ब” !! ✍️

“विशिष्ठ आमंत्रण क्रमांक – कल्प/जुलाई/२०२४/ब”

“विषय:- भारत देश के अंचलों की वेशभूषा”

“विधा:- लेख”

“भाषा – हिन्दी” (देवनागरी)

🪷🪷🪷🪷🪷🪷🪷🪷🪷🪷
राधे राधे सभी को,
भारत विविधताओं का देश है, जहाँ हर राज्य, हर क्षेत्र की अपनी विशिष्ट संस्कृति और परंपराएँ हैं। इस विविधता में आंचलिक वेशभूषाएँ एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये वेशभूषाएँ न केवल उस क्षेत्र की जलवायु, भूगोल और प्राकृतिक संसाधनों का प्रतिबिंब होती हैं, बल्कि वहाँ की सांस्कृतिक धरोहर और इतिहास का भी प्रतिनिधित्व करती हैं। आंचलिक वेशभूषाएँ हमारे देश की सांस्कृतिक पहचान का अभिन्न हिस्सा हैं।

यहां विषय वस्तु के अनुरूप हम देश के विभिन्न अंचलों का वेशभूषा के अनुसार विभाजन कर सकते हैं
०१) उत्तर भारत की वेशभूषा, ०२) पूर्वी भारत की वेशभूषा, ०३) दक्षिण भारत की वेशभूषा, ०४) पश्चिम भारत की वेशभूषा, और ०५) पूर्वोत्तर भारत की वेशभूषा।

                 उत्तर भारत में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों की वेशभूषा बहुत ही विशिष्ट और रंगीन होती है। पंजाब की प्रमुख वेशभूषा में पुरुषों के लिए कुर्ता-पायजामा और महिलाओं के लिए सलवार-कुर्ता शामिल है। यहाँ की महिलाएँ फुलकारी कढ़ाई वाले दुपट्टे पहनती हैं, जो उनकी पहचान है। यहाँ की पुरुष वेशभूषा में धोती-कुर्ता और पगड़ी शामिल है। महिलाएँ घाघरा-चोली पहनती हैं और ओढ़नी से अपना सिर ढकती हैं। राजस्थान की वेशभूषा में रंगों और गहनों का विशेष महत्व है।

                पूर्वी भारत में पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा, झारखंड और पूर्वोत्तर राज्यों की वेशभूषाएँ अनूठी और सांस्कृतिक धरोहर से भरपूर हैं। यहाँ की महिलाएँ पारंपरिक साड़ी पहनती हैं, जिसे ‘तांते’ कहा जाता है। पुरुष धोती और कुर्ता पहनते हैं। दुर्गा पूजा के समय लाल-पार सफेद साड़ी पहनी जाती है। जबकि उड़ीसा इत्यादि राज्यों में महिलाएँ ‘संबलपुरी साड़ी’ पहनती हैं, जो अपनी अनोखी बुनाई और कढ़ाई के लिए प्रसिद्ध है। पुरुष धोती और अंगवस्त्रम पहनते हैं।
           दक्षिण भारत में तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश की वेशभूषा अलग-अलग होती है, लेकिन इनमें एक समानता भी देखने को मिलती है। दक्षिण भारत के तमिलनाडु क्षेत्र में महिलाएँ ‘कांचीपुरम साड़ी’ पहनती हैं, जो अपनी रेशमी बुनाई के लिए जानी जाती है। जबकि पुरुष ‘वेष्टी’ पहनते हैं, जो एक तरह की धोती होती है। वहीं केरल अंचल की महिलाएँ ‘कसवु साड़ी’ पहनती हैं, जो सफेद रंग की होती है और उसमें सुनहरे बॉर्डर होते हैं। पुरुष ‘मुंडू’ पहनते हैं, जो एक प्रकार की धोती है।

       पश्चिम भारत में महाराष्ट्र, गुजरात, गोवा और मध्य प्रदेश की वेशभूषाएँ देखने को मिलती हैं, जो यहाँ की सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाती हैं। उदाहरण के लिए महाराष्ट्र की महिलाएँ ‘नऊवारी साड़ी’ पहनती हैं, जिसे ‘लुगड़ा’ भी कहा जाता है। पुरुष धोती-कुर्ता या पायजामा-कुर्ता पहनते हैं। वहीं गुजराती वेशभूषा से प्रभावित क्षेत्र में महिलाएँ ‘चणिया-चोली’ पहनती हैं और पुरुष ‘कुर्ता-धोती’ या ‘कुर्ता-पायजामा’ पहनते हैं। गरबा के समय विशेष प्रकार की वेशभूषा पहनी जाती है।

      अब हम बात करते हैं पूर्वात्तर भारत के राज्यों जैसे असम, मेघालय, मणिपुर, नागालैंड, त्रिपुरा, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम की वेशभूषाएँ बहुत ही विशिष्ट और आकर्षक होती हैं इस अंचल में असम जैसे घाटी वाले राज्य में यहाँ की महिलाएँ ‘मेखला-चादर’ पहनती हैं और पुरुष धोती-कुर्ता पहनते हैं। बिहू त्योहार के समय विशिष्ट परिधान पहने जाते हैं।
वहीं मणिपुर जैसे पहाड़ी क्षेत्रों की महिलाएँ ‘फानेक’ पहनती हैं, जो एक प्रकार की स्कर्ट होती है और ‘इन्नाफि’ से ओढ़नी की जाती है। पुरुष धोती-कुर्ता पहनते हैं।

           देश की आंचलिक वेशभूषाएँ सिर्फ परिधान नहीं हैं, वे एक क्षेत्र की संस्कृति, परंपराएँ और जीवनशैली का प्रतीक हैं। इनमें निहित रंग, डिज़ाइन, और कढ़ाई की शैली उस क्षेत्र के लोगों की कलात्मक दृष्टि और श्रम का परिचायक होती है। आंचलिक वेशभूषाओं का संरक्षण और प्रचार-प्रसार करना अत्यंत महत्वपूर्ण है ताकि हमारी सांस्कृतिक धरोहर बनी रहे।

           आज के आधुनिक समय में भी लोग विशेष अवसरों, त्योहारों और उत्सवों के दौरान पारंपरिक आंचलिक वेशभूषाओं को पहनते हैं, जिससे हमारी संस्कृति और परंपराएँ जीवंत बनी रहती हैं। आंचलिक वेशभूषाएँ न केवल हमें अपनी जड़ों से जोड़ती हैं बल्कि हमें अपने सांस्कृतिक मूल्यों और धरोहरों पर गर्व करने का अवसर भी प्रदान करती हैं।

       अतः हम कह सकते हैं कि आंचलिक वेशभूषाएँ भारत की सांस्कृतिक विविधता और एकता का प्रतीक हैं, जो हमें एक-दूसरे से जोड़ती हैं और हमारी पहचान को संवारती हैं। इन्हीं शब्दों के साथ अपने विचारों को इस विषय पर यहीं विराम देते हुए आप सभी से अनुमति चाहते हैं, राधे राधे 🙏🌹🙏,

“वैचारिक प्रयास”
✍️:- पवनेश मिश्रा।

पवनेश

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